Thursday, August 11, 2011

निर्णायक प्रतिरोध का समय

हम सभी का सामना किसी ऐसे ‘अंकल’ से हुआ होगा, जो समय-समय पर हमें याद दिलाते रहते हैं कि इस देश का भगवान ही मालिक है। उनकी हर बात का लब्बोलुआब यह रहता है कि भारत एक भ्रष्ट और नाकारा देश है, जहां जिंदगी गुजारना मुश्किल है। वे हमें बताते हैं कि आरटीओ से लेकर राशन की दुकान और नगर पालिका तक हर सरकारी अधिकारी घूस खाता है। वे हमें यह भी बताते हैं कि कोई भी सरकारी महकमा ठीक से अपना काम नहीं करता।

गड्ढों से भरी सड़कें, खस्ताहाल सरकारी स्कूल, बीमार अस्पताल, ये सभी ‘अंकल’ की थ्योरी को सही भी साबित करते हैं। उनसे बहस करना कठिन है, क्योंकि वे गलत नहीं हैं। हमारे यहां सत्ता की तूती बोलती है, न्याय की आवाज दबकर रह जाती है, समानता का कोई नाम नहीं है। चाहे यह सब सुनने में कितना ही दुखद क्यों न लगे, लेकिन सच्चाई यही है।

लिहाजा, ‘अंकल’ अपना राग अलापते रहते हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता। ऐसा लगता है जैसे उन्हें इस बारे में कोई भी शक नहीं है। निराश ‘अंकल’ हमारी हर चीज पर संदेह करते हैं और बुराइयों को उभारकर सामने रखते हैं। यदि कोई व्यक्ति देश को सुधारने का बीड़ा उठाता भी है तो वे यह घोषणा कर देते हैं कि उसकी हरकतों के पीछे कोई ‘गुप्त एजेंडा’ होगा।

यहीं पर ‘अंकल’ गलती कर जाते हैं। एक गंभीर गलती। क्योंकि समस्याएं गिनाना एक बात है और समस्याओं को सुलझाने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देना दूसरी। साफ-सुथरे समाज की चाह रखना एक बात है और समाज को सुधारने का प्रयास करने वालों की नीयत पर शक करना दूसरी। सिनिसिज्म या निराशावाद कोई तर्क नहीं है, वह एक रवैया है। क्योंकि तथ्य यह है कि देश में आज भी अच्छे लोग हैं। सरकारी दफ्तरों में भी कुछ अच्छे लोग हैं। समस्या यही है कि उनकी आवाज को दबा दिया जाता है।

मुझे पूरा भरोसा है कि यह कॉलम पढ़ने वालों में से अधिकांश लोग ‘अंकल’ की तरह निराशावादी नहीं हैं। क्योंकि ‘अंकल’ तो अखबार को रद्दी के ढेर में फेंक देंगे और कहेंगे कि इस तरह के फिजूल कॉलम से कुछ भी नहीं हो सकता।

मैं आपको कोई कारण नहीं गिनाना चाहता कि हमें अन्ना का समर्थन क्यों करना चाहिए। यह अन्ना की गरिमा के साथ अन्याय होगा कि उन्हें अपने लिए समर्थन की याचना करनी पड़े, जबकि वे एक भ्रष्ट सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।

मैं आपका ज्यादा समय लिए बिना कुछ तथ्यों को दोहराना चाहूंगा। अन्ना ने अप्रैल में अनशन किया, जो जल्द ही एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन गया। चिंतित सरकार ने एक प्रभावी लोकपाल बिल बनाने पर सहमति जताई, आंदोलनकारियों के साथ हाथ मिलाया और सैद्धांतिक रूप से अन्ना के संस्करण पर राजी हो गई। तबसे लगातार सरकार अन्ना की टीम का अपमान कर रही है। उसने उनके मसौदे को एक तरफ पटक दिया और अपना स्वयं का एक मसौदा बनाया, जो कि लगभग निर्थक है।

सरकार संसद में जो मसौदा प्रस्तुत कर रही है, वह भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाएगा। महज 0.5 फीसदी सरकारी अधिकारी इसके दायरे में आते हैं। हमारी भ्रष्ट राशन की दुकानें, आरटीओ, पासपोर्ट दफ्तर, पंचायतें और नगर पालिकाएं इसके दायरे में नहीं आएंगी। प्रधानमंत्री तो खैर लोकपाल से परे हैं ही। क्या आपने कभी किसी लोकतंत्र में ऐसे भ्रष्टाचाररोधी कानून के बारे में सुना है, जो केवल कुछ खास लोगों पर ही लागू होता हो?

सरकार हमारी आंखों में धूल झोंक रही है। वह समझती है कि देश के लोग निरक्षर हैं और वे दोनों मसौदों का अंतर नहीं समझेंगे। बहरहाल, यह कॉलम पढ़ने वाले सभी लोग साक्षर व प्रबुद्ध हैं और वे सही-गलत का भेद समझते हैं। वे जानते हैं कि उन्होंने अपना पूरा जीवन भ्रष्टाचार से संघर्ष करते हुए बिताया है, लेकिन वे यह नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी इसी तरह का जीवन बिताएं।

हो सकता है एक लचर लोकपाल से हमें आज कोई नुकसान न हो, लेकिन कल हमें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, जब हमारे बच्चों को कॉलेज में सीट नहीं मिलेगी, जब अस्पतालों में हमारा ठीक से इलाज नहीं किया जाएगा और जब हमारा कोई जरूरी काम सरकारी फाइलों में अटककर रह जाएगा।

हम एक गरीब देश में रहते हैं। गरीब इसलिए नहीं कि हममें अमीर बनने की क्षमता नहीं है, बल्कि इसलिए कि हमारे नेताओं ने हमें निराश किया है। हमने उनके हाथों में जरूरत से ज्यादा सत्ता सौंप दी, इसलिए उन्होंने हमारे वोट को चोरी करने का लाइसेंस समझ लिया। उन्हें उत्तरदायित्व से घृणा है, लेकिन उत्तरदायित्व की भावना के बिना हमारा विकास अवरुद्ध हो जाएगा।

इसलिए अन्ना के बारे में हमारी व्यक्तिगत राय चाहे जो हो, हमें उनका नहीं, उनके लक्ष्य और उनके ध्येय का समर्थन करना चाहिए। सरकार चंद आंदोलनकारियों को कुचल सकती है, लेकिन वह पूरे देश को नहीं कुचल सकती। शांतिपूर्ण, ठोस और निर्णायक प्रतिरोध हर भारतीय का अधिकार है। सोमवार से हम सभी का एक ही लक्ष्य होगा: देश के भविष्य की रक्षा।

मैं सरकार से भी कुछ कहना चाहूंगा। आपको क्या लगता है, आप एक लचर कानून बनाकर हमारे गले में ठूंस देंगे? क्या अन्ना को कुचल देने से भ्रष्टाचार से निजात पाने की हमारी जरूरत भी खत्म हो जाएगी? देश में भ्रष्टाचार विरोधी भावनाएं अन्ना ने नहीं उपजाई हैं और अन्ना को कुचल देने से जनभावनाएं समाप्त नहीं हो जाएंगी। अहंकार और दर्प का परिचय देकर आप देश में अराजकता का खतरा उत्पन्न कर रहे हैं और अराजकता से निपटना टेढ़ी खीर होता है। जन लोकपाल कानून को लागू कीजिए, अभी, इसी वक्त। प्लीज।

अंत में मैं जनता से कहना चाहूंगा कि यह ‘अंकल’ को गलत साबित कर देने का समय है। हकीकत ‘अंकल’ के निराशावाद से बड़ी है। गीता में कहा गया है कि जब पाप का घड़ा भर जाता है तो किसी न किसी को धर्म की रक्षा के लिए सामने आना पड़ता है। अब यह हमें तय करना है कि पाप का घड़ा भर चुका है या नहीं। और यह भी हमें ही तय करना है कि सड़कों पर उतरने का समय आ गया है या नहीं।
Source: चेतन भगत | Last Updated 00:28(11/08/11)
http://www.bhaskar.com/article/ABH-breakthrough-time-of-resistance-2345762.html

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