Wednesday, August 10, 2011

गोपनीयता की गैरजरूरी ढाल

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इलाज की स्पष्ट जानकारी के अभाव पर आश्चर्य जता रहे हैं स्वप्न दासगुप्ता

85 फीसदी से अधिक भारतीय किसी न किसी रूप में मीडिया के उपभोक्ता हैं। परिणामस्वरूप, इसकी अपेक्षा की जा सकती है कि लगभग हर भारतीय की इस संबंध में एक सुनिश्चित राय है। पिछले कुछ दिनों से मीडिया एक नाजुक विषय-संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की दुर्भाग्यपूर्ण बीमारी पर सूक्ष्म पड़ताल के दायरे में आ गया है, जिसके बारे में पिछले दिनों ही लोगों को पता चला है। इस बहस का प्रसंग निजी बातचीत और सोशल नेटवर्किग साइटों में छाया हुआ है। करीब सालभर से मीडिया भ्रष्टाचार के मामलों को उछालकर सबका ध्यान खींच रहा है। ऐसे लोग हैं जो मीडिया को लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप में देखते हैं-घोटालों को प्रसारित करने और इससे भी महत्वपूर्ण पक्ष राजनीतिक वर्ग से जवाब मांगने में अपनी भूमिका निभाने में। तीखी बहसें और देश को जवाब चाहिए का तेवर सौंदर्यबोध के मापदंडों से बाहर हो सकता है, फिर भी यह विश्वास करने के कारण जरूर हैं कि जो नागरिक रोजमर्रा की राजनीति से कट गए थे, वे अब राजनेताओं पर दबंग पत्रकारों की चढ़ाई देखना पसंद करने लगे हैं। जो लोग गैर-निर्वाचन माहौल में ताकतवर राजनेताओं का कुछ बिगाड़ पाने में असमर्थ हैं, अब यह देखकर खुश हो लेते हैं कि कोई तो यह काम कर रहा है। राजनीतिक तबका मीडिया की बढ़ती ताकत से हताश है। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि राजनीतिक एजेंडा उन पत्रकारों द्वारा निर्धारित किया जाने लगा है, जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। विधायिका की साख पर अचानक मीडिया के हमले तेज हो गए हैं। अगर 19वीं सदी में नेता भीड़तंत्र से डरते थे, तो 21वीं सदी के उनके समकक्ष मीडिया प्रेरित बवाल से भयाक्रांत हैं। यह लग सकता है कि भय शब्द का प्रयोग अतिरंजित है, किंतु अगर भारतीय मीडिया अब खत्म हो चुके न्यूज ऑफ द व‌र्ल्ड के संस्करण के रूप में कार्य करेगा तो राजनीतिक तबका अनियंत्रित दखलंदाजी से भयभीत होगा ही। हालांकि जैसाकि सोनिया की बीमारी वाले मामले से स्पष्ट हो जाता है-मीडिया शेर की तरह दहाड़ता जरूर है, किंतु है वास्तव में भीगी बिल्ली ही। पश्चिमी देशों में देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के इलाज की जानकारी के लिए वहां का प्रत्येक मीडिया घराना एक खोजी टीम गठित करता जो गैरसूचीबद्ध मरीज को ढूंढ निकालने के लिए शहर के सारे अस्पतालों को छान मारती। जबकि हम भारत में गांधी परिवार के करीबियों से सोनिया की बीमारी और इलाज के बारे में कयास लगाने का तमाशा भर कर रहे हैं। एक हद तक सोनिया गांधी के स्वास्थ्य के बारे में चिंताओं का संबंध अब मात्र गांधी परिवार तक सीमित नहीं रह गया है। एक ऐसे नेता की सलामती प्रत्येक लोकतंत्र में लोक चिंता का विषय है जो सरकार का स्वीकृत नेता हो और जो बिना शासन किए भी शासन करता हो। भारत न तो सोवियत संघ है जहां यूरी आंद्रापोव की आखिरी बीमारी एक राष्ट्रीय गोपनीयता की श्रेणी में आती थी और न ही उत्तरी कोरिया है, जहां सब कुछ गोपनीय है। जिम्मेदार डॉक्टरों द्वारा जारी ऐसे दैनिक स्वास्थ्य बुलेटिन की सरकार या कांग्रेस से मांग की जानी चाहिए थी, जो जनता की चिंताओं को दूर करने के साथ-साथ परिवार के निजता के अधिकार की रक्षा भी कर सके। ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब प्रथम परिवार का मामला आता है तो खोजपरक पत्रकारिता विज्ञप्ति पत्रकारिता में तब्दील हो जाती है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि गांधी परिवार के संबंध में देश को नियमित रूप से गुमराह किया जाता रहा है। जब सोनिया गांधी संसद के शुरुआती सत्र में उपस्थित नहीं हो पाईं तो अनजान श्चोत से यह खबर आई कि वह वायरल फीवर से ग्रस्त हैं। पिछले साल जब सोनिया गांधी ने अचानक ब्रिटिश प्रधानमंत्री के साथ अपनी बैठक रद कर दी तो कहा गया था कि उन्हें अपनी बीमार मां को देखने विदेश जाना पड़ा। गांधी परिवार के आवागमन के संबंध में इन संदेहास्पद व्याख्याओं की जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा है। साल दर साल, जब चापलूस दरबारी राहुल गांधी का जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं तो वह देश के अंदर मौजूद ही नहीं होते थे। दिल्ली कयास लगाती रह जाती थी कि असली जन्मदिन कहां मनाया जा रहा है। हालांकि मीडिया के लिए कांग्रेस महासचिव की यात्राएं कभी जांच का विषय नहीं रहीं। यहां तक कि सूचना अधिकार के तहत भी कोई सूचना जारी नहीं की गई, क्योंकि ये सुरक्षा निहितार्थ से जुड़ी थीं। गांधी परिवार ने खुद को गैरजरूरी गोपनीयता के आवरण में ढक रखा है, जैसे उनके खिलाफ भारी षड्यंत्र किया जा रहा हो। ऐसी ही कुछ कहानियां पिछले कुछ दिनों से प्रचारित की जा रही हैं। कांग्रेस नेता इस प्रकार की गैर-जिम्मेदार चर्चाओं की निंदा कर सकते हैं, खासतौर पर जब मामला किसी के स्वास्थ्य से संबंधित हो, किंतु इस पर भी गौर फरमाना चाहिए कि गलत सूचनाओं की जड़ सही सूचनाओं के अभाव में निहित है। हर कोई सोनिया गांधी के स्वास्थ्य में सुधार की कामना कर रहा है ताकि वह जल्द से जल्द से जल्द अपना सामान्य जीवन जी सकें। यदि वह स्वास्थ्य लाभ के लिए कुछ समय चाहती हैं तो यह सही होगा कि वह मीडिया की चकाचौंध से बची रहें। साथ ही, उनकी बीमारी और अनुपस्थिति का सरकार के क्रियाकलापों से सीधा संबंध है। मरीज की गोपनीयता और सही सूचना के संबंध में संतुलन कायम रखने के अनेक पूर्व उदाहरण मौजूद हैं।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
साभार:-दैनिक जागरण
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=8&category=&articleid=111718222774081496

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