Monday, July 18, 2011

साख गंवाने के दो साल

यूपीए-2 सरकार के पास अपनी दूसरी वर्षगांठ पर उत्सव मनाने के लिए शायद ही कुछ है। इसका दो साल पहले शुरू हुआ नया कार्यकाल असल में इसकी चमक उड़ने और पिछली कमाई को गंवाने की अवधि रही है। लगातार सामने आते घोटालों ने सरकार की छवि दागदार बनाई, तो बढ़ती महंगाई और जनकल्याण की पहल में टालमटोल ने आम आदमी का हितैषी होने की उसकी साख को प्रभावित किया।

परिणाम यह है कि संसद में भारी समर्थन के बावजूद यह अहसास नहीं होता कि देश में काम करती हुई कोई सरकार है। अगर मनमोहन सिंह सरकार ने इस कार्यकाल में सचमुच कोई बड़ा काम किया हो, तो भी वह कम से कम आमजन को तो नजर नहीं आता। अगर इसकी तुलना यूपीए-1 से करें तो नरेगा, आरटीआई, वनाधिकार कानून जैसी कई उपलब्धियां उसके नाम रहीं, जिससे यूपीए की आम आदमी के संरक्षक की छवि बनी और जिसका लाभ उसे 2009 के आम चुनाव में मिला। तब यह सरकार देश को एक दिशा देती दिखती थी। मगर इस कार्यकाल में यह भटकती और डगमगाती नजर आई है। वैसे अपनी चमक वापस पाने के लिए अभी इस सरकार के पास तीन साल का वक्त है। अभी से भी वह संभाले, तो शायद बहुत देर नहीं हुई है।

भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में चुस्ती बरतकर और दोषियों को सजा दिलाने के लिए न्यायपालिका के सामने सक्रिय होकर वह अपनी छवि पर लगे कुछ दागों को धो सकती है। अगर लोकपाल की स्थापना में वह सकारात्मक नजरिया अपनाती दिखे, तो किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त न करने का प्रधानमंत्री का वादा फिर से विश्वसनीयता पा सकता है। महंगाई पर लगाम और खाद्य सुरक्षा कानून जैसे मसलों पर टालमटोल छोड़कर सरकार आम आदमी की उम्मीदों को फिर से जिंदा कर सकती है। मगर इन सबके लिए सबसे जरूरी यही है कि सरकार एक निश्चित दिशा में चलती दिखे।

Source: भास्कर संपादकीय Last Updated 00:13(23/05/11)
http://www.bhaskar.com/article/ABH-two-years-of-losing-credibility-2125519.html


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