Sunday, July 17, 2011

सच से आंखें फेरती सत्ता

सॉलीसिटर जनरल गोपाल सुब्रंाण्यम द्वारा त्यागपत्र की पेशकश यह बताती है कि केंद्र सरकार के अंदर सब कुछ ठीक नहीं और जिन मामलों में वह उच्चतम न्यायालय के सवालों से जूझ रही है उनके संदर्भ में वह आत्ममंथन करने के लिए तैयार नहीं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि सॉलीसिटर जनरल ने त्यागपत्र की पेशकश क्यों की, लेकिन माना यही जा रहा है कि वह सरकार के उस रवैये से आजिज आ गए हैं जिसके तहत उन पर यह दोषारोपण किया जा रहा है कि वह विभिन्न मामलों में उच्चतम न्यायालय के समक्ष सही तरीके से केंद्रीय सत्ता का बचाव नहीं कर पा रहे हैं। पिछले दिनों 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकार का पक्ष रखने के लिए जिस तरह अंतिम क्षणों में उनके स्थान पर एक अन्य वकील को उच्चतम न्यायालय में भेजा गया वह एक तरह से उनके लिए यह संकेत था कि केंद्र सरकार के रणनीतिकार उन्हें पर्याप्त सक्षम नहीं मान रहे हैं। इन स्थितियों में उन्होंने यदि त्यागपत्र देने का निश्चय किया तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार जिन मामलों में शीर्ष अदालत का सामना कर रही है उनमें वह अपनी गलती किसी और में देख रही है। संभवत: वह अभी भी यह महसूस नहीं कर पा रही है कि चाहे 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो अथवा केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूप में पीजे थॉमस की नियुक्ति या फिर काले धन की जांच का-इन सभी में खुद उसके आचरण के चलते उसे उच्चतम न्यायालय और साथ ही आम जनता के समक्ष असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा। अब यह तथ्य है कि 2 जी घोटाला इसलिए हुआ, क्योंकि केंद्र सरकार समय रहते ए. राजा पर अंकुश नहीं लगा सकी। उसने एक तरह से ए. राजा को यह घोटाला करने दिया। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूप में पीजे थॉमस की नियुक्ति के मामले में यह स्पष्ट हो चुका है कि केंद्र सरकार ने जानबूझकर दागदार अतीत वाले अधिकारी को इस पद पर नियुक्त करने की गलती की। इतना ही नहीं, इस गलती की ओर इंगित किए जाने के बाद भी वह पीजे थॉमस की नियुक्ति को सही ठहराने पर अड़ी रही। काले धन की जांच के मामले में भी यह जगजाहिर हो चुका है कि वह तब चेती जब उच्चतम न्यायालय ने उसे फटकार लगानी शुरू की। इस फटकार के बावजूद केंद्र सरकार ने काले धन की जांच के लिए जो भी उपाय किए वे आधे-अधूरे ही थे। कभी उसने अंतरराष्ट्रीय संधियों के आड़े आने की बात कही और कभी यह कहा कि इस मामले में रातोंरात कुछ नहीं हो सकता। केंद्र सरकार के ऐसे ढुलमुल रवैये के कारण उच्चतम न्यायालय को मजबूरी में काले धन की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन करना पड़ा। केंद्र सरकार यह मान रही है कि उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय एक तरह से उसके अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण है और वह उसके फैसले को चुनौती देने का भी मन बना रही है। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं, लेकिन यह भी सही है कि वह आम जनता को यह भरोसा नहीं दिला पा रही है कि उसकी विभिन्न एजेंसियां काले धन की जांच करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस मामले में कहीं कोई कसर नहीं उठा रखी जाएगी। यदि सरकार यह मान रही है कि सॉलीसिटर जनरल उसकी गलतियों पर पर्दा डालने का काम करें तो यह संभव नहीं। यदि सरकार ने गलती की है और वे नजर भी आ रही हैं तो उसके दुष्परिणाम उसे भुगतने ही होंगे।

http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=49&category=&articleid=111716041474019040



No comments: