Monday, July 18, 2011

यह गुस्सा बेकार नहीं जाना चाहिए

Source: गुरचरन दास Last Updated 05:40(02/01/11)

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर लोगों के मन में जो गुस्सा है, अगर वह बेकार चला जाए तो यह बहुत शर्मनाक होगा।ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका यही है कि दोषियों को फौरन से पेशतर कैदखाने की सलाखों के पीछे भेज दिया जाए।

स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद हम जो नैतिकता का नाटक देख रहे हैं, उससे कुछ जरूरी सबक सीखे जा सकते हैं। मुझे मैलकम ग्लैडवेल के निबंध संकलन वॉट द डॉग सॉ का एक दृश्य याद आ रहा है। मैं उसे यहां जस का तस दे रहा हूं :

‘23 अक्तूबर 2006 की दोपहर जेफ्री स्किलिंग हाउस्टन, टेक्सास में फेडरल कोर्टरूम के सामने एक टेबल पर बैठा जज के फैसले का इंतजार कर रहा था। स्किलिंग कोई आम अपराधी नहीं था। उसने गहरे नीले रंग का सूट और टाई पहन रखी थी। उसके इर्द-गिर्द आठ वकील बैठे थे। बाहर टीवी-सेटेलाइट की गाड़ियां कतार में खड़ी थीं। स्किलिंग ऊर्जा क्षेत्र की कद्दावर फर्म एनरॉन का प्रमुख था, जिसे फॉच्यरून पत्रिका ने दुनिया की सबसे ज्यादा ‘सराही जाने वाली’ कंपनियों में से एक करार दिया था। स्टॉक मार्केट एनरॉन को अमेरिका की सातवीं सबसे बड़ी कॉपरेरेशन बताता था। पांच साल पहले यह कंपनी जमींदोज हो गई। स्किलिंग को धोखाधड़ी के आरोप में दोषी ठहराया गया।

‘जज सिमियॉन लेक ने अपनी बात शुरू की : हम आज यहां आपराधिक केस क्रमांक एच-04-25 में यूनाइटेड स्टेट्स बनाम जेफ्री के. स्किलिंग की सजा मुकर्रर करने के लिए एकत्र हुए हैं। जज ने स्किलिंग से खड़े हो जाने को कहा। फिर उन्होंने उसे 292 माह यानी चौबीस साल कैद की सजा सुनाई। यह किसी ‘व्हाइट कॉलर क्राइम’ के लिए सुनाई गई अब तक की सबसे बड़ी सजाओं में से एक थी।
‘स्किलिंग के वकील डेनियल पेट्रोसेली ने कहा : मेरी एक गुजारिश है, योर ऑनर। स्किलिंग को सुनाई गई सजा में मात्र दस माह की कटौती कर दी जाए। इससे आपको तो बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन मेरे मुवक्किल को यह फायदा होगा कि इससे वे ब्यूरो ऑफ प्रिजन की नीतियों के लिए पात्र सिद्ध हो जाएंगे। यह एक जायज मांग थी। स्किलिंग कोई हत्यारे या बलात्कारी नहीं थे। वे हाउस्टन कम्युनिटी की बड़ी हस्तियों में से एक थे और एक छोटा-सा फेरबदल कर देने मात्र से उनकी सजा आसान हो जाती। जज लेक ने कुछ देर विचार किया और फिर कहा : नहीं!’

भारत के लोग एनरॉन से परिचित होंगे। एक विवादित पावर प्लांट में एनरॉन की लिप्तता के चलते ही ९क् के दशक में ‘क्रोनी केपिटलिज्म’ का मुहावरा हमारे शब्दकोश में आया था। भारत में रसूखदार लोगों को कभी जेल में सजा नहीं भुगतना पड़ती, लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। अमेरिकी जज कठोर सजा सुनाने के आदी हैं, जैसा कि जज लेक ने जेफ्री स्किलिंग के मामले में किया। ऊपर दिए गए वृत्तांत से मिलती-जुलती कोई घटना भारत में खोजना मुश्किल है। भारत में जांच-पड़ताल की जाती है, आरोप दर्ज किए जाते हैं, भ्रष्टों को दोषी भी ठहराया जाता है, लेकिन इस कार्रवाई में सालों गुजर जाते हैं और वास्तव में कुछ नहीं होता। एक सीमा के बाद लोगों की उस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं रह जाती। यह वाकई एक शर्मनाक बात होगी अगर २जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर लोगों के मन में जो गुस्सा है, वह बेकार चला जाए। ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका यही है कि दोषियों को फौरन से पेशतर कैदखाने की सलाखों के पीछे भेज दिया जाए। यदि हम ऐसा कर पाने में कामयाब साबित होते हैं तो हम अपने प्रशासनिक तंत्र में भी विश्वास कायम रख पाएंगे।

हाल ही में देश के आठ बड़े शहरों में कराए गए एक ओपिनियन पोल में 83.4 फीसदी लोगों ने माना कि उदारीकरण के बावजूद भ्रष्टाचार की लगाम नहीं कसी जा सकी है। इससे यही साबित होता है कि अभी और सुधारों की दरकार है। खनन व रियल एस्टेट क्षेत्र में भ्रष्टाचार की वजह भी यही है। टेलीकॉम क्षेत्र में जरूर आर्थिक सुधार हुए हैं, इसलिए उसमें भ्रष्टाचार का होना चौंकाने वाला है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि टेलीकॉम मंत्री ने स्पेक्ट्रम में कृत्रिम अभाव की स्थिति निर्मित की और मनमानीपूर्वक लाइसेंसों का बंटवारा कर दिया। यदि लाइसेंसों का वितरण इंटरनेट पर खुली, पारदर्शितापूर्ण प्रक्रिया के तहत किया जाता तो इस घोटाले को टाला जा सकता था। ३जी स्पेक्ट्रम का आवंटन इसी तरह किया गया है।

2जी घोटाला उस भ्रष्टाचार की ओर भी हमारा ध्यान आकृष्ट करता है, जिसे अखबारों की सुर्खियों में जगह नहीं मिलती। एक मामूली छोटे उद्यमी को आज भी औसतन 27 इंस्पेक्टरों को रिश्वत देनी पड़ती है। अगर उन्हें घूस नहीं खिलाई जाए तो उनके हाथ में यह ताकत है कि वे उनकी फैक्टरी पर ताला लगवा दें। इनमें भी एक्साइज, सेल्स और आयकर विभाग के निरीक्षक सबसे कुख्यात हैं। निश्चित ही घूस लेने वाला अगर दोषी है तो घूस देने वाला भी उतना ही दोषी है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि यह एक असमान संबंध है। अधिकारी के सामने नागरिक हमेशा कमजोर ही साबित होता है। इस इंस्पेक्टर राज के कारण आज भी कई युवा और ईमानदार उद्यमी आगे बढ़ने से कतराते हैं और देश में औद्योगिक क्रांति नहीं हो पाती।

अलबत्ता यह स्वागत योग्य है कि हाल के समय में कुछ मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है और कठोर जांच की प्रक्रिया शुरू हुई है। बिहार में नीतीश कुमार की ऐतिहासिक जीत से भी सभी का हौसला बढ़ा है। हम यह विश्वास करना चाहेंगे कि यह हमारे इतिहास का टर्निग पॉइंट है और अब सुप्रशासन और उत्तरदायित्व पर आधारित राजनीति की शुरुआत होगी। अलबत्ता यहां यह भी याद रखा जाना चाहिए कि ऐसी ही बातें वर्ष 1989 में भी कही गई थीं, जब बोफोर्स घोटाले के खुलासे के बाद राजीव गांधी की सरकार केंद्र में चुनाव हार गई थी।

लेखक प्रॉक्टर एंड गैंबल के पूर्व सीईओ हैं।

http://www.bhaskar.com/article/ABH-the-anger-should-not-be-wasted-1714663.html

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