Wednesday, August 10, 2011

ठीक नहीं सीएजी पर सरकार का प्रहार

सरकारी खर्चो की निगरानी की व्यवस्था पर जागरण के सवालों के जवाब दे रहे हैं लोक लेखा समिति के अध्यक्ष डॉ। मुरली मनोहर जोशी
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर संसद की लोक लेखा समिति की रिपोर्ट का विवाद अभी सुलझा भी नहीं है कि समिति के सामने एक और रिपोर्ट आ गई है। राष्ट्रमंडल खेलों पर नियंत्रक व महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों की जांच उसे करनी है। समिति के अध्यक्ष डॉ। मुरली मनोहर जोशी जांच के लिए तो पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन वह केंद्र सरकार, खासकर सत्ताधारी दल के रवैये से खासे चिंतित भी हैं। संवैधानिक संस्थाओं, विशेषकर सीएजी पर सरकार के प्रहार का विरोध करते हुए वह दो टूक कहते हैं कि पीएसी व सीएजी न हों तो सरकार निरंकुश हो जाएगी और जवाबदेही खत्म हो जाएगी। डॉ. जोशी से विशेष संवाददाता रामनारायण श्रीवास्तव ने विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं चर्चा के प्रमुख अंश- राष्ट्रमंडल खेलों पर नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट आई है, उस पर लोक लेखा समिति (पीएसी) की क्या भूमिका रहेगी? अभी तो यह रिपोर्ट सदस्यों के पास जाएगी। इसके बाद रिपोर्ट की पृष्ठभूमि बताने के लिए सीएजी के साथ विमर्श किया जाएगा। विभिन्न एजेंसियों, जिनका इससे संबंध है, के पास हम अपनी प्रश्नावली भेजेंगे। जहां जरूरत होगी, वहां उनके मौखिक साक्ष्य भी होंगे और उसके बाद पीएसी अपना प्रतिवेदन देगी। रिपोर्ट में प्रधानमंत्री कार्यालय पर सीधी टिप्पणी की गई है, तो क्या समिति प्रधानमंत्री से पूछताछ करेगी? अभी तो रिपोर्ट आई है। उसका पूरी तरह अध्ययन किए बिना कुछ नहीं कह सकते। रिपोर्ट को कुछ तो देखा ही होगा? थोड़ा-बहुत देखने से कुछ नहीं होता। साढ़े सात सौ पृष्ठों की रिपोर्ट है। पूरा देखने के बाद ही पता लगेगा कि किस अधिकरण को, किस अधिकारी को बुलाना है। उसे देखने के बाद ही निर्णय होगा। क्या पहले कभी सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में प्रधानमंत्री कार्यालय पर सीधे आक्षेप लगाया है? देखिए, 2 जी पर जो रिपोर्ट थी उसमें थोड़ी सी प्रतिकूल टिप्पणी तो थी ही। सीधे नहीं होता, कई बार अप्रत्यक्ष होता है। जहां सीधी भूमिका होती है, वहां सीधी टिप्पणी होती है। ऐसा नहीं है कि पीएसी पूरी तरह सीएजी के अनुरूप ही चलती है। हम उसकी छानबीन करते हैं। सीएजी जो कहती है और मंत्रालय जो कहता है उसके आधार पर हम तय करते हैं। सीएजी हमारे लिए पत्थर की लकीर हो, यह जरूरी नहीं है। वह सहायक होती है, एक विशेषज्ञ सलाह है। निर्णय समिति को करना होता है। सदन में रिपोर्ट आ गई है, अब पीएसी उसे कब तक लेगी? (सहजता के साथ) पेश हो गई है तो वह आ गई है। अब सभी सदस्यों के पास जाएगी, वे पढ़ेंगे। उसके बाद अपने विचार देंगे। इस बीच में संबंधित मंत्रालय व अधिकरण से भी पूछताछ होगी। वे भी अपने विचार देंगे। जो भी हमें दोषी मिलता है, हम निष्पक्ष भाव से उसका दोष तय करते हैं? 2जी मामले में रिपोर्ट की क्या स्थिति है? लोकसभा अध्यक्ष ने उसे लौटाया है, हमने उसे विचार के लिए फिर से समिति के सदस्यों के पास भेज दिया है। इसमें कितना समय लगेगा? मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं। समिति के सदस्य कितना समय लगाते हैं। कितना विचार करते हैं, उस पर निर्भर करता है। कुछ नए सदस्य आए हैं, वे भी पढ़ेंगे। उसके बाद विचार करेंगे। रिपोर्ट को लौटाने की क्या वजह रही, कोई कमी थी या कुछ और कारण? रिपोर्ट में कोई कमी नहीं है। उसकी राजनीति उस समिति के साथ समाप्त हो गई। मैं समझता हूं कि नई कमेटी उस राजनीति से मुक्त होकर काम करेगी। लेकिन नई समिति में भी कुछ सदस्यों ने इस मामले को उठाया है? वह तो उनका अधिकार है। कोई भी सदस्य नियम के तहत मामला उठा सकता है। पिछली बार क्या हुआ, उसके पीछे की कहानी तो सबको मालूम है। सभी राजनीतिक दलों का यह दायित्व है कि संसदीय समितियां गरिमा के अनुरूप काम करें। अगर संसदीय समिति, विशेषकर पीएसी व सीएजी की गरिमा को घटाया जाएगा या नष्ट किया जाएगा तो ये एक तरह से जनतंत्र के ऊपर आघात होगा। पिछली समिति ने तो बहुमत के आधार पर रिपोर्ट खारिज की थी? (थोड़ी तल्खी के साथ) हर समिति में सत्ताधारी दल का बहुमत होता है। अब यदि बहुमत के आधार पर निर्णय कराने लगेंगे तब तो समिति की जरूरत नहीं है, जवाबदेही की जरूरत नहीं है। अगर आप सरकार के खर्च व विपक्ष की अध्यक्षता वाली समिति से जांच के इस संतुलन को खत्म कर देंगे तो आप अनियंत्रित जनतंत्र की तरफ जा रहे हैं। इससे तो आप समितियों पर आघात करेंगे, संसद पर आघात करेंगे, फिर आप सुप्रीमकोर्ट पर आघात करेंगे, संविधान पर आघात करेंगे, ऐसे कहां तक जाएंगे? जब मंत्री ही सदस्यों को भड़काने लगें कि ऐसा करो वैसा करो, तो कैसे चलेगा? पिछली समिति में कुछ ऐसे कृत्य हुए थे। लेकिन मैं जब तक अध्यक्ष हूं या संसद का सदस्य हूं, तब तक संसदीय प्रणाली के तहत भ्रष्टाचार किसी भी कोने में होगा, मैं उसका खुलासा करने में कोई कोताही नहीं करूंगा। इन हालात में भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए आप क्या सोचते हैं? मुझे सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि सरकार की तरफ से सीएजी पर आक्रमण हो रहे हैं। अगर सीएजी जैसी कोई संस्था न हो तो सरकार तो निरंकुश हो जाएगी। पीएसी व सीएजी ही वे संस्थाएं हैं जो सरकार को निरंकुशता से रोकती हैं। अगर बिना जाने प्रधानमंत्री यह कह दे कि सीएजी ने प्रेस कांफ्रेंस क्यों की थी तो मैं बहुत विनम्रता से कहूंगा कि यह सीएजी का कर्तव्य है कि वह जनता को बताए। लोकपाल विधेयक संसद के सामने है। क्या इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा? लोकपाल लाने से भ्रष्टाचार रुकेगा या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है, क्योंकि यह एक तंत्र है। तंत्र मात्र से कोई चीज सुधरेगी, यह कहना कठिन है। तंत्र रोकथाम का रास्ता देता है। हमें लोकपाल पर आपत्ति नहीं है। आज की परिस्थिति में मैं उसे उचित मानता हूं और उसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हों, यह भी जरूरी है। ताकि जनता को भरोसा रहे। केजी बेसिन मामले को लेकर भी सीएजी रिपोर्ट की चर्चा है, उस पर क्या करेंगे? मैंने यह सवाल किया हुआ है। एक अखबार में इस बारे में रिपोर्ट छपी थी कि सीएजी की रिपोर्ट में यह सब है। सरकार ने उसका कोई खंडन नहीं किया। मंत्री तो यहां तक कह रहे हैं कि रिपोर्ट को सनसनीखेज न बनाएं? इसका क्या मतलब? सरकार ने ही सीएजी से कहा था कि छह क्षेत्रों की गहराई से जांच कीजिए तो अब क्यों घबरा रहे हैं?
साभार:-दैनिक जागरण
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=8&edition=2011-08-08&pageno=6#id=111718222774232120_8_2011-08-08

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