Monday, July 18, 2011

धमाकों के बाद आए बहानों के फुस्सी बम






आतंकवादियों जैसे पाशविक और बर्बर अपराधियों की कोई श्रेणी नहीं होती। उनके नीचतापूर्ण इरादों का मेल सिर्फ उनके दुष्टतापूर्ण कामों से ही हो सकता है। उनके निशाने पर होते हैं, दुर्भाग्य की मार और हालात के मेल से काल के गाल में समाने वाले मासूम नागरिक, जिनका किसी पक्ष से नाता नहीं होता और अनाम बच्चे।

मुंबई पर हमला करने वाले आतंकी कायर थे, जिन्होंने दुर्भावनापूर्ण ढंग से खुद को गुमनामी के पीछे छुपाया। हम एक ऐसे दौर में हैं, जहां चाहे युद्ध हो, शांति या इन दोनों के बीच कोई अनिश्चित सा धूसर वक्त, नैतिकताएं बड़ी तेजी से उतार फेंकी जा रही हैं।

ऐसे दौर में मुंबई सरीखे बहादुर शहर ने इस तथ्य के साथ जीना सीख लिया है कि आतंकवाद शहरी भीड़भाड़ की ही कीमत है। लेकिन मुंबई नेताओं की अक्षमता या जवाबदेही के चाबुक से बचने के लिए उनके द्वारा की जाने वाली बहानेबाजी कभी स्वीकार करने वाली नहीं है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण अपना दोष दूसरे के सिर मढ़ने से ज्यादा मौलिक नहीं सोच सकते। उन्होंने नेताओं की महारत वाला काम करने, यानी रंग बदलने से पहले कहा कि यह उनके गृहमंत्री आरआर पाटिल का दोष है। लेकिन कलाबाजियां यह नहीं बता सकतीं कि उस रात दूसरी अन्य चीजों के साथ क्यों पुलिस का समूचा बेतार तंत्र ठप पड़ गया था।

दरअसल, शनिवार सुबह एक अखबार के प्रथम पृष्ठ पर एक उम्दा तस्वीर के छपने के बाद कहने को और कुछ नहीं रह गया है। इसमें वर्सोवा बीच पर औंधी पड़ी एक खराब नाव नजर आ रही है। बुलेटप्रूफ कैबिन और गहन समुद्र में रेडियो संदेश पकड़ने की सुविधाओं से लैस यह हाईस्पीड बोट अपने जैसी उन सात नावों में से एक है, जिन्हें 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकियों द्वारा किए गए आक्रमण के बाद शहर की तटरेखा की सुरक्षा के लिए खरीदा गया था।

प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों की कमी के कारण अन्य छह नावें भी इसके पीछे लंगर लगी बेकार खड़ी थीं। इससे ज्यादा हैरानी की बात है कि सरकार ने पर्याप्त ईंधन ही मुहैया नहीं कराया था। हर बोट को हफ्ते में एक घंटे चलने लायक ही पेट्रोल मिला। इस भारी-भरकम कोताही के लिए कौन जिम्मेदार है?

महाराष्ट्र सरकार? या दिल्ली का गृह मंत्रालय, जो कुछ सही होने पर श्रेय हड़पने और कुछ गलत होने पर दूसरों के सिर दोष धकेलने में माहिर है? क्या मुंबई और दिल्ली में कांग्रेस-एनसीपी सरकारों के बीच कोई मंत्री जवाब देने लायक होगा? आप निश्चित तौर पर जानते हैं कि कोई नहीं!

नेता अक्सर बहानों की झड़ी लगा देते हैं। इससे एक दिक्कत होती है। जब वे शब्दों की बौछार करते हैं, आप जानते हैं कि उन्होंने एक सांघातिक संकट को और उलझा दिया है। भारतीयों को आतंकियों से सुरक्षित रखने का पदभार रखने वाले, गृहमंत्री पी. चिदंबरम आमतौर पर शब्दों के अच्छे बाजीगर हैं, पर वे मुंबई धमाकों के बाद बोलते हुए पटरी से उतर गए।

चिदंबरम ने कहा कि ‘किसी खास घटना के मामले में जब कोई गुप्तचरी नहीं होती, तो इसका मतलब गुप्तचर संस्थाओं की विफलता नहीं होता।.. मुंबई पर आसन्न हमले को लेकर कोई गुप्तचर सूचना नहीं थी।’ तो फिर, इसलिए सब ठीक है। सो, अगर आप अनजान हैं, तो आप नाकाम नहीं हुए हैं। आतंकवादियों को वाकई चिदंबरम का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए और उन्हें पहले फोन करना चाहिए। आखिर हमें निर्थक शब्दावली वाली विशेषज्ञता को कब तक झेलना होगा?

अपने सेवाकाल का ज्यादातर हिस्सा गुप्तचर सेवा में बिताने और इस सेवा के प्रमुख के रूप में रिटायर होने वाले एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने मुझे एक सामान्य सा सच बताया: अगर हम पर हमला नहीं होता है, तो ज्यादातर बार इसके पीछे हमारी किस्मत होती है या फिर हमले का कोई खतरा ही नहीं होता है।

राहुल गांधी ने वास्तव में किसी कागज के टुकड़े पर पढ़ा हुआ सरल सा तर्क दुहराया कि यह हमला उन 1 प्रतिशत हमलों में शामिल है, जो कामयाब हो गए, लेकिन 99 प्रतिशत तो नाकाम कर दिए गए। यह उस तरह का बहाना है, जो जरा में भरभरा जाता है।

जो हमले रोक दिए गए, उनके सबूत कहां हैं? अगर पुलिस कोई हमला रोकने में सफल रहती है, तो उसकी हिरासत में एक संदिग्ध होना चाहिए और यह कहानी कि उस संदिग्ध ने कैसी योजना बना रखी थी। मुंबई पुलिस के पास तो ऐसा कुछ भी नहीं रहा है।

मुंबई के नागरिकों के पास एक सीधा सा सवाल है:

राहुल गांधी या किसी भी अन्य वीआईपी नेता की जैसी चाक-चौबंद सुरक्षा है, क्या मुंबई भी वैसी ही सुरक्षित है? अगर नहीं, तो क्यों नहीं? वास्तव में, मुंबई पुलिस ने आतंकियों की हमारी सूची में मोस्ट वांटेड अभियुक्त दाऊद इब्राहीम के भाई की देखभाल के लिए जितनी चिंता दिखाई है, अगर उतनी ही चिंता नागरिकों के लिए दिखाती है, तो मुंबई उसकी कृतज्ञ होगी। छोटा इब्राहीम लगातार मुंबई में फल-फूल रहा है।

मुंबई पुलिस अपने पसंदीदा लोगों को नहीं छेड़ती है। वह तो अंडरवर्ल्ड में उसके विरोधी डॉन छोटा राजन के प्रति भी काफी दयालु है। दोनों ही डॉन को कोई खास नुकसान भी नहीं हुआ है। छोटा राजन तो इतने आराम से है कि वह खुशी-खुशी अखबारों को इंटरव्यू देता है। उसका गुप्त अड्डा कोई बहुत छुपा हुआ भी नहीं है।

हमारे यहां एक बड़ी अक्लमंद सामूहिक चेतना है, जो इस बात को समझती है कि आप ऐसे परेशान वक्तों में आतंकवाद को खत्म नहीं कर सकते। लेकिन अगर सरकार किसी संवेदनहीन, बेरुखी प्रतिक्रिया को नहीं हटा सकती, तो अगले चुनाव में वह खुद हटा दी जाएगी।

M J Akbar
http://www.bhaskar.com/article/ABH-fussi-excuses-come-after-bomb-blasts-2268599.html

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