कल टेबल की सफाई करते वक्तएक पुराना रंगीन कागज मिला। उलट-पलटकर देखा, कुछ इबारतें और एक हवा में हाथ लहराती तस्वीर थी। चेहरा जाना-पहचाना था। हां, याद आया, तीन साल पहले ही तो वे हमारे घर आए थे। हमारे क्षेत्र के एमपी हैं।
कितना बदल गया तीन साल में जमाना! कैसे स्लिम हुआ करते थे सांसद महोदय और अब। खैर.. छोड़िए, क्यों किसी की अच्छी हेल्थ पर नजर लगाई जाए। और ये कागज था उनका चुनावी घोषणा पत्र यानी मैनिफेस्टो। एमपी साहब की हेल्थ से ध्यान हटाकर हमने अपना ध्यान केंद्रित किया मैनिफेस्टो पर।
लोग कहते हैं कि नेता वादे करके भूल जाते हैं, कुर्सी मिलते ही भ्रष्टाचार की चादर ओढ़ लेते हैं, लेकिन हमने ऐसी अफवाहों को दरकिनार कर इस मैनिफेस्टो की सच्चई का अपने साहित्यिक, सकारात्मक और सीधे मन से विश्लेषण करने की ठानी। सब तो ठीक है। आप यकीन मानेंगे? सारी घोषणाएं सही साबित हुईं, वक्त से पहले और उम्मीद से बढ़कर। लोगों का क्या है चिल्ल-पौं मचाते रहते हैं। मैंने एक-एक घोषणा का आकलन किया।
पहली घोषणा ही जोरदार थी कि हम गरीबी दूर करेंगे। पूरी तरह सही। गरीबी दूर हो गई, रिकॉर्ड समय में। हमारे नेताजी ने दो साल में ही तीन मंजिला बंगला, दो गाड़ी, एक फैक्टरी, नौकर-चाकर प्राप्त कर लिए। ऐसा नहीं है कि केवल उनकी गरीबी ही दूर हुई, वे चमचे जिनके पास साइकिल के पंक्चर बनवाने के पैसे नहीं होते थे, अब आल्टो मेंटेंन कर रहे हैं। कहां है गरीबी?
दूसरी घोषणा थी कि शिक्षा का स्तर उठाया जाएगा। सही तो है। सारा शहर जानता है कि नेताजी का बेटा अमेरिका में और बेटी बेंगलुरु में पढ़ रही है। कितना ऊंचा स्तर है शिक्षा का? तीसरी घोषणा थी स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारा जाएगा।
नेताजी के पिताजी, जो चुनाव के पहले तक सीनियर सिटीजन का कंसेशन कार्ड लिए सरकारी अस्पताल के बाहर लाइन में लगे दिखते थे, उनका इलाज आजकल मुंबई में हो रहा है। चौथी घोषणा थी सुरक्षा के व्यापक इंतजाम होंगे। सो तो चुनावी नतीजे आने के दूसरे दिन ही पूरी हो गई थी। तभी से उनके घर पर 24 घंटे एक-चार का गार्ड पहरा दे रहा है।
पांचवीं घोषणा थी कि सुरक्षा के लिए पुलिस की कार्यशैली में व्यापक परिवर्तन लाएंगे। सो भी आ ही गया। पहले जहां एफआईआर लिखवाने के लिए खासी लिखा-पढ़ी करनी पड़ती थी, वहीं पुलिस अब नेताजी के एक ही फोन पर किसी को भी उठा लेती है या किसी को भी छोड़ देती है।
ऐसी ही कई और घोषणाएं थीं, जो नेताजी ने महज तीन साल में पूरी कर दीं। अब लोग कहते हैं शहर को क्या फायदा हुआ? लोगों का क्या है, वो तो बोलेंगे ही। मेरा सवाल सारे बुद्धिजीवियांे से है, जो ये कहते फिरते हैं कि क्रांति की शुरुआत अपने घर से हो, भ्रष्टाचार पहले खुद से मिटाना शुरू करो, बुरी आदतों को पहले खुद छोड़ो। तो फिर अगर कोई देश का विकास अपने घर से शुरू करना चाहे तो हर्ज क्या है? इसमें आखिर गलत क्या है?
हे मेरे शहर, मेरे प्रदेश और मेरे देश के कर्णधार नेतागण, लोग आपको किसी भी तमगे से नवाजते रहें, मुझे तो आपसे कोई शिकायत नहीं है। आपके इस स्वविकास अभियान से भी मुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है। लेकिन मुझे आप केवल इतना-सा दिलासा दे दीजिए कि आज नहीं तो कल, जिस तरह स्वविकास में आपने रिकॉर्डतोड़ कामयाबी हासिल की है, इस विकास की गंगा को मेरे शहर, मेरे प्रदेश और मेरे देश में भी बहा देंगे..।
Source: नितिन आर उपाध्यायhttp://http://www.bhaskar.com/article/ABH-who-says-the-promise-was-not-fulfilled-2260191.html
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Friday, July 22, 2011
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