Monday, July 18, 2011

मगरमच्छ और सयानी बत्तख

एक समय की बात है। एक पहाड़ी पर बहुत सुंदर गांव था। सीधे-सादे ग्रामीण सीढ़ीदार खेतों पर खूब मेहनत से काम करते थे। सबकुछ अच्छा था, लेकिन एक छोटी-सी समस्या थी। गांव में पानी की थोड़ी किल्लत रहती थी। बारिश का समय तो खैर मजे से गुजर जाता था, लेकिन साल के बाकी समय गांववाले पानी के लिए पहाड़ी पर स्थित एक झील पर निर्भर रहते थे। यह झील उनके पुरखों ने बनवाई थी। बारिश के मौसम में मेहनतकश ग्रामीण बाल्टियों से पानी भरकर झील में उलीचते थे, ताकि साल के बाकी दिन उन्हें पानी की ज्यादा परेशानी न हो। यह एक अच्छी प्रणाली थी, जिसकी वजह से ग्रामीणों की सुख-समृद्धि पर कोई आंच नहीं आने पाती थी। झील बहुत अच्छा पिकनिक स्पॉट भी बन गई। यहां कुछ सुंदर बत्तखों का बसेरा था। गांव के बच्चे उन बत्तखों को देखने आते थे। बत्तखें बच्चों को निमंत्रित करती थीं कि आओ और हमारे साथ पानी में तैरो। बच्चों को पानी में बत्तखों के साथ अठखेलियां करना बहुत अच्छा लगता था।

झील एक पवित्र स्थल भी बन गई। ग्रामीण मानते थे कि यह झील उनके लिए जीवनदायिनी है। झील की बत्तखें भी ग्रामीणों के लिए दैवीय शक्तियों की तरह थीं। खासतौर पर सुनहरे परों वाली बत्तखों का एक समूह। ग्रामीण इन सुनहरी बत्तखों को पवित्र मानते थे। जब वे झील भरने के लिए बाल्टियों से उसमें पानी उलीचते थे, तब सुनहरी बत्तखों की स्तुति में गीत भी गाया करते थे। सुनहरी बत्तखों ने एक बूढ़ी सयानी बत्तख को झील के बीचोंबीच खड़े रहने के लिए नियुक्त कर दिया। यह बत्तख कभी-कभार ही अपनी जगह से हिलती थी। ग्रामीण उस बूढ़ी बत्तख के लिए भी प्रार्थना करते। सब कुछ परीकथाओं की तरह था।

लेकिन एक दिन सबकुछ गड़बड़ हो गया। झील में तैरने गए तीन बच्चे लापता हो गए। गांव में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। लोगों ने सभी जगह बच्चों को तलाशा, लेकिन वे कहीं नहीं मिले। अगले सप्ताह दो और बच्चे गुम हो गए। ग्रामीण हैरान थे। केवल सुनहरी बत्तखें और वह बूढ़ी सयानी बत्तख ही इस सवाल का जवाब दे सकती थी कि बच्चे कहां चले गए। लेकिन सुनहरी बत्तखों ने एक शब्द भी नहीं कहा। सयानी बत्तख ने केवल इतना ही कहा कि ऐसा इस गांव में कभी नहीं हो सकता।

अगले हफ्ते चार और बच्चे लापता हो गए। किसी को समझ में नहीं आया कि आखिर बच्चे कहां जा रहे थे। लेकिन एक ग्रामीण को झील के किनारे बच्चों की अंगुलियों के कुछ टुकड़े मिले। उसने और करीब जाकर देखा। ऐसा लग रहा था कि किसी ने बच्चों को खा लिया है। उसे पानी में कुछ हलचल दिखाई दी। झील के किनारे पर कीचड़ था और आकाश में बादल छाए होने के कारण कुछ भी साफ-साफ नजर नहीं आ रहा था। लेकिन इसके बावजूद उस ग्रामीण ने पहचान लिया कि झील में क्या है।

‘पवित्र झील में मगरमच्छ!’ वह जोर से चीखा और गांव की ओर भागा। गांववाले सकते में रह गए। वे एक बार फिर पवित्र बत्तखों की शरण में गए। सयानी बत्तख ने कहा, ‘तुम क्या कह रहे हो? हमारी झील में कोई मगरमच्छ नहीं है। निश्चित ही दूसरे गांवों के ईष्र्यालु लोगों ने हमारे बच्चों को चुरा लिया होगा।’ छह माह के अंतराल में पचास बच्चे लापता हो गए थे। झील के पानी का रंग गंदला लाल हो गया था। तकरीबन रोज ही झील के किनारे बच्चों की हड्डियां पाई जातीं। कुछ ग्रामीणों ने झील पर सवालिया निशान लगाए, लेकिन शेष ग्रामीणों ने उनकी अनदेखी कर दी। ग्रामीणों को लगता था कि जब बूढ़ी बत्तख ने कह दिया कि झील में मगरमच्छ नहीं हैं तो झील में मगरमच्छ हो ही नहीं सकते।

लेकिन एक रात ग्रामीणों को झील से कुछ आवाजें आती सुनाई दीं। वे घबराकर उठे और झील की ओर चल दिए। वहां का नजारा देखकर वे हैरान रह गए। झील के किनारे मगरमच्छों की भव्य पार्टी चल रही थी। वे सभी दावत उड़ा रहे थे और नाच-गा रहे थे। मगरमच्छों के साथ कुछ बत्तखें भी नाच रही थीं। सुनहरी बत्तखों का कुनबा अपनी खोह में था। झील के किनारे सयानी बत्तख चुपचाप खड़ी थी। ग्रामीण दौड़कर सयानी बत्तख के पास गए और कहा, ‘यह सब क्या है? तुमने तो कहा था झील में कोई मगरमच्छ नहीं है।’ सयानी बत्तख ने जरा दुख के भाव के साथ कहा, ‘कभी-कभी जीवन में कुछ समझौते करने पड़ते हैं।’ ग्रामीणों ने पूछा, ‘क्या हमें उन लोगों के साथ भी समझौते करने पड़ते हैं, जो हमारे बच्चों को खा जाते हैं?’

सयानी बत्तख ने जवाब दिया, ‘मैं मानती हूं कि मुझसे गलती हुई है, लेकिन मुझसे इतनी बड़ी गलती नहीं हुई है।’ ग्रामीणों ने कहा, ‘अगर तुम हमें पहले बता देतीं तो हम मगरमच्छों की संख्या बढ़ने से पहले ही उन्हें खत्म कर देते। लेकिन अब तो झील में सैकड़ों की तादाद में मगरमच्छ हैं। तुमने ऐसा क्यों किया?’ सयानी बत्तख चुप्पी साधे रही। कुछ माह बीते। एक खुशनुमा सुबह, जब पानी के भीतर भी सबकुछ साफ-साफ देखा जा सकता था, ग्रामीणों ने देखा कि सयानी बत्तख के पैरों को पानी में एक मगरमच्छ जकड़े हुए है। ग्रामीणों को देखकर मगरमच्छ सयानी बत्तख के पैरों को मुंह में दबाकर भाग गया। ग्रामीण हतप्रभ रह गए। इसका अर्थ यह था कि सुनहरी बत्तखें भी मगरमच्छों से सुरक्षित नहीं हैं। ग्रामीणों ने कहा, ‘बहुत हो चुका। अब हमें ही कुछ करना होगा।’

ग्रामीणों ने एक नई झील खोदनी शुरू कर दी। उन्होंने सीढ़ीदार खेतों की कई सतहों पर अनेक छोटी-छोटी झीलें बनवाईं। उन्होंने झीलों के इर्द-गिर्द लोहे की मजबूत जालियां भी बनवाईं, ताकि उनमें मगरमच्छ प्रवेश न कर सकें। ग्रामीणों ने बाल्टियां भर-भरकर नई झीलें भरीं। एक समझदार ग्रामीण ने पुरानी झील को खाली कर नई झीलों को भरने के लिए एक अंडरग्राउंड पाइप भी ईजाद कर लिया। जल्द ही पुरानी झील सूख गई और मगरमच्छों और बत्तखों को जान के लाले पड़ गए। लेकिन उनकी मिन्नतों पर ग्रामीणों ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। अब ग्रामीणों ने यह समझ लिया था कि झीलें वे बनाते हैं, झीलें उन्हें नहीं बनातीं। तभी से वे सुख-समृद्धि का जीवन बिता रहे हैं।

चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।

http://www.bhaskar.com/article/ABH-alligator-and-clever-duck-1880222.html

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