Tuesday, July 26, 2011

संदेह बढ़ाने वाली दलील

किसी भी घपले-घोटाले के अभियुक्त अपने बचाव में जो कुछ कहते हैं उस पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल होता है, लेकिन यह भी मानकर नहीं चला जा सकता कि हर मामले में उनकी दलील खारिज ही कर देनी चाहिए। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के अभियुक्त ए।राजा ने गत दिवस यह जो आरोप लगाया कि स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनियों द्वारा शेयर बेचे जाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम के साथ चर्चा की गई थी वह केवल सनसनीखेज ही नहीं है। राजा की मानें तो स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनियों द्वारा अपनी हिस्सेदारी विदेशी कंपनियों को बेचने के फैसले को केंद्रीय वित्तमंत्री ने प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मंजूरी दी थी। सत्तापक्ष राजा के इस आरोप को एक अभियुक्त का बयान बताकर अपना पल्ला झाड़ सकता है, लेकिन इतने मात्र से संदेह के बादल छंटने वाले नहीं हैं। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि यह बात पहले भी सामने आ चुकी है कि राजा के फैसलों पर प्रधानमंत्री के साथ-साथ तब के वित्तमंत्री चिदंबरम ने भी एतराज जताया था। सच तो यह है कि इस संदर्भ में इन दोनों ने पत्र भी लिखे थे और इसके प्रमाण भी उपलब्ध हैं। आम जनता यह जानना चाहेगी कि आखिर राजा पर इस एतराज का कोई असर क्यों नहीं हुआ और उन्हें मनमानी करने से क्यों नहीं रोका जा सका? राजा ने अपने बचाव में अदालत के समक्ष जो कुछ कहा उस पर बहस तो शुरू हो गई है, लेकिन जरूरत यह जांचे जाने की है कि उनके आरोप में कोई सार है या नहीं? यह आश्चर्यजनक है कि इस दिशा में जांच होती नजर नहीं आ रही है। ए. राजा की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच के कई आधार हैं और सबसे पहला तो यह कि उनकी गिरफ्तारी के पहले तक केंद्र सरकार उनका हर तरह से बचाव करने में लगी हुई थी। खुद प्रधानमंत्री ने स्पेक्ट्रम आवंटन में किसी तरह की गड़बड़ी से इंकार किया था। इतना ही नहीं, दोषपूर्ण और मनमाने तरीके से किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन के चलते हुई राजस्व हानि को शून्य बताया गया था। इसके अतिरिक्त यह भी किसी से छिपा नहीं कि स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली कंपनियों ने किस तरह अपनी हिस्सेदारी बेचकर अरबों रुपये अर्जित किए और यह तो जगजाहिर है कि स्पेक्ट्रम आवंटन के समय किस तरह नियम-कानूनों को ठेंगा दिखाया गया। इस पर सहज यकीन करना कठिन है कि कोई केंद्रीय मंत्री इस हद तक मनमानी कर सकता है। राजा की निरंकुशता के लिए गठबंधन राजनीति की कथित मजबूरियां उत्तरदायी हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब घोटाला करने की इजाजत देना नहीं हो सकता। दुर्भाग्य से स्पेक्ट्रम आवंटन में ऐसा ही हुआ। राजा के आरोप के बाद विपक्ष का हमलावर होना स्वाभाविक ही है। स्पेक्ट्रम आवंटन में हुई गड़बड़ी के संदर्भ में सत्तापक्ष विपक्ष के तर्को को दुष्प्रचार की संज्ञा दे सकता है, लेकिन इससे आम जनता के मन में घर कर रहे संदेह को दूर करना कठिन होगा। मौजूदा परिस्थितियों में बेहतर यह होगा कि इस बात की जांच हो कि राजा के आरोपों में कोई सत्यता है या नहीं?
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