अहम तो यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठ रही है। शुरुआत ऐसे ही होती है। अंग्रेजों के विरुद्ध भी ऐसा ही हुआ। पहले मंगल पांडे, फिर झांसी की रानी और उसके बाद फिर और कोई.. और इसी तरह एक चिंगारी दावानल बन गई।
तजुर्बे बताते हैं कि एक डर को हटाने की बात रहती है बस, जहां डर हटा, आंदोलन शुरू हो जाता है। ‘वेक अप इंडिया’ फिल्म में मैंने अटल बिहारी वाजपेयी से प्रेरित किरदार निभाया है। अटलजी को एक जेनुइन नेता माना जाता है, लेकिन वर्तमान में अनेक राजनीतिज्ञ ‘नेता’ नहीं, बल्कि ‘पॉलिटिशियन’ के रूप में काम कर रहे हैं।
मेरे द्वारा अभिनीत किरदार कहता है- ‘मैं पॉलिटिशियन नहीं, नेता हूं। पॉलिटिशियन तो इंसानियत से बड़ा होता है।’ कहने का मतलब,‘पॉलिटिशियन’ के लिए राजनीति बिजनेस है, जबकि ‘नेता’ के लिए इसके मायने सेवा है।
अन्ना हजारे भी नेता हैं, उनका उद्देश्य सेवा है, अपना कोई निजी स्वार्थ-प्राप्ति नहीं। मेरा तो यहां तक मानना है कि अपने राजनीतिक तकाजों के चलते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मजबूर हैं, अन्यथा वे भी अन्ना को समर्थन देते।
इसी तरह मेरी लालू प्रसाद यादव पर आधारित किरदार निभाने की भी बहुत इच्छा है। फिल्म या टीवी के अपने सामाजिक सरोकार हैं, यह दीगर बात है कि वे इस पर अपेक्षाकृत कम ध्यान देते हैं। पहले 80 के दशक में जैसे दूरदर्शन में काम हुए, वैसा काम अब नहीं दिखता है।
अब तो आलम यह है कि अप्रशिक्षित लोग आकर क्रिएटिव हेड का काम देख रहे हैं। जिन्हें कहानी से मतलब नहीं है। वे टीआरपी के लिए कई दफे मूलकथा में बदलाव करते रहते हैं। हालांकि अब भी अच्छा काम करने वाले लोग हैं, पर पहले के अनुपात में कम।
दूरदर्शन के जमाने में कामकाज को लेकर लोग ज्यादा सीरियस थे। पहले पैसे की कमी थी, इसलिए कम पैसे में बेहतर करने का दबाव रहता था और लोग इसमें जुटे रहते थे। वर्तमान में बड़ी कंपनियां ढेर सारा पैसा लगा रही हैं।
सारा गणित उनके अनुसार तय होता है। वैसे इन दिनों टीवी पर चला सीरियल ‘बालिका वधू’ सामाजिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाला सीरियल है, इसमें बालविवाह और अन्य सामाजिक कुप्रथाओं के संबंध में दिखाया गया है।
Source: अंजन श्रीवास्तव | Last Updated 00:10(21/08/11)
साभार:-दैनिक भास्कर
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