Friday, August 5, 2011

प्यार, दोस्ती और लोकपाल

लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी की बैठकों की विफलता ने मुझे विचलित कर दिया है। पैनल में हमारे कुछ सबसे प्रतिष्ठित, प्रतिभाशाली और दक्ष व्यक्ति शामिल थे, इसके बावजूद वे एकमत होते नहीं लगे। इससे भी बुरा यह रहा कि दोनों पक्ष टीवी पर आकर एक-दूसरे को गलत ठहराते रहे।

मैं दोनों पक्षों के व्यक्तियों से निजी तौर पर मिला हूं और अगर उनके तर्को को सुना जाए तो वे दोनों ही अपनी-अपनी जगह उचित मालूम पड़ते हैं। सिविल सोसायटी के ‘हार्ड बिल’ के बरक्स सरकार के ‘सॉफ्ट बिल’ के संबंध में कई लेख लिखे जा चुके हैं। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यह गतिरोध क्यों आया है और हम इसे कैसे तोड़ सकते हैं?

इसका एक कारण यह भी था कि दोनों पक्षों की बातचीत में गैर-परंपरागत रवैये का अभाव नजर आया। मैं बैंकिंग क्षेत्र में था। वहां मैंने एक ऐसे विभाग में काम किया था, जो दिवालिया कंपनियों के साथ डील करता था। हमें अक्सर एक कंपनी के ऐसे प्रमोटर के साथ काम करना पड़ता था, जिसने हमसे झूठ बोला था और बैंक को भुगतान नहीं किया था।

हम उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई कर सकते थे, उसकी संपत्ति जब्त कर सकते थे और संभवत: उसे जेल भी भिजवा सकते थे। लेकिन हमें उसकी जरूरत भी थी, क्योंकि वह किसी भी अन्य बैंकर की तुलना में बिजनेस को बेहतर ढंग से समझता था। इसलिए हमने उसके साथ अच्छा सलूक किया और एक ऐसी योजना बनाई, जो सभी के लिए कारगर साबित हुई।

इस तरह के सौदे-सुलह कठिन जरूर होते हैं, लेकिन असंभव नहीं हैं। किसी शक्तिशाली प्रतिपक्ष के साथ विवाद के मसले पर बातचीत करते समय आपके पास एक ही मार्गदर्शक सिद्धांत होता है: अभिप्रेरणा यानी किसे क्या मिलता है और बदले में कौन कितना चुकाता है। लोकपाल पैनल भी इसी तरह है।

सरकार सिविल सोसायटी की तुलना में कहीं अधिक सशक्त है। ऐसी स्थिति में सिविल सोसायटी सख्त रवैया नहीं अख्तियार कर सकती। वह नैतिकता का दम नहीं भर सकती। वह मीडिया को यह भी नहीं कहती रह सकती कि सरकार कितनी अन्यायपूर्ण है। इससे काम नहीं चलेगा।

सिविल सोसायटी के सदस्य राजनेताओं से कह रहे हैं कि वे अपनी शक्तियों को त्याग दें। यह ऐसा ही है कि किसी से यह कहा जाए कि वह अपनी लोडेड गन हमारे हवाले कर दे। जाहिर है, ऐसी स्थिति में वह आपका प्रतिरोध करेगा।

सिविल सोसायटी का ‘हार्ड बिल’ ज्यादा प्रभावी है, लेकिन लगता नहीं कि यह पास होगा, क्योंकि सरकार इसे पसंद नहीं कर सकती। सरकार का ‘सॉफ्ट बिल’ कम प्रभावी है, लेकिन ज्यादा संभावना यही है कि संसद में वह पारित हो जाए। यह अड़चन है। यदि आप सिविल सोसायटी की जगह होते तो क्या करते?

बहुत संभव है कि एक और अनशन इस समस्या का सही समाधान साबित न हो। पहली बात तो यह कि संभवत: इसे अप्रैल के अनशन की तरह समर्थन न मिले। लोग अब उससे आगे निकल चुके हैं। अब वे कानूनी पेचीदगियों पर इतने उत्साहित नहीं होंगे।

वहीं बाबा रामदेव ने भी अब अनशन करने वालों के लिए बहुत अवसर नहीं छोड़े हैं। सरकार भी अगले अनशन का मुकाबला करने के लिए अब पहले से बेहतर ढंग से तैयार है। यदि अनशन विफल रहता है तो सिविल सोसायटी के समक्ष विश्वसनीयता खो देने का खतरा होगा और पूरे लोकपाल आंदोलन को एक विफलता मान लिया जाएगा।

यह भावुक होने का समय नहीं है। सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों को समझना चाहिए कि वे एक ताकतवर सरकार से बात कर रहे हैं। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला यह कि फिलहाल कांग्रेस का कोई स्पष्ट भरोसेमंद विकल्प नहीं है। दूसरा यह कि लोकपाल के हर चरण में सरकार के सहयोग की जरूरत है और बिल पास होने के बाद भी होगी। लोकपाल भ्रष्टाचार से हमारी रक्षा कर सकता है, लेकिन यदि किसी अफसर ने किसी फाइल को मंजूरी ही नहीं दी तो?

सरकार की मदद के बिना लोकपाल नाकाम हो जाएगा। इससे पहले कि लोकपाल दम तोड़ दे, मैं सिविल सोसायटी सदस्यों से आग्रह करना चाहूंगा कि वे वास्तविकता को समझें। इसका यह मतलब नहीं है कि वे हार मान लें। इसका केवल यही मतलब है कि वे सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के बजाय एक ऐसे ‘सेट ऑफ इंसेंटिव्ज’ पर काम करें, जो सभी के लिए कारगर हो। मेरे पास तीन सुझाव हैं, जिन पर पैनल विचार कर सकता है:

पहला सुझाव। मैं जानता हूं कि यह जरा विवादास्पद है और इस पर अभी तक बात नहीं हुई है। हमारे मौजूदा नेता तभी बिल पर साइन करेंगे, जब वे सुरक्षित अनुभव करें। मिसाल के तौर पर सांसदों को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए, लेकिन संभवत: किसी आगामी तिथि से। इस सुझाव को हजम करना आसान नहीं होगा, लेकिन कम से कम इस तरह हमारे पास थोड़ी उम्मीद तो होगी। दूसरा सुझाव यह कि प्रावधानों में सुधार की गुंजाइश हो।

कोई भी पक्ष यह दावा नहीं कर सकता कि वह एक परफेक्ट कानून का मसौदा तैयार करेगा। जो बिल हमारे बुनियादी प्रशासनिक ढांचे को बदलकर रख देगा, उसमें लगातार सुधार की जरूरत होगी। पैनल के सदस्यों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे तीन साल बाद फिर बैठें और कानून के क्रियान्वयन के अनुभवों से सबक लेते हुए इसमें जरूरी सुधार करें। यह लचीलापन दोनों पक्षों को पहले आम मसौदे पर एकमत होने में मदद करेगा।

तीसरा सुझाव है आधिकारिक व्हिसल ब्लोअर प्रावधान। लोकपाल एक जांच प्राधिकारी है, लेकिन वह इतने बड़े देश के हर भ्रष्ट व्यक्ति की जांच नहीं कर सकता। लोकपाल को सूचनाओं का खुलासा करने और उन्हें आला अफसरों से बचाने के लिए व्हिसल ब्लोअर्स की एक प्रणाली तैयार करनी चाहिए (एक आधिकारिक विश्वसनीय विकीलीक्स जैसा कुछ)।

यदि सभी पक्ष एक-दूसरे के इंसेंटिव के अनुरूप कार्य करें, तभी हम एक ऐसा उपयुक्त लोकपाल बिल पा सकेंगे, जिसे भविष्य में संशोधित भी किया जा सकेगा।

यह सिविल सोसायटी की जीत ही होगी और सरकार भी अपनी विश्वसनीयता बनाए रखेगी। तो पैनल के सदस्यो, अगली बार जब आप मिलें तो साथ-साथ खाना खाएं, एक-दूसरे को समझें, थोड़ा प्यार जताएं और कुछ कर दिखाएं। गुड लक!
Source: चेतन भगत | Last Updated 01:28(30/06/11)
http://www.bhaskar.com/article/ABH-love-friendship-and-ombudsman-2229511.html

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