Monday, July 18, 2011

संपूर्ण क्रांति के लिए हो सत्याग्रह

शुरुआत से ही मैं अपने भाषणों में कह रहा हूं कि हमारे आंदोलन का लक्ष्य संपूर्ण क्रांति है। दूसरे शब्दों में, इस आंदोलन का उद्देश्य समाज और व्यक्ति, दोनों के जीवन के सभी पहलुओं में क्रांतिकारी बदलाव लाना है। इस आंदोलन का लक्ष्य महज सरकार बदलना नहीं है, बल्कि समाज और व्यक्ति को बदलना भी है।

यही कारण है कि मैंने इसे संपूर्ण क्रांति कहा है। आप इसे व्यापक क्रांति भी कह सकते हैं। ‘संपूर्ण’ और ‘व्यापक’ के अर्थ में कुछ अंतर है, लेकिन दोनों मेरे लिए करीब-करीब एक ही हैं। एक व्यापक क्रांति संपूर्ण भी हो सकती है.. यह ऐसा कुछ नहीं है, जिसे एक दिन या एक-दो बरसों में हासिल किया जा सकता है।

इसकी प्राप्ति के लिए हमें लंबे समय तक संघर्ष जारी रखना होगा, और इसी के साथ-साथ निर्माण व रचनात्मक गतिविधियां भी चालू रखनी होंगी। संपूर्ण क्रांति के लिए संघर्ष और निर्माण की यह दोहरी प्रक्रिया अनिवार्य है।

फिलहाल तो ये हालात हैं कि लोग भयभीत हैं और हजारों नेता व कार्यकर्ता जेल में हैं। इसलिए यह संभव है कि उनकी अनुपस्थिति में क्रांति उसी रूप में जारी न रह सके, जैसी यह पिछले साल थी। बहरहाल, चूंकि हमें हर क्षेत्र में क्रांति लानी है, उन तमाम लोगों से मेरी अपील है, जो देश और समाज के बारे में सोचते हैं, कि उन सभी को इसमें भूमिका निभानी चाहिए।

मिसाल के लिए शिक्षा के क्षेत्र को ही लें। प्रसिद्ध शिक्षाविद और कोठारी आयोग के सदस्यों समेत आमतौर पर सभी लोगों ने महसूस किया है कि शिक्षा के क्षेत्र में प्राथमिक से माध्यमिक चरण तक जड़ों से परिवर्तन होना चाहिए। लेकिन इस दिशा में बहुत कम उपलब्धि मिली है।

छात्रों को जो शिक्षा मिल रही है, वह त्रुटियों से भरी है और उनका भविष्य अंधकारमय है, इस बिंदु पर छात्रों में गहरा असंतोष है। उनके असंतोष के खुले प्रदर्शनों को अब दबा दिया गया है। लेकिन असंतोष लगातार उनके दिलों में बना हुआ है और जब भी अनुकूल अवसर मिलेगा, वह खुलकर बाहर आ जाएगा।

इससे समस्या का समाधान नहीं होने वाला। लेकिन जब भी ऐसे विस्फोट होते हैं, समाज और उसके नेतृत्वकर्ताओं को चेतावनी मिलती है कि वे सम्हल जाएं, विध्वंस मुहाने पर है, उन्हें अपने तरीके बदलने ही होंगे, उन्हें विचार करना ही पड़ेगा और कुछ करना ही होगा।

ऐसी ही अन्य समस्याएं भी हैं, खासतौर पर हरिजनों और जनजातियों की आर्थिक और सामाजिक दिक्कतें। आर्थिक दृष्टिकोण से वे गरीब और पिछड़े हैं। सामाजिक नजरिए से उनकी परिस्थिति तो और भी बदतर है।

यहां तक कि आज भी तथाकथित उच्च जातियों के लोगों द्वारा हरिजनों से र्दुव्‍यवहार किया जाता है और उन्हें अछूत के रूप में अलग रखा जाता है। उन्हें लेकर इन जातियों के लोगों का गुस्सा कई बार खतरनाक रूप ले लेता है। कई घटनाएं हुई हैं और लगातार हो रही हैं, जिनमें हरिजनों को जिंदा जला दिया गया।

संपूर्ण क्रांति के सेनानियों को इस विस्फोटक समस्या का रचनात्मक समाधान तलाशना होगा। इसके लिए उन्हें हरिजनों और जनजातीय लोगों के जीवन में प्रवेश करना होगा और सेवा के माध्यम से उनके दिलों को जीतने के बाद उन्हें भारतीय समाज की मुख्यधारा में लाना होगा। यह उस तरह की रचनात्मक सेवा है, जिसके बगैर संपूर्ण क्रांति अधूरी ही रहेगी।

अब सवाल उठता है कि वर्तमान परिस्थिति में संपूर्ण क्रांति के लिए क्या किया जाए? संपूर्ण क्रांति के लिए कार्य के चार पहलू हैं: संघर्ष, निर्माण, प्रचार और संगठन। वर्तमान परिस्थिति में हमें अपना ध्यान रचनात्मक पहलू पर केंद्रित करना चाहिए।

मिसाल के लिए, हमारे कार्यक्रम का मुख्य मुद्दा जनता और युवाओं का मन दहेज व्यवस्था, जातिगत विभेद, छुआछूत और सांप्रदायिकता जैसी बुराइयों के खिलाफ मोड़ने और सामाजिक व सांस्कृतिक एकीकरण के लिए मिलकर काम करने का होना चाहिए।

संपूर्ण क्रांति स्थायी क्रांति है। यह हमेशा चलती रहनी चाहिए और हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक, दोनों तरह के जीवन को बदलती रहनी चाहिए। यह क्रांति न तो अवकाश जानती है, न पड़ाव, निश्चित तौर पर संपूर्ण पड़ाव। बेशक, परिस्थिति की दरकार के हिसाब से इसके रूप बदलेंगे, इसके कार्यक्रम परिवर्तित होंगे, इसकी प्रक्रियाओं में बदलाव आएंगे।

(एक अन्य पत्र में):

स्वतंत्रता के बाद से राजनीतिक, सार्वजनिक और व्यावसायिक नैतिकता में लगातार ह्रास ही हुआ है। अगर हम सामाजिक और आर्थिक विकास को लें, तो तस्वीर बहुत डरावनी है। आबादी तेजी से बढ़ रही है। गरीबी भी बढ़ रही है: 40 फीसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। भोजन और कपड़े के अलावा पेयजल, पशुओं के बाड़े जैसे नहीं, इंसानों के रहने लायक घर, चिकित्सा सुविधा जैसी जरूरतें भी अनुपलब्ध हैं।..

सवाल है कि क्या यह तस्वीर सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिए पूरी तरह बदल जाएगी? अगर विपक्ष जीत भी जाता है, तो क्या तस्वीर बदलेगी? मुझे डर है कि नहीं। कानून पारित और लागू होंगे, धन खर्च होगा- अगर यह सब हो भी जाए, तो क्या ढांचा, तंत्र, हमारे समाज का ‘दस्तूर’ बदल जाएगा? मेरा ख्याल है, नहीं।..

..जनता की सीधी कार्रवाई भी होनी होगी। इस कार्रवाई में नागरिक अवज्ञा, शांतिपूर्ण प्रतिरोध, असहयोग भी शामिल होना चाहिए, व्यापक एहसास में सत्याग्रह। ऐसे सत्याग्रह में लागू करने वाली एक अनकही बात है, खुद में बदलाव: जैसा कि कहा जाता है, जो बदलाव चाहते हैं, उन्हें किसी भी प्रकार का कदम उठाने से पहले खुद को भी बदलना ही होगा।

http://www.bhaskar.com/article/ABH-satyagraha-is-for-the-revolution-2218885.html

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