Saturday, July 16, 2011

नाकामी के नए सबूत



मुंबई में करीब 20 लोगों की जान लेने और सौ से अधिक लोगों को लहूलुहान करने वाले बम विस्फोटों के बाद केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिंदबरम ने देश को यह विचित्र जानकारी दी थी कि इस आतंकी हमले की भनक न लगने के बावजूद खुफिया एजेंसियों से कोई चूक नहीं हुई। हो सकता है कि उनके पास इस सवाल का भी कोई ऐसा ही टेढ़ा जवाब हो कि 48 घंटे बाद भी खुफिया और जांच एजेंसियों के हाथ खाली क्यों हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि इससे न तो उन्हें कुछ हासिल होने वाला है और न ही देश को। मुंबई में फिर से बम धमाके यह बता रहे हैं कि देश की आर्थिक राजधानी आतंकियों के लिए कुछ उसी तरह आसान निशाना बन गई है जैसे एक समय विदेशी आक्रांताओं के लिए सोमनाथ मंदिर बना हुआ था। इस आतंकी हमले ने यह भी साबित किया कि 26-11 के बाद मुंबई में सुरक्षा व्यवस्था चुस्त करने के जो तमाम वादे किए गए थे उनमें से तमाम खोखले निकले। ये वादे किसी और ने नहीं, खुद केंद्रीय गृहमंत्री की ओर किए गए थे। शायद इसी कारण उन्होंने देश को यह समझाने की कोशिश की कि मुंबई जैसे बड़े शहर में आतंकी हमले रोकना कितना कठिन काम है? यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि गृहमंत्री चिदंबरम जैसी भाषा का इस्तेमाल राहुल गांधी ने भी किया। उनके हिसाब से हर आतंकी हमले को रोकना नामुमकिन है। मुंबई और साथ ही देश को दहलाने वाले बम धमाकों के 24 घंटे के अंदर ऐसा बयान न केवल अरुचिकर, बल्कि आपत्तिजनक भी है। मुंबई में विस्फोट के बाद राहुल गांधी का बयान आतंकवाद से लड़ाई की कड़वी सच्चाई को नहीं, बल्कि कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता की कमजोर इच्छाशक्ति को रेखांकित करता है। शर्मनाक यह है कि पूरी कांग्रेस यह सिद्ध करने में जुट गई है कि राहुल गांधी ने जो कुछ कहा वह इस-इस आधार पर सही है? यह और कुछ नहीं, आम जनता के मनोबल को ध्वस्त करने वाला आचरण है। कांग्रेस को इस पर आपत्ति हो रही है कि मुंबई में हमला होते ही केंद्र सरकार की आलोचना शुरू हो गई है। इस आपत्ति का इसलिए कहीं कोई मूल्य नहीं, क्योंकि केंद्रीय सत्ता आतंकवाद से लड़ने के लिए आवश्यक न्यूनतम राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी प्रदर्शन नहीं कर पा रही है। आतंकवाद से लड़ने के लिए जो कुछ भी किया जाना चाहिए उन सबसे बचा जा रहा है और कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि सिर्फ खोखले बयान देकर कर्तव्य की इतिश्री की जा रही है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्या कारण है कि पुलिस सुधार लागू करने में भी आनाकानी की जा रही है? इस मामले में कांग्रेस और गैर कांग्रेसी दलों का रवैया एक जैसा है। दरअसल अन्य दलों की तरह कांग्रेस भी यह नहीं चाहती कि पुलिस और साथ ही खुफिया एजेंसियों का राजनीतिक इस्तेमाल करने की सुविधा समाप्त हो। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने जिस तरह यह कहा कि गृह विभाग सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास नहीं जाना चाहिए था उससे यह साफ है कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थो के कारण भी आंतरिक सुरक्षा ढुलमुल बनी हुई है। इस बयान का एक अर्थ यह भी है कि राजनीतिक स्वार्थो के फेर में राष्ट्रीय हितों की अनदेखी की जा रही है।


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