Monday, July 18, 2011

गंभीर मरीज को डॉक्टर की दरकार

सरकार का ठिकाना महल से बदलकर अस्पताल हो चुका हो, पर जल्दबाजी में अंतिम संस्कार की प्रार्थनाएं शुरू मत कीजिए। डॉ. मनमोहन सिंह के गठबंधन की नियति उसके शरीर या सच कहें तो राजनीतिक तन पर लगे घावों से तय नहीं होगी और न ही माहौल के विषैलेपन से। बल्कि, यह तो घटनाओं के योग-संयोग से होगी, जिन्हें अभी सामने आना है।

सामान्य हालात में यूपीए2 की मेडिकल रिपोर्ट इमरजेंसी हेल्थ बुलेटिन की जरूरत बताती। इसके डीएमके रूपी एक पैर में गैंगरीन हो गई है। गैंगरीन का एकमात्र इलाज है, उसे काटकर अलग कर देना, लेकिन कांग्रेस ने इसकी बजाय पट्टी बांधने का विकल्प चुना है। सात्चिक बाचा की आत्महत्या ने डीएमके की अस्थि मज्जा से उठने वाले रिसते जख्मों में मनहूस और मारक आयाम जोड़ दिया है। कांग्रेस इस संक्रमण से बचने के लिए एंटीसेप्टिक में स्नान कर रही है, पर डॉ. विकीलीक्स ने उसके फेफड़ों में टीबी का संक्रमण पाया है। इस ऐतिहासिक रोग के तमाम जाने-पहचाने घटक दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास द्वारा वाशिंगटन में स्टेट डिपार्टमेंट को भेजी गई रिपोर्टो में पाए गए हैं और दुनिया के सामने इंटरनेट के जरिए जाहिर हुए हैं।

और फिर इन सबसे भी उम्मीद नहीं खत्म होती है, तो बंगाल की एक जिद्दी बहन ने ऐसे वक्त में मरीज के लिए फल और फूल लाने की बजाय एक अहम नस में छोटा चाकू घुसा दिया। ममता बनर्जी ने तय किया है कि बंगाल विधानसभा चुनाव की 292 सीटों में बुजुर्ग पार्टी सिर्फ 64 उम्मीदवारों की औकात रखती है। अब या तो इसे स्वीकार करो या अपना रास्ता नापो। ममता का गणित अपने लिए है और राजनीति में सिर्फ यही तर्क चलता है। यह ग्रहों का विरोधाभासी व्यवहार ही है कि जो ग्रह कांग्रेस की छवि खराब कर रहे हैं, वही सरकार का जीवन भी बचा रहे हैं। डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार इससे बची रहेगी और इससे भी ज्यादा बुरी बात, क्योंकि संसद में कोई और वैकल्पिक गठबंधन बनना संभव नहीं है और कोई भी सांसद जल्दी चुनाव नहीं चाहता।

चूंकि संकट पूरी तरह भयावह नहीं हुआ है, डॉ. सिंह के पास इसे दूर करने का मौका है। जब आपके पास खोने को कुछ बाकी नहीं होता, तो अकेला गंभीर विकल्प कुछ पाने की कोशिश का होता है। डीएमके के साथ गठबंधन खत्म करने के लिए बहुत देर हो चुकी है, लेकिन तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के बाद दोराहे आएंगे, जिन चुनावों में डीएमके का हारना करीब-करीब तय है। इससे कांग्रेस को कुछ न करने के लिए तर्कसंगत कारण मिलते हैं : वोटर द्वारा नकारा जाना गठबंधन की अनैतिकता की पुष्टि कर देगा। डीएमके द्वारा बदला लेने के लिए सरकार गिराने की कोई भी धमकी अर्थहीन है, क्योंकि यह तब तक ऐसा नहीं कर सकता, जब तक कि व्यापक तौर पर बंटा हुआ विपक्ष ऐसा करने का कोई साझा कारण न खोज ले।

लेकिन बचने का अर्थ अथाह समुद्र के बीच लट्ठों पर हिचकोले खाने से ज्यादा तो हो! डॉ. सिंह को इस वर्ष का उपयोग करना है। उनके पास शासन में पड़ चुकी दरार को भरने और भारत को यह भरोसा दिलाने के लिए इससे ज्यादा समय नहीं है कि वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी के लिए सिर्फ जबानी जमाखर्च ही नहीं कर रहे हैं। चूंकि उनकी अपनी पार्टी और गठबंधन के तत्व भ्रष्ट हैं, इसलिए पहली बात उनके लिए ज्यादा आसान है। लेकिन यदि वे उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करते हैं, तो चाहे इसकी जो भी कीमत दे दी जाए, उनकी आहत साख में सुधार की बात असंभव हो जाएगी। सरकार को विचारों के पुनरुत्थान की दरकार होती है और मरम्मत के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की, जो पुन: निर्वाचित होने के बाद से उनके एजेंडा में अनुपस्थित रहे हैं। ऐसा क्यों हुआ, यह इस स्तंभकार की समझ से परे है।

डॉ. मनमोहन सिंह के पास राजनीति की बजाय अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट है, लेकिन निश्चित तौर पर इसी की तो उन्हें जरूरत है। राजनीति, सरकार को अस्पताल तक ले गई है। सिर्फ अर्थशास्त्र ही उसे वहां से बाहर निकाल सकता है।

एम.जे. अकबर
लेखक द संडे गार्जियन के संपादक और इंडिया टुडे के एडिटोरियल डायरेक्टर हैं।

http://www.bhaskar.com/article/ABH-critical-patient-needs-a-doctor-1948782.html

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