Monday, July 18, 2011

जनता से बेहतर जज कोई दूसरा नहीं

जब एक अच्छे वकील को एक खराब केस मिलता है तो उसकी सहज बुद्धि उसे बता देती है कि उसे कहानी में थोड़ा फेरबदल करना पड़ेगा। लेकिन जनता कोई भी फैसला सुनाने से पहले सभी सबूतों की अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लेना चाहती है।

घोटाले की कहानी में एक बिंदु के बाद अजीबोगरीब मोड़ आने लगते हैं। इस बार आप लगभग सुनिश्चित हो सकते हैं कि कहानी में यह नया मोड़ जज बनने की कोशिश कर रहे एक वकील के कारण आया है।

वकील को अपने मुवक्किल के प्रति वफादार रहना होता है, लेकिन न्यायाधीश के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी पृष्ठभूमि से ऊपर उठे और कानून का सेवक बनकर काम करे। शुक्रवार को कपिल सिब्बल ने एक भव्य प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर यह घोषणा की कि उनसे पहले टेलीकॉम मंत्रालय की शोभा बढ़ाने वाले ए राजा पूरी तरह और निर्विवाद रूप से निर्दोष हैं। ठीक उसी दिन, उसी शहर में एक न्यायाधीश ने एक खुली अदालत में कहा कि राजा के विरुद्ध केस दर्ज करने के पर्याप्त कारण थे। विशेष सीबीआई न्यायाधीश प्रदीप चड्ढा ने कहा, ‘मैंने पूरे मामले की छानबीन की है और मैं कई दस्तावेजों से होकर गुजरा हूं.. मेरा यह मत है कि राजा के विरुद्ध दर्ज किया गया केस सही है और मामले की सुनवाई जारी रहनी चाहिए।’ अदालतों ने रिकॉर्ड टटोला है और अभियोजन के लिए पुख्ता आधार पाया है। लेकिन एक आधुनिक गांधीवादी की तरह कपिल सिब्बल को इस मामले में न तो कोई बुराई नजर आती है, न सुनाई देती है और न ही वे इस मामले में कुछ बुरा कहना चाहते हैं।

पहले आओ-पहले पाओ के मुताबिक और पहले से तय मानदंडों के आधार पर बांटे गए लाइसेंसों के बारे में सिब्बल ने केवल इतना ही कहा कि यह एक ‘प्रक्रियागत चूक’ हो सकती है। यह भ्रष्टाचार के लिए निहायत चतुराईपूर्वक गढ़ी गई परिभाषा है, जिसे उद्धरणों और सूक्तियों की किताब में जगह दी जानी चाहिए।

यदि कपिल सिब्बल को यह विश्वास है कि वे जो कह रहे हैं, वह सच है तो उन्हें तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि राजा पुन: पद पर बहाल हो सकें। यदि राजा निर्दोष थे तो आखिर सरकार ने इतनी भारी राजनीतिक कीमत चुकाकर उन्हें कैबिनेट से बाहर क्यों किया? तब तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राजा से माफी मांगनी चाहिए। राजा को मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी पर मानहानि का मुकदमा दायर कर देना चाहिए, क्योंकि राजा से उनका मंत्रालय छीन लेना मानहानिपूर्ण और अपमानजनक था। जब राडिया टेप्स मीडिया की सुर्खियों में छाए हुए थे, तब सिब्बल या तो छुट्टियां मना रहे होंगे या सार्वजनिक सेवा के दायित्वों में इतने खोए हुए होंगे कि उन्हें दुनिया-जहान की कोई खबर ही नहीं रही होगी। या शायद एक अच्छे वकील की तरह किसी भी ऐसे तथ्य में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी, जो अभियोजन के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता था।

चूंकि इस्तीफा देने के बाद सिब्बल को भी किसी न किसी काम की दरकार होगी, इसलिए वे बड़ी आसानी से गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाल सकते हैं, क्योंकि पी चिदंबरम को निश्चित ही अपना मंत्रालय छोड़ना पड़ेगा। आखिर चिदंबरम ने ही तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर राजा को न केवल ‘प्रक्रियागत चूक’, बल्कि भ्रष्टाचार के लिए भी दोषी ठहराया था। ऐसा नहीं है कि चिदंबरम को कानून-कायदे की जानकारी नहीं है। चिदंबरम भी सिब्बल जितने ही काबिल वकील हैं। इससे तो यही नतीजा निकलता है कि चिदंबरम इतने सार्वजनिक महत्व के मुद्दे पर जान-बूझकर प्रधानमंत्री को गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे। वैसे भी राजधानी में अफवाहों का बाजार गर्म है कि अगले दौर की अदला-बदली में चिदंबरम अपना मौजूदा मंत्रालय गंवा सकते हैं।

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) विनोद राय ने सिब्बल जैसे महत्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा अपना मंतव्य रखे जाने के बावजूद चुप्पी साधना उचित नहीं समझा। सिब्बल के हस्तक्षेप के बाद भी राय इस पर अड़े हुए हैं कि सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचा है और मुनाफे का अच्छा-खासा हिस्सा निजी क्षेत्र के टेलीकॉम प्लेयर्स के खाते में गया है। उधर न्यायपालिका पर भी शक्तिशाली मंत्रियों की दबाव की रणनीतियों का कोई असर नहीं पड़ा है। निश्चित ही चड्ढा जैसे जजों का तबादला अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर कर दिया जाना चाहिए।

कांग्रेस और डीएमके की स्पेक्ट्रम बिक्री के बीच में जो फासला था, उसे सिब्बल ने खासी छूटवाली कीमतों से पाट दिया है। किन्हीं कारणों से ऐसा लग रहा था कि श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री इस खाई को और चौड़ा करना चाहते थे। निश्चित ही यह अनुमान गलत था। यह बात पूरी तरह कल्पनातीत होगी कि सिब्बल ने सार्वजनिक बयान देने से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात नहीं की होगी। डीएमके-कांग्रेस गठबंधन अब स्पेक्ट्रम घोटाले को गौरव का प्रतीक मानते हुए कंधे से कंधा मिलाकर अगले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जीत की राह पर कदम बढ़ा सकता है। यह सवाल तो कतई नहीं उठता कि सरकार बजट सत्र के दौरान विपक्ष के साथ किसी भी तरह का समझौता करने के मूड में होगी। आखिर यदि राजा ने कुछ भी गलत नहीं किया है तो फिर जांच किस बात की?

जब एक अच्छे वकील को एक खराब केस मिलता है तो उसकी सहज बुद्धि उसे बता देती है कि उसे कहानी में थोड़ा फेरबदल करना पड़ेगा। राजनीतिक वकीलों को लगता है कि वे जनता की अदालत को भी धोखा दे सकते हैं, लेकिन जनता कोई भी फैसला सुनाने से पहले सभी सबूतों की अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लेना चाहती है। जनता से बेहतर जज कोई दूसरा नहीं हो सकता।

एमजे अकबर
लेखक ‘द संडे गार्जियन’ के संपादक और इंडिया टुडे के एडिटोरियल डायरेक्टर हैं।

http://www.bhaskar.com/article/ABH-no-one-better-than-the-people-judge-1736176.html

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