Monday, July 18, 2011

सीएजी की सही मांग

भारत में जिन संस्थाओं ने गुजरते वक्त के साथ अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि की है, उनमें एक सीएजी (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) है। कई बड़े घोटालों को विश्वसनीय ढंग से सामने लाने का श्रेय उसे है।

बोफोर्स से लेकर कारगिल ताबूत घोटाले और २जी स्पेक्ट्रम आवंटन के तथ्य सीएजी की मेहनत से ही सामने आए। गौरतलब है 2जी का मामला तब तक महज चर्चा था, जब तक सीएजी ने इससे राजकोष को हुए नुकसान का एक भरोसेमंद ब्योरा पेश नहीं कर दिया।

स्पष्ट है जनता का धन खर्च करने में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सीएजी एक अपरिहार्य संस्था बन गई है। यह काम वह और कुशलता से कर सके, इसके लिए उसने कुछ मांगें रखी हैं।

सीएजी चाहता है कि मंत्रालयों और विभागों से वह जो फाइलें मांगता है, उसे उपलब्ध कराने की एक समयसीमा तय कर दी जाए, ताकि जानकारियों को दबाए रखना संभव न रहे। साथ ही उसकी रिपोर्टो को जारी करने की एक समयसीमा तय हो, ताकि सरकारें असुविधाजनक रिपोर्टो पर बैठी न रहें।

सीएजी का कहना है कि बदलते वक्त के साथ पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप जैसे चलन सामने आ गए हैं, जबकि सरकार का बहुत सारा धन अब पंचायतों के जरिए खर्च होने लगा है। ये सब उसके दायरे में नहीं आते, इसलिए उस धन का हिसाब वह नहीं रख पाता।

सीएजी चाहता है कि इन सारे खर्चो को उसके दायरे में लाया जाए। ये मांगें हर नजरिए से तार्किक एवं विवेकसम्मत हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि केंद्र सरकार पिछले दो साल से सीएजी के इस अनुरोध को दबाए बैठी है।

जिस समय सरकार लोकपाल को दंतहीन रखने, आरटीआई को भोथरा करने और सीएजी की कुछ रिपोर्टो पर सवाल खड़े करने की कोशिशों के कारण आलोचनाओं के केंद्र में है, इस तथ्य का सामने आना उसके इरादे को और संदिग्ध करेगा। क्या सरकार अब कुछ सीखने को तैयार है?

Source: भास्कर न्यूज Last Updated 00:03(29/06/11)
http://www.bhaskar.com/article/ABH-the-demands-of-cag-2226796.html

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