Saturday, July 16, 2011

नहीं टूटती तन्द्रा हमारी

मुम्बई पर एक और आतंकी हमला ,३ स्थानों पर बमविस्फोट …………………..,लोग मरे घायल .
हमारी संवेदनाएं अब मर चुकी हैं,क्योंकि ऐसे गम्भीर समाचार भी अब उद्वेलित नहीं करते, बस एक समाचार के रूप में हम उनको देखते -सुनते हैं और अपने काम ,अपने मनोरंजन में लग जाते हैं.एक समय था जब अडोस -पड़ोस में किसी के परिवार में कोई मृत्यु या शोक समाचार होने पर पूरे मौहल्ले में कोई भी ख़ुशी या मनोरंजन का आनंद रोक दिया जाता था ,और अब! अपने परिवार में भी यदि किसी संबंधी के यहाँ कुछ अनहोनी हो जाती है तो भी आपके अपने घर की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता.कोयम्बतूर में सबके सामने एक आदमी को उसके ३ साथियों ऩे भरी सड़क पर पीट पीट कर मार डाला और सब तमाशबीन बने रहे.,एक विवश नारी को गुंडे निर्वस्त्र कर पूरे गाँव में घुमाते हैं,घर में से घसीट कर ले जाया जाता है निरीह बालिका को और वह बलात्कार का शिकार होती है ,कोई उसको चीरहरण से बचाने वाला नहीं बस पीछे सुनायी दे जाएगा ………..च च च बेचारी देश के संकट की चिंता करने वाले तो हैं ही नाम मात्र के लोग..इस संवेदन हीनता का कारण है ,बढ़ती व्यक्तिवादिता ,, औपचारिक होते हम ,एक चेहरे पर नकली मुखौटे लगाए हम.
अब हम क्या करेंगें …… बस संवेदना व्यक्त करेंगें……..सरकार को गालियाँ देंगें,………………सरकार क्या करेगी २-४ नेता घटनास्थल पर जाकर घडियाली या गिलिसरीन अश्रु बहा देंगें,…………जांच की जायेगी किसी भी आतंकवादी गुट का नाम सामने आ जाएगा,…….पहली बात तो कोई पकड़ा नहीं जाएगा और यदि पकड़ा भी गया तो उसको सालों तक कारागार में रखकर उसको सब सुख -सुविधाएँ उपलब्ध कराकर दामादी खातिरदारी होगी ……….,अपराध सिद्ध हो जाएगा तब भी कोई सजा अपराधी को नहीं मिलेगी, ……….थोड़े दिन के लिए रेड एलर्ट की घोषणा होगी…….. और फिर गधे घोड़े बेचकर चैन की नींद सोयेंगें……….. और स्वयं गृह मंत्री अपनी पीठ ठोकेंगें कि हमने आतंकवाद पर विजय पा ली……….. और घर में छुपे आतंकवादी तो इसी प्रतीक्षा में रहते हैं फिर हमला बस यही नियति है. हमारी………विपक्ष के नेता भी घटना स्थल पर पहुंचेंगे और सत्ता पक्ष की कमियाँ गिनाई जायेंगीं. …दो रु चुराकर भागने वाले गरीब लड़के को तो लात-घूंसे जमाकर पुलिस अधमरा कर देती है,या मार डालती है,परन्तु आतंकवादियों से (जेल में कैद से भी) उनके समर्थकों से,हमारी,सरकार , पुलिस सभी कांपते हैं पुलिस को क्या दोष देना यथा राजा तथा उनके अधीनस्थ.गृह मंत्रालय की जो निर्देशिका होगी ,उसपर चलना उनकी ड्यूटी है…
आज स्थिति यह है कि हमें आतंकवादी गतिविधियाँ सामान्य लगने लगी हैं, .राष्ट्रीयता की भावना का लोप हो चुका है हमारे दिलों से,आज की युवा होती पीढी तो शायद राष्ट्रीयता का अर्थ भी नहीं जानती न उनको समझाया जाता है. ,जब तक अपने पर न बीते कोई अंतर नहीं पड़ता टी.वी .,समाचारपत्रों में देख-पढ़ लिया और बस हमारे कर्तव्यों की इतिश्री हो गयी.अपनी छोटी छोटी मांगें मनवाने के लिए आन्दोलन होते हैं,वेतन वृद्धि के लिए,सांसद निधि में वृद्धि के लिए सत्ता पक्ष-विपक्ष,अन्य सभी एकमत हो जाते हैं,परन्तु राष्ट्र हित के मुद्दे पर सहमति नहीं बनती,न बनाई जाती है.,परन्तु क्यों हम सरकार को मजबूर नहीं कर पाते कि वह सख्त कदम उठाये सरकार में जो आतंकवादियों के समर्थक या नरमी बरतने वाले हैं उनको भी अपराधी घोषित किया जाय .जिन आतंकियों के लिए हम जानते हैं कि वही अपराधी हैं,उनके विरुद्ध अविलम्ब कठोरतम कार्यवाही हो,जब तक वो जेल में रहते हैं,उनको कोई सुख-सुविधा प्रदान न की जाय,उनके साथ वही व्यवहार हो जो कुख्यात अपराधियों के साथ होता है.
हम तो आतंकवादियों की दया पर आश्रित है कि कब तक वो पूरी तैय्यारी से हमला नहीं करते.सरकार की कार्यवाही तो नवीन घटना घटित होने पर ही होती है, और पुनः इसकी पुनरावृत्ति होगी यह चिंता होती ही नहीं.अमेरिका में एक बड़ा आतंकी हमला होता है,और हमारे यहाँ तो समाप्त ही नहीं होते.अगर कुछ अन्तराल होता भी है तो वह भी जो आतंकियों को ही अपनी तैय्यारी करने में समय लगता है.
जब तक हम जागेंगे नहीं, इसी प्रकार आतंकियों के मनोरथ पूरे होते रहेंगें,निर्दोष लोगों की आहुति आतंकवाद के यज्ञ में दी जाती रहेंगी.

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