Saturday, July 16, 2011

काले धन पर न्यायिक सक्रियता



विदेशी बैंकों में जमा काले धन को लेकर उच्चतम न्यायालय के अभूतपूर्व फैसले का निहितार्थ बता रहे हैं सुधांशु रंजन



उच्चतम न्यायालय ने एक अभूतपूर्व फैसले में पूर्व न्यायाधीश बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में काले धन पर एक विशेष जांच दल का गठन किया है। जांच दल को विदेशी बैंकों में जमा भारत के काले धन के बारे में जांच करने के साथ-साथ आपराधिक कार्रवाई एवं अभियोजन का भी अधिकार होगा। ऐसा पहली बार हुआ है कि उच्चतम न्यायालय ने सीधे-सीधे जांच का काम अपने जिम्मे ले लिया है। इससे पहले अदालतों ने महत्वपूर्ण मामलों की जांच की निगरानी तो की है, किंतु अन्वेषण सरकारी एजेंसी ने ही किया और प्रगति रिर्पोट अदालत को दी। इस बार भी जांच पुलिस ही करेगी, किंतु यह एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में होगी, क्योंकि अदालत ने स्पष्ट किया है कि उसके पास इतना वक्त नहीं है कि वह पूरे मामले की लगातार निगरानी कर सके। एक पूर्व न्यायाधीश को जांच दल का अध्यक्ष और एक अन्य पूर्व न्यायाधीश को उपाध्यक्ष बनाया गया है। इससे पहले सरकार ने केंद्रीय राजस्व सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया था, जिसके सदस्य हैं सीबीआइ एवं प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक, राजस्व खुफिया के महानिदेशक, नार्कोटिक्स के महानिदेशक एवं सीबीडीटी के अध्यक्ष सहित कुछ अन्य सदस्य। उच्चतम न्यायालय ने पूरी समिति को विशेष जांच दल में शामिल करते हुए उसमें दो पूर्व जजों एवं रॉ के निदेशक को जोड़ दिया है। अदालत ने कड़ी टिप्पणी की है कि इतने बडे़ पैमाने पर काले धन का विदेशों में जाना बताता है कि संविधान के परिप्रेक्ष्य में शासन को दुरुस्त तरीके से चलाने की राज्य की क्षमता क्षीण हो चुकी है। यह नोबेल पुरस्कार विजेता गुनर मिरडल के नरम राष्ट्र की अवधारणा की याद दिलाता है। राज्य जितना ही नरम होगा, कानून बनाने वालों, कानून की रखवाली करने वालों तथा कानून तोड़ने वालों में अपवित्र गठजोड़ की संभावना उतनी ही बलवती होगी। साथ ही अदालत ने यह भी कहा है कि हसन अली एवं काशीनाथ तापुरिया तक से पूछताछ लंबे समय तक नहीं हुई और जब अदालत के निर्देश पर ऐसा किया गया तो कई कॉर्पोरेट घरानों के दिग्गजों, राजनीतिक रूप से शक्तिशाली लोगों तथा अंतरराष्ट्रीय हथियार विक्रेताओं के नाम सामने आए। साथ ही सरकार धीमी गति से चल रहे अन्वेषण का भी कोई संतोषजनक कारण नहीं बता पाई। निर्णय में यह भी कहा गया है कि स्विट्जरलैंड के यूबीएस बैंक को रिटेल बैकिंग के लिए लाइसेंस देने से भारतीय रिजर्व बैंक ने 2008 में इस आधार पर मना कर दिया था कि हसन अली मामलों में प्रवर्तन निदेशालय उसकी जांच कर रहा है। 2009 में उसे लाइसेंस प्रदान कर दिया गया और इस निर्णय को बदलने को कोई कारण नहीं बताया गया। काला धन एक अत्यंत ही गंभीर समस्या है। इसका नकारात्मक प्रभाव केवल अर्थव्यवस्था पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी पड़ता है, क्योंकि आतंकवादी गतिविधियों में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। सवाल उठता है कि क्या विशेष जांच दल के गठन से काला धन वापस लाने की प्रक्रिया तेज हो पाएगी? हवाला मामले में उच्चतम न्यायालय की निगरानी में की गई जांच के बावजूद एक भी आरोप पत्र ट्रायल कोर्ट में खरा नहीं उतरा और सभी अभियुक्त दोषमुक्त हो गए। अभी 42 देशों के बैंको में भारत का काला धन है। इनमें 26 देशों से भारत सरकार की सहमति हो गई है। दरअसल, 2008 के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के बाद पूरे विश्व की नजर इस समस्या पर गई और संयुक्त राष्ट्र ने इस बारे में प्रस्ताव पारित किया, जिससे इन देशों के ऊपर दबाव बढ़ा, किंतु अभी भी कई देश अपने गोपनीय कानून को बदलने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका में फ्लोरिडा की अदालत में यूबीएस बैंक के विरुद्ध एक मुकदमा दायर हुआ और बैंक उन चार हजार अमेरिकियों के नाम देने पर सहमत हो गया जिनके खाते उस बैंक में थे, किंतु स्विट्जरलैंड की संसद ने उस करार को रद कर दिया और कहा कि वह जुर्माना भरना पसंद करेगा, किंतु गोपनीयता कानूनों के साथ समझौता नहीं करेगा। दरअसल, कुछ देशों की अर्थव्यवस्था ही गोपनीय खातों मे जमा काले धन पर चल रही है। विशेष जांच दल पूर्व जज की अध्यक्षता में हो या किसी अन्य की, उन टैक्स हैवंस पर उसका कोई असर नहीं होगा और भारत सरकार को उन देशों के साथ बातचीत कर समझौते के लिए तैयार करना पडे़गा। यह राजनयिक प्रक्रिया एवं अंतरराष्ट्रीय दबाव से ही संभव है, किंतु उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित जांच दल का एक लाभ अवश्य होगा कि वह सरकार को इसके लिए आवश्यक कार्रवाई करने के लिए उचित निर्देश दे पाएगा। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि असफलता संवैधानिक मर्यादाओं या राज्य को प्राप्त शक्तियों की नहीं है, बल्कि उन व्यक्तियों की है जो विभिन्न एजेंसियों को चला रहे हैं। यहां नागरिक के मौलिक अधिकारों के हनन का सवाल है। संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत कानून की नजर में सभी समान हैं। अदालत ने महसूस किया है कि यहां कानून तोड़ने वालों को राज्य का संरक्षण मिल जाता है। विदेशों में जमा काले धन की समस्या का हल तो होना चाहिए, किंतु इस पूरी बहस में एक बात दब गई है कि देश के अंदर का काला धन भी उतनी ही बड़ी चुनौती है और उसे भी बाहर लाने के लिए उतनी ही मशक्कत करने की जरूरत है। हर दिन जायदाद की खरीद-फरोख्त में काले धन का इस्तेमाल होता है। जमीन या मकान की आधी से अधिक कीमत नकद दी जाती है, जिससे राज्य को कर एवं स्टांप ड्यूटी का नुकसान होता है। विशेष जांच दल को देश के अंदर के काले धन को उजागर करने का भी प्रयास करना चाहिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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