Wednesday, August 10, 2011

कैग पर अनुचित प्रहार

कैग यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक पर कांग्रेस के शाब्दिक प्रहार से यह साफ हो गया कि संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करके उन्हें कमजोर करने की इस दल की प्रवृत्ति बरकरार है। कांग्रेस प्रवक्ता ने नीतिगत मुद्दों पर कैग केअधिकार क्षेत्र को लेकर जिस तरह सवाल उठाए वह देश को गुमराह करने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं। कम से कम कैग सरीखी संवैधानिक संस्था को कांग्रेस अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल से यह सीखने की जरूरत नहीं है कि क्या उसके अधिकार क्षेत्र में है और क्या नहीं? बेहतर होगा कि कांग्रेस कैग की खामियां गिनने के बजाय अपने उन नेताओं को उनके अधिकार क्षेत्र के बारे में समझाए जिनके कारण उसे शर्मिदगी का सामना करना पड़ रहा है और जिनकी गैर जिम्मेदारी के कारण देश को अरबों रुपये की क्षति हुई-पहले 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में और फिर राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में। क्या कांग्रेस यह चाह रही है कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में निर्धारित धनराशि से 15 गुना ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए कैग की ओर से दिल्ली और केंद्र सरकार को प्रशस्ति प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता? सवाल यह भी है कि क्या कैग की ओर से उन प्रमाणों की अनदेखी कर दी जाती जो सिर्फ घोटाले बयान कर रहे हैं? कांग्रेस ने कैग को अपनी सीमा में रहने की जो नसीहत दी है वह एक तरह से इस संवैधानिक संस्था को धमकाने की कोशिश है। कांग्रेस की परेशानी समझी जा सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह अशोभनीय आचरण करे। यदि कांग्रेस कैग के निष्कर्षो से सहमत नहीं तो फिर उसे संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए अपनी बात लोक लेखा समिति में कहनी चाहिए, जैसा कि वह विपक्षी राजनीतिक दलों को सलाह देने में लगी हुई है। कांग्रेस की इस चिंता का भी कोई मूल्य-महत्व नहीं कि संसद में पेश किए जाने से पहले कैग की रपट सार्वजनिक कैसे हो गई? यह ठीक है कि कैग की रपट लीक नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन अब जब उसे संसद में पेश कर दिया गया है तब फिर बहस का मुद्दा रपट के निष्कर्ष होने चाहिए। संभवत: कांग्रेस इन निष्कर्षो का सामना करने के लिए तैयार नहीं और इसीलिए वह बेवजह आक्रामक रवैया अपना रही है। यह रवैया नया नहीं, क्योंकि इतिहास इसकी गवाही देता है कि कांग्रेस जब-जब सत्ता में आई है, उसने संवैधानिक एवं स्वायत्त संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश की है। देश इससे अच्छी तरह परिचित है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता ने तमाम आपत्तियों के बावजूद किस तरह एक दागदार छवि वाले व्यक्ति को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाने की कोशिश की थी। यह भी जगजाहिर है कि केंद्रीय सत्ता की ओर से उच्चतम न्यायालय को अपने दायरे में रहने की हिदायत दी जा चुकी है। उसे यह हिदायत सिर्फ इसलिए दी गई, क्योंकि उसने यह कहा था कि गोदामों में अनाज को सड़ाने से बेहतर है उसे गरीबों के बीच बांट देना। यदि कांग्रेस सरकारी व्यय की निगरानी के संदर्भ में कैग की कार्यकुशलता और दक्षता की सराहना नहीं कर सकती तो फिर बेहतर यही होगा कि वह मौन धारण करे।
साभार:-दैनिक जागरण
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=8&category=&articleid=111718304374093656

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