देश में प्रारंभिक स्तर पर ही घपले-घोटालों को रोक देने वाली व्यवस्था के अभाव पर हैरत जता रहे हैं संजय गुप्त
देश में एक के बाद एक घोटालों के पर्दाफाश होने का सिलसिला कायम है। ताजा घोटाले उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत केंद्र से भेजे गए धन का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ। इस योजना में घोटाले के कारण दो मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की हत्या हुई और एक उप मुख्य चिकित्साधिकारी की रहस्यमय परिस्थितियों में जेल के अंदर मौत हो गई। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में पिछले पांच-छह वर्षों से घोटाला हो रहा था और इसके चलते करीब तीन हजार करोड़ रुपये की धनराशि इधर-उधर हो गई। कर्नाटक में भी अवैध खनन के रूप में पिछले कई वर्षो से घोटाला किया जा रहा था। लोकायुक्त की रपट के अनुसार इस घोटाले में मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा और उनके परिजन तथा बेल्लारी बंधुओं के नाम से चर्चित दो मंत्री भी शामिल थे। अवैध खनन को संरक्षण देने के कारण 1800 करोड़ रुपये की राजस्व क्षति का अनुमान लगाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के घोटालों की पूरी परतें खुलना अभी बाकी हैं। यह आश्चर्यजनक है कि हमारे देश में घोटालों का खुलासा आमतौर पर तब होता है जब करोड़ों-अरबों रुपये के वारे-न्यारे हो चुके होते हैं। यह भी एक तथ्य है कि घोटाले उजागर होने के बाद उनकी जांच में लंबा समय लगता है। इसके बाद संबंधित मामले न्यायपालिका में लटके रहते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के घोटालों के मामले में भी ऐसा हो। ध्यान रहे कि जब ऐसा होता है तो घोटाले के लिए दोषी लोगों को दंडित करना और कठिन हो जाता है। 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन और राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए घोटाले यही बयान करते हंै कि समय रहते गड़बडि़यों को रोका नहीं जा सका। हालांकि दोनों मामलों में अनेक स्तरों पर यह बात उठी थी कि घोटाला हो रहा है, लेकिन कोई भी उसे रोकने में समर्थ नहीं साबित हुआ। इसका सीधा मतलब है कि हमारे देश में ऐसी व्यवस्था का निर्माण नहीं हो सका है जो घोटाला होने ही न दे अथवा प्रारंभिक स्तर पर ही उसे रोक दे। इसी तरह यह भी स्पष्ट है कि जटिल जांच और कानूनी प्रक्रिया के कारण घोटाले के दोषी लोगों को सजा देना भी मुश्किल है और यह तो जगजाहिर ही है कि घोटाले के कारण सार्वजनिक कोष को होने वाली क्षति की भरपाई कभी नहीं हो पाती। देश में जिस तरह रह-रहकर घोटाले होते रहते हैं उसी तरह सरकारी तंत्र की ओर से अकर्मण्यता का प्रदर्शन भी होता रहता है। बात चाहे खस्ताहाल सड़कों की हो अथवा लगातार बढ़ती अवैध झुग्गी-बस्तियों की या फिर सरकारी जमीन पर होने वाले अतिक्रमण की-ये सारे काम सरकारी तंत्र की आंखों के सामने होते हैं। यह भी एक यथार्थ है कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से चलाई जाने वाली जन कल्याणकारी योजनाओं में अनियमितताएं होती रहती हैं और कोई उन्हें रोकने के लिए तब तक सजग-सक्रिय नहीं होता जब तक कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आ जाता। बावजूद इसके योजनाओं को सही तरीके से लागू करने वाली व्यवस्था का निर्माण नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि अनेक घोटाले तब सामने आते हैं जब सरकारी खातों का ऑडिट होता है। सरकारी खातों के ऑडिट से घोटाला तो पकड़ में आ जाता है, लेकिन सरकारी पैसा हजम करने वाले आमतौर पर बच निकलते हैं। यह ठीक है कि इधर घोटालों में शामिल कुछ नेताओं, नौकरशाहों और कॉरपोरेट जगत के अधिकारियों को जेल भेजा गया है, लेकिन यह कहना कठिन है कि आगे से ऐसे घोटाले नहीं होंगे। ज्यादातर घोटालों में नेताओं का हाथ नजर आता है, फिर भी वे ऐसा कोई तंत्र बनाने के लिए तैयार नहीं दिखते जिससे घोटाले होने ही न पाएं। कर्नाटक में अवैध खनन में अपने मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा के शामिल होने के आरोपों के बाद भाजपा की परेशानी बढ़ गई है। देश की निगाहें भाजपा नेतृत्व पर हैं। अभी तक भाजपा घपलों-घोटालों को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही थी। अब उसके सामने यह साबित करने की चुनौती है कि वह अपने नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों को सहन करने के लिए तैयार नहीं। फिलहाल भाजपा कर्नाटक के मुख्यमंत्री का बचाव करती दिख रही है, लेकिन चौतरफा दबाव को देखते हुए भाजपा नेतृत्व को घुटने टेकने पड़ सकते हैं। भाजपा को इसका अहसास होना चाहिए कि येद्दयुरप्पा की तरफदारी उसके लिए महंगी पड़ सकती है। भाजपा को यह स्मरण रखना चाहिए कि केंद्र सरकार राष्ट्रमंडल खेलों, 2जी स्पेक्ट्रम और आदर्श सोसाइटी से जुड़े घोटालों में जिस तरह पानी सिर से ऊपर गुजरने के बाद हरकत में आई उससे उसकी देश भर में किरकिरी हुई। खुद भाजपा यह कहती रही है कि विपक्ष, आम जनता और न्यायपालिका के दबाव में केंद्र सरकार ने इन घोटालों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की। आखिर ऐसा कहने वाली भाजपा येद्दयुरप्पा के खिलाफ स्वेच्छा से कोई कार्रवाई करने के लिए तैयार क्यों नहीं दिखती? भाजपा इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि लोकायुक्त ने येद्दयुरप्पा और उनके मंत्रियों पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। इसके अतिरिक्त विवादास्पद भूमि आवंटन के एक मामले में अदालत ने येद्दयुरप्पा और उनके परिजनों को राहत देने से इंकार कर दिया है। इन स्थितियों में येद्दयुरप्पा के लिए यही उचित है कि जब तक उन्हें आरोप मुक्त न किया जाए तब तक के लिए वह मुख्यमंत्री पद छोड़ दें। यदि वह ऐसा नहीं करते तो भाजपा नेतृत्व को उन्हें इसके लिए बाध्य करना चाहिए। एक सप्ताह बाद संसद का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है। संसद के इस सत्र में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में हुई एक तरह की लूट के साथ-साथ कर्नाटक में अवैध खनन का मामला अवश्य उछलेगा। यह अच्छा नहीं होगा यदि सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आरोप लगाकर संसद का समय बर्बाद करेंगे। बेहतर हो कि वे इस पर कोई सार्थक बहस शुरू करें कि हर किस्म के घोटालों पर रोक कैसे लगे? संसद के मानसून सत्र में घोटालों के साथ-साथ महंगाई और लोकपाल विधेयक संबंधी मुद्दे केंद्र सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। चूंकि भाजपा खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गई है इसलिए सत्तापक्ष-विपक्ष में तकरार की संभावना कम हो जाती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि घोटालों को रोकने के निर्णायक कदम न उठाए जाएं।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=49&category=&articleid=111717080372058616
Sunday, July 24, 2011
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