बिना आयोडीन वाले नमक की बिक्री पर रोक होनी चाहिए या नहीं, यह तकरीबन डेढ़ दशक पुराना विवाद है।
1998 में जब देश में यह रोक लगाई गई, तब से कई गैर-सरकारी संगठनों का इल्जाम रहा है कि यह पाबंदी लोगों को घेंघा, बौनेपन, भेंगापन, बुद्धिमंदता, गर्भ में मौत, गर्भपात जैसी व्याधियों से बचाने के लिए नहीं, बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए लगाई गई है।
उलटे इन संगठनों का दावा है कि जिन इलाकों में आयोडीन की कमी नहीं है, वहां के लोगों द्वारा नियमित रूप से आयोडीनयुक्त नमक लेने पर थॉयराइड एवं कुछ अन्य गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। उनमें से ही एक संगठन की याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट ने आयोडीनयुक्त नमक की बिक्री को अनिवार्य बनाने को असंवैधानिक ठहरा दिया है।
मगर इस फैसले के पीछे सुप्रीम कोर्ट की दलील अलग है। कोर्ट के मुताबिक चूंकि यह रोक खाद्य मिलावट अधिनियम-1955 की एक धारा के तहत लगाई गई और उन नियमों का मकसद खाद्य पदार्थो में मिलावट को रोकना है, इसलिए यह प्रतिबंध कानून की कसौटी पर खरा नहीं है।
फिर भी यह देखते हुए कि इस मसले का संबंध लोगों की सेहत से है, कोर्ट ने अगले छह महीनों तक पाबंदी जारी रखने का आदेश दिया है। साथ ही सरकार को निर्देश दिया है कि इस बीच वह ताजा अनुसंधानों एवं उपलब्ध जानकारी के आधार पर अपनी नमक नीति की समीक्षा करे।
अगर वह तब भी प्रतिबंध जारी रखने को जरूरी समझती है तो इसके लिए उसे एक अलग एवं उपयुक्त कानून बनाना चाहिए। जाहिर है, कोर्ट ने आयोडीनयुक्त नमक की आवश्यकता को खारिज नहीं किया है। माननीय न्यायालय की आपत्ति प्रतिबंध की प्रक्रिया पर है और उसकी इच्छा है कि फैसला तर्को की रोशनी में हो।
इस लिहाज से यह विवेकपूर्ण फैसला है। सरकार को आम आदमी की सेहत के हित में अदालत के निर्देशों के मुताबिक कदम उठाने चाहिए।
Source: भास्कर न्यूज Last Updated 00:14(14/07/11)
http://www.bhaskar.com/article/ABH-decide-on-salt-2260217.html
Monday, July 18, 2011
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