Saturday, July 30, 2011

ओबामा की चली तो आरएसएस पर चलेगा अमेरिकी कानून का डंडा

अमेरिका एक बार फिर दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में दखल देने की योजना बना रहा है। इस बार उसके निशाने पर भारत समेत पूर्व और दक्षिण मध्य एशिया के देश हैं। अमेरिका इन देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की खुद निगरानी करने के लिए एक विशेष दूत की नियुक्ति की योजना बना रहा है।

अमेरिका के सांसद फ्रैंक वॉल्फ और अन्ना ईशू ने अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की मंजूरी के लिए एक बिल पेश किया है। इस विधेयक का मकसद है पूर्व और दक्षिण मध्य एशिया के देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों पर नज़र रखना। प्रस्तावित विधेयक में भारत का खास तौर पर जिक्र है। बिल के मुताबिक अमेरिका भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर निगाहें रखेगा। अमेरिका इसे कितनी अहमियत दे रहा है, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि वह विशेष दूत के कामकाज पर हर साल चार करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च करेगा।

जानकार मानते हैं कि अगर कानून बना तो अमेरिका विशेष दूत के जरिए भारत में संघ (राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ) परिवार से जुड़े संगठनों की गतिविधियों पर भी नज़र रख सकता है। संघ परिवार से जुड़े कई लोगों पर आतंकवादी और अल्‍पसंख्‍यक विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगे हैं और मुकदमे चल रहे हैं। हालांकि आरएसएस खुद को राष्‍ट्रवादी संगठन बताता है और यह कह चुका है कि वह मुसलमानों के खिलाफ नहीं है।

अमेरिकी संसद में मंजूरी के लिए पेश बिल का नाम है ‘टु प्रोवाइड फॉर द इस्टैब्लिशमेंट ऑफ द स्पेशल ऑनवॉय टू प्रमोट फ्रीडम ऑफ रिलीजियस माइनॉरिटीज इन द नियर ईस्ट एंड साउथ सेंट्रल एशिया’। इस बिल को अमेरिका की दोनों पार्टियों- डेमोक्रैटिक और रिपब्लिकन - का समर्थन हासिल है। खास कर ईसाई परंपरावादी इस बिल को जोरदार समर्थन दे रहे हैं। जानकार मान रहे हैं कि यह बिल जल्द ही कानून की शक्ल ले लेगा। इस बिल में यह कहा गया है कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय में विशेष दूत का पद बनाया जाए। इस बिल में जिन देशों में अल्पसंख्यकों पर निगरानी रखने की योजना तैयार की गई है, उनमें भारत के अलावा पाकिस्तान भी शामिल है। जबकि चीन ने वेटिकन के उस अधिकार को खुले आम चुनौती दी है, जिसके तहत वेटिकन चीन में मौजूद गिरिजाघरों में पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है।

क्या करेगा और कौन होगा दूत
प्रस्तावित बिल के मुताबिक अमेरिका का विशेष दूत धार्मिक रूप से अल्पसंख्यकों के धर्म से जुड़े अधिकारों को बढ़ावा देगा। अल्पसंख्यकों के अधिकारों में हनन होने पर दूत अमेरिकी सरकार को उचित कार्रवाई के लिए सिफारिश करेगा। विशेष दूत धार्मिक असहिष्णुता को रोकने और उस पर नज़र रखने का काम करेगा। इसके अलावा धार्मिक तौर पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़काने की कोशिशों पर भी नज़र रखेगा। ऐसे समुदायों की आर्थिक और सुरक्षा संबंधी जरूरतों को पूरा कराने के लिए यह दूत काम करेगा। वहीं, अल्पसंख्यकों से भेदभाव की गुंजाइश वाले भारतीय कानूनों के मुद्दों को गैर सरकारी भारतीय संगठनों के साथ मिलकर सरकार के सामने उठाएगा। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस गंभीर मुद्दे को उठाएगा। बिल के मुताबिक विशेष दूत के लिए यह जरूरी है कि वह मानवाधिकार और धार्मिक आज़ादी के लिए काम करने वाल जाना पहचाना चेहरा हो। यह दूत अमेरिकी राजदूतों के समकक्ष होगा।

भारत के बारे में भ्रामक है अमेरिकी रिपोर्ट
धार्मिक आज़ादी को लेकर जारी ताज़ा रिपोर्ट में अमेरिका का मानना है कि भारत में धार्मिक आज़ादी को संविधान के तहत मान्यता दी गई है। लेकिन कुछ राज्यों में कानून और नीतियां इस हक का हनन करते हैं। संघीय ढांचे वाले भारत में कानून व्यवस्था राज्य का मसला है। ऐसे में दो कानून का तर्क बिल्कुल गलत है। इस रिपोर्ट में भारत गृह मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देकर सांप्रदायिक दंगों के बारे में बताया गया है।
साभार:-दैनिक भास्कर

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