Sunday, July 17, 2011

नोट कांड में दिल्ली पुलिस को फटकार

रामलीला कांड पर पहले से सुप्रीमकोर्ट के कठघरे में खड़ी दिल्ली पुलिस की शुक्रवार को फिर फजीहत हुई। इस बार मामला संसद में विश्वास मत के दौरान नोट के बदले वोट का था। शीर्ष अदालत ने राजनीति में पैसे के बढ़ते इस्तेमाल को उजागर करने वाले करीब तीन साल पुराने इस मामले की लचर जांच और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने के लिए दिल्ली पुलिस को जमकर फटकारा। साथ ही निर्देश दिया कि वह दो हफ्ते में कार्रवाई रिपोर्ट पेश करे। अदालत के इस रुख के बाद मनमोहन सरकार की मुसीबतें बढ़ गयीं हैं। न्यायमूर्ति आफताब आलम और आरएम लोढ़ा की पीठ ने पूर्व चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, नोट के बदले वोट मामले में दिल्ली पुलिस की जांच से हम बिलकुल खुश नहीं हैं। पुलिस ने लचर रुख के साथ जांच की है। गंभीर प्रकृति के अपराध को साबित करने का यह कोई तरीका नहीं है। हम सचमुच चिंतित हैं। जांच तेजी से तार्किक अंजाम तक पहुंचायी जानी चाहिए। पुलिस की स्थिति रिपोर्ट पर पीठ ने कहा, यह जांच नहीं है। आप कुछ सांसदों के बयान के आधार पर एक कहानी बता रहे हो। साथ ही सवाल किया कि इस मामले में आज तक हिरासत में लेकर पूछताछ क्यों नहीं की गई। एडिशनल सालीसिटर जनरल हरेन रावल ने कहा, सरकार आश्वस्त करती है कि मामले की जांच दो माह में पूरी कर ली जाएगी। लिंगदोह ने याचिका में आरोप लगाया है 22 जुलाई 2008 में संप्रग सरकार के विश्वास मत के दौरान रिश्वत के तौर पर मिले धन के रूप में समूचा देश भाजपा के तीन सांसदों अशोक अर्गल, फगन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा द्वारा संसद में नोट लहराए जाने की घटना को देखकर आवाक रह गया, लेकिन अब तक दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। न अपराध शाखा ने कोई रिपोर्ट दर्ज की न ही जेपीसी अध्यक्ष ने अब तक कोई वास्तविक कदम उठाया। ज्ञात हो, 9 जुलाई 2008 को भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु करार के मुद्दे पर वाम दलों के समर्थन वापसी के बाद संप्रग सरकार अल्पमत में आ गई थी। 21 जुलाई को विश्वास मत के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने का फैसला हुआ। 22 को सदन में तीन भाजपा सांसद एक करोड़ की नकदी लेकर पहुंचे और आरोप लगाया कि सरकार के पक्ष में मतदान के लिए उन्हें यह राशि संप्रग नेताओं ने दी थी। शोरगुल व हंगामे के बीच सरकार ने 256 की तुलना में 275 मतों से विश्वास मत हासिल कर लिया। 30 जुलाई को तत्कालीन लोस अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने मामले की जांच के लिए समिति गठित की थी, जिसने 30 अक्टूबर 2008 को सौंपी रिपोर्ट में मामले की जांच सीबीआइ या आयकर विभाग से कराने की सिफारिश की थी। 17 मार्च 2011 को यह मामला फिर सुर्खियों में आ गया, जब विकिलीक्स ने अमेरिकी राजदूत के उन संदेशों का खुलासा किया, जिनमें कहा गया था कि विश्वास मत के लिए सरकार ने सांसदों को रिश्वत दी। दूतावास के संदेशों में कांग्रेसी नेता सतीश शर्मा के एक राजनीतिक सहायक के हवाले से कहा गया कि सांसदों को मुहैया कराने के लिए 50 करोड़ का कोष बनाया गया है।

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