Tuesday, July 26, 2011

फाई मामले पर चुप क्यों है सरकार?

कश्मीर अमेरिकन काउंसिल और गुलाम नबी फाई द्वारा आयोजित की जाने वाले गोष्ठियों के मेहमानों की सूचि काफी लंबी और विशिष्ट है। यह किसी शक्तिशाली मीडिया समूह के कान्क्लेव के मेहमानों की सूचि हो सकती थी लेकिन यह एक ऐसी गोष्ठी थी जिसे आईआएसआई के पैसों से भारत विरोधी एजेंडे के तहत आयोजित किया गया था।

एफबीआई की चार्जशीट के अनुसार गुलाम नबी फाई को आईएसआई से करीब ४० लाख डॉलर (लगभग १७७ करोड़ रुपए) का फंड मिला ताकि वो अपनी गोष्ठियों के जरिए कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका का रुख पाकिस्तान की ओर झुका सके। अमेरिका के कैपिटल हिल में आयोजित होने वाली इन गोष्ठियों के मेहमानों को सभी विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थी। आइये नजर डालते हैं इन आलीशान कांफ्रेंसों के मेहमानों की सूचि पर।


दिलीप पडगांवकरः वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर मुद्दे पर सरकार के वार्ताकार।


हरीश खरेः प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार


वेद भूषणः कश्मीर टाइम्स के संपादक


सुब्रमण्यम स्वामीः जनता दल सेक्यूलर के अध्यक्ष


कुलदीप नैय्यरः ब्रिटेन में भारत के पूर्व राजदूत और वरिष्ठ पत्रकार


गौतम नवलखाः मानव अधिकार कार्यकर्ता।


इस सूचि में शामिल लोगों को मीडिया का एक समूह यूजफुल इडीयट (काम के बेवकूफ) कहकर संबोधित कर रहा है। गौरतलब है कि पश्चिम मुल्कों में सोवियत संघ के पक्षकारों को भी यही कहकर संबोधित किया जाता था। मजे की बात यह थी कि जहां ये लोग सोवियत संघ का पक्ष लेते थे वहीं सोवियत संघ का सीधे तौर पर उनसे कोई संबंध नहीं था। वो उन्हें सिर्फ अपने प्रोपागेंडा के लिए इस्तेमाल करता था।


चौंकाने वाली बात यह है कि इस सूचि में शामिल ज्यादातर लोग कश्मीर पर भारत की नीति को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं और इस बेहद गंभीर मुद्दे पर लोगों की राय को भी प्रभावित करते हैं। लेकिन जिस तरह से इन लोगों ने अपना बचाव किया है वो और ज्यादा चौंकाने वाला है।


दिलीप पडगांवकर कहते हैं कि उन्हें फाई के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। यदि उन्हें फाई के पीछले जीवन के बारे में जानकारी होती तो वो कभी भी इन सम्मेलनों में शामिल नहीं होते।


कुलदीप नैय्यर कहते हैं कि मेरी नजर में फाई एक रईस आदमी है जिस पर मैंने कभी भी आईएसआई का आदमी होने का शक नहीं किया। मैं काफी समय पहले उसके सम्मेलन में शामिल हुआ था। उन्होंने सम्मेलन में शामिल होने वाले लोगों के लिए जो व्यवस्था की थी वो सामान्य ही थी। उस सम्मेलन में पाकिस्तानी भी शामिल हुए थे लेकिन भारत के विरोध में कोई बात नहीं कही गई। मैंने भी पूरी स्वतंत्रता से अपने विचार रखे।


जहां प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार हरीश खरे अब तक इस मुद्दे पर खामोश हैं वहीं सुब्रमण्यम स्वामी ने जनता पार्टी की वेबसाइट पर अपना रुख साफ कर दिया है। उनका कहना है कि सम्मेलन में शामिल होने से पहले उन्होंने भारतीय दूतावास से राय ली थी और सम्मेलन में उनके साथ भारतीय दूतावास का कर्मचारी भी मौजूद था जिसने इसके नोट्स भी तैयार किए थे। सम्मेलन में मैंने कहा था कि कानूनी रूप से कश्मीर भारत का अंग है। किसी भी व्यक्ति के बारे में यह जानना कि वो किसी विदेशी संस्था का गुप्तचर है तबतक नामुमकिन है जब तक उसके बारे में जानकारी न दी जाए।


लेकिन भारत के नागिरक होते हुए दुश्मन के साथ संबंध रखने वाले ये हाई प्रोफाइल भारतीय क्या इतनी आसानी से इस प्रकरण से पीछा छुटा सकते हैं? हालांकि इस मुद्दे पर पर्दा डालने के प्रयास लगातार हो रहे हैं लेकिन कई ज्वलंत सवाल है जो जवाब चाहते हैं।


१- खुफिया विभाग के सूत्रों के मुताबिक यह तथ्य साफ था कि फाई के पीछे आईएसआई का हाथ है और पिछले साल कश्मीर में हुई पत्थरबाजी की वारदातों के पीछे भी वो ही था। फिर इन विशिष्ठ भारतीयों ने फाई से संबंध बनाने से पहले उसके बारे में जानकारी लेना क्यों मुनासिब नहीं समझा? ये लोग अब सफाई दे रहे हैं कि उन्हें फाई और आईएसआई के संबंधों के बारे में जानकारी नहीं थी लेकिन यह तथ्य तो साफ था कि वो पाकिस्तान के लिए काम कर रहा एक संदिग्ध व्यक्ति है फिर क्यों वो उसके सम्मेलनों में शामिल हुए?



२. यदि यह भी स्वीकार कर लिया जाए कि यह सभी लोग फाई को पहचानने में सही फैसला नहीं ले पाये फिर भी अब जब फाई के कारनामे सामने आ चुके हैं तब यह लोग देश से माफी क्यों नहीं मांग रहे हैं। अब तक इनमे से किसी ने भी एक दुश्मन से संबंध रखने के बावजूद भी देश से माफी नहीं मांगी है। किसी भी देशभक्त भारतीय को जब यह पता चले कि वो देश के उस दुश्मन के साथ बैठकर खा रहा था जिसके मालिकों के इशारे पर कई बेगुनाह भारतीयों की जान गई है और भारत ने युद्ध के दंश को झेला है तो वह शर्म से डूबकर मर जाए। लेकिन इन्हें तो शर्म तक नहीं आ रही है, क्यों? क्या पाकिस्तानी पैसों की रोटियों ने देश के प्रति वफादारी को मार दिया है?


३. इन लोगों को प्यादों की तरह भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। क्या अब सबसे पहले इन लोगों की हो जांच की मांग नहीं करनी चाहिए कि कहीं इनके कार्यों ने देश के लोगों की भावनाओं को ठेस तो नहीं पहुंचाई है? क्या अब तक दिलीप पडगांवकर को इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए जबकि उनके साथी एमएम अंसारी ऐसा ही सोच रहे हैं?


४. सबसे शर्मनाक है पूरे मुद्दे पर सरकार की खामोशी। क्या सरकार बेबस है या अब ऐसे किसी भी मुद्दे पर बोलने के लिए उसने खुद पर ही पाबंदी लगा ली है? हालांकि सरकार ने इस मामले में कुछ भी गलत नहीं किया है फिर ऐसा क्या है जो सरकार को इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक रहा है?


५. सिर्फ सरकार ही नहीं बीजेपी तक पूरे मुद्दे पर खामोश है। यदि प्रकाश जावड़ेकर की एक टिप्पणी को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी ने अभी तक इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा है? क्या कर्नाटक के घोटाले ने बीजेपी की बोलती बंद कर दी है?


६. हो सकता है यह अमेरिका की सीआईए और पाकिस्तान की आईएसआई के बीच एक दूसरे के प्यादों को पकड़ने के खेल का एक हिस्सा भर हो लेकिन यहां यह साफ कर देना जरूरी है कि अमेरिका को फाई के बारे में दशकों से पता था लेकिन उन्होंने अभी उसके खिलाफ कार्रवाई की क्योंकि अब कश्मीर को लेकर अमेरिका और पाकिस्तान के रोमांस के खात्मे की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन इस मुद्दे पर अमेरिका से किसी भी मदद की आस लगाना ही बेवकूफी होगा। हेडली मामले में अमेरिका का 'सहयोग' भारत के लिए अच्छा सबक है। फिर भारत कब तक अमेरिका पर भरोसा कर सकता है?


७। लेकिन सबसे बड़ा और ज्वलंत सवाल यह है कि जितने ऊंचे कद के यह लोग है उसे देखते हुए इस बात पर आसानी से विश्वास नहीं होता कि सिर्फ अमेरिका की फ्री यात्रा ने ही इन्हें सम्मेलन में शामिल होने के लिए आकर्षित किया हो। प्रश्न यह है कि इन भारत विरोधी सम्मेलनों में शामिल होने का इन लोगों का उद्देश्य क्या था? वो क्यों वहां गए थे?

Comment

Posted by Rajesh (25th Jul 11 20:10:09)

फाई गद्दार और आईएसाअई का भाड़े का व्यक्ति है, या नहीं, यह तो जांच का विषय है। हो सकता है, कि इनके द्वारा आयोजित गोष्ठियों में भागीदारी करने वाले महानुभावों को इनकी जानकारी न भी हो, लेकिन यही मीडिया अफज़ल गुरू और अजमल कसाब के बारे में क्यों मुंह में दही जमाए बैठा है? वह क्यों नहीं पूछता कि इन सिद्ध आतंकवादियों की फाइल कौन से मंत्रालय में दबाकर रखी गई है, या किस चुनावी मौके के इंतजार में उसे दबा कर रखा गया है? इसे कहते हैं, कि रावण को घर में बिठाकर बिरयानी खिलाना और खयाली भूत का होहल्ला मचाना। अरे जिन्होंने तुम्हारे संसद भवन पर बम बरसा दिए, जिसने सरेआम दिन-दहाड़े भारतीय नागरिकों को कीड़े-मकोड़ों की तरह भून डाला उसपर 32 करोड़ खर्च कर, उसे पालने का क्या अर्थ है? पहले हमारे सत्तासीन उसे फांसी देने का कलेजा तो लाएं, बाद में किसी हाई-फाई की बात करें.

http://www।bhaskar.com/blog/252/?IKS-H=



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