क्या यूपीए सरकार अब सचमुच काले धन के खिलाफ कार्रवाई के लिए गंभीर हो रही है? पिछले हफ्ते केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय समिति बनाने का एलान हुआ, जिसे ‘गैर-कानूनी’ धन पर रोक के लिए कानूनों को सख्त करने, ऐसे धन को विदेश भेजने से रोकने और बेहिसाब जायदाद को जब्त करने के उपायों की पड़ताल की जिम्मेदारी दी गई है।
फिर यह खबर आई कि देश के तीन बड़े आर्थिक संस्थानों को यह अध्ययन करने का काम सौंपा गया है कि देश के भीतर और बाहर कितना काला धन जमा है और कितना पैदा हो रहा है। लेकिन मुश्किल यह है कि अध्ययन की रिपोर्ट सितंबर 2012 में आएगी। क्या सरकार इन दोनों अध्ययनों की रिपोर्ट आने तक खामोश बैठी रहेगी? इस मुद्दे पर सरकार की सुस्ती या कार्रवाई में अनिच्छा आम लोगों से लेकर सर्वोच्च न्यायपालिका तक में नाराजगी पैदा करती रही है।
सुप्रीम कोर्ट कई बार सरकार को फटकार लगा चुका है और यह पूछ चुका है कि आखिर काले धन पर कार्रवाई के लिए वह विशेष दल क्यों नहीं बनाती? सिविल सोसायटी भी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है। इन दोनों अध्ययनों का एलान उस वक्त किया गया है, जब योगगुरु बाबा रामदेव काले धन के खिलाफ अपना अभियान शुरू करने जा रहे हैं। इसके पहले लोकपाल बिल पर अन्ना हजारे के अनशन को जैसा जनसमर्थन मिला, उससे भी आम लोगों में भ्रष्टाचार को लेकर बढ़ती बेसब्री का अंदाजा मिला था।
इतने दबावों के बावजूद सरकार ने कोई ठोस कदम उठाने के बजाय अध्ययन कराने का रास्ता अपनाया है, जिसे बहुत से लोग अगर समय काटने का हथकंडा मानें, तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है। सत्ताधारी गठबंधन के राजनीतिक प्रबंधक शायद इस बात से बेखबर हैं कि लोग अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दिखावटी कदमों से तंग आ चुके हैं। यह बेखबरी यूपीए को महंगी पड़ सकती है।
Source: भास्कर न्यूज Last Updated 23:25(30/05/11)
http://www.bhaskar.com/article/ABH-upa-government-to-take-2147115.html
Monday, July 18, 2011
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