जब नॉर्वे में दो लोमहर्षक हमलों की मानवीय त्रासदी से दुनिया सदमे में है, हमलावर के राजनीतिक रुझानों के बारे में सामने आ रही जानकारियां एक नए आतंकवादी खतरे की ओर इशारा कर रही हैं।
आंद्रेस बेहरिंग ब्रेयविक नाम के जिस शख्स पर पहले ओस्लो में विस्फोट और फिर सत्ताधारी लेबर पार्टी के युवा शिविर पर अंधाधुंध फायरिंग करने का आरोप है, वह कोई मानसिक विकृत व्यक्ति नहीं, बल्कि ईसाई कट्टरपंथी धारा से जुड़ा धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक धारा का कार्यकर्ता है, जो एक समय बहु-सांस्कृतिक समाज और आव्रजन का विरोध करने वाली प्रोग्रेस पार्टी से भी जुड़ा था। वह घोर इस्लाम विरोधी है और उसने ओस्लो एवं उतोया द्वीपों में अपनी आतंकवादी कार्रवाइयों को सुनियोजित ढंग से अंजाम दिया।
उसने लेबर पार्टी की सरकार के दफ्तरों और फिर इसी पार्टी की युवा शाखा की बैठक को निशाना बनाया, जो आव्रजन एवं मिली-जुली संस्कृति पर आधारित समाज की समर्थक रही है। स्पष्टत: यह घटनाक्रम सियासी बहसों में नस्ल, मजहब, भाषा और जाति आधारित बहसों को चरम बिंदु तक ले जाने के खतरों को रेखांकित करता है।
ऐसे मुद्दों पर जब कुछ राजनीतिक धाराएं लगातार काल्पनिक या अनुमानित खतरों का शोर मचाती हैं, तो उसका कुछ नौजवानों पर यह असर हो सकता है कि वे खुद ‘न्याय करने’ की राह अख्तियार कर लें।
आरंभिक संकेतों से लगता है कि ब्रेयविक ने यही राह अपनाई। अनेक यूरोपीय देशों में आव्रजन - खासकर 9/11 के बाद से मुसलमानों की मौजूदगी राजनीतिक बहस एवं चुनाव का मुद्दा रहे हैं। धुर दक्षिणपंथी पार्टियां इस चर्चा को जुनून की हद तक ले जाती रही हैं। विचारणीय है कि क्या नॉर्वे को इसी की कीमत चुकानी पड़ी है?
ऐसी तमाम सियासी ताकतों के लिए यह सोचने का विषय है कि एक तरह के आतंकवाद का विरोध करते हुए वे कहीं दूसरे तरह के आतंकवाद की जमीन तो तैयार नहीं कर देती हैं?
Source: भास्कर
http://www.bhaskar.com/article/ABH-a-new-terrorism-2292288.html
Monday, July 25, 2011
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