Thursday, August 11, 2011

सट्टेबाजों का कहर

खाद्य पदार्थो पर सट्टेबाजी को महंगाई का बड़ा कारण बता रहे हैं रमेश दुबे

वैसे तो अनाज से ईंधन बनाने, बढ़ती मांग के अनुरूप उत्पादन न होने, मांसाहार का बढ़ता चलन, वैश्विक तापवृद्धि जैसे कारणों से महंगाई बढ़ रही है, लेकिन गहराई से देखा जाए तो महंगाई की सबसे बड़ी वजह सट्टेबाजी है। ये सट्टेबाज कोई सेठ-साहूकार न होकर बड़े-बड़े निवेश बैंक और एग्रोबिजनेस कंपनियां हैं जिनके आगे दुनिया भर की सरकारें बेबस हैं। व‌र्ल्ड डेवलपमेंट मूवमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह का सट्टा लगाने वालों में बार्कलेज कैपिटल, गोल्ड्समैन सैक्स और मॉर्गन स्टैनली जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं। बार्कलेज बैंक की निवेश बैंकिंग कंपनी बार्कलेज कैपिटल खाद्य पदाथरें कीमतों पर सट्टा लगाकर हर साल 2,500 करोड़ रुपये अपने नाम कर लेती है। स्पष्ट है आवश्यतक वस्तुओं की कीमतों पर सट्टा लगाने वाली कंपनियां महंगाई की आग भड़का रही हैं। गौरतलब है कि 2007-08 की वैश्विक मंदी के दौरान दुनिया भर की कंपनियों के शेयरों और मुनाफे में जबर्दस्त गिरावट आई थी, लेकिन खाद्यान्न व्यापार से जुड़ी कंपनियों ने भरपूर मुनाफा कमाया। इसका कारण है कि इन कंपनियों ने गुट बनाकर कीमतें ऊंची कर दी। खाद्य पदाथरें की कीमतों में हुई विश्वव्यापी बढ़ोतरी के चलते 37 देशों में दंगे भड़क उठे थे लेकिन इन कंपनियों का मुनाफा कई गुना बढ़ गया। स्पष्ट है, भूख अब संवेदना का विषय न होकर मुनाफा कमाने का जरिया बन चुकी है। पेंशन फंडों सहित कई निवेशकों को कमोडिटी एक्सचेंजों में ट्रेडिंग करने से प्रतिबंधित किया जा चुका है। इसके बावजूद निवेश बैंकों ने ऐसी वित्तीय योजनाएं एवं उत्पाद लांच किए हैं जिनसे पेंशन फंडों सहित कई दूसरे निवेशकों को भी खाद्य पदाथरें की कीमतों पर सट्टा लगाने का मौका मिल गया है। संयुक्त राष्ट्र की भोजन के अधिकार संबंधी रिपोर्ट को जारी करने वाले जीन जगलर के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय अनाज बाजार में दामों में करीब 30 फीसदी वृद्धि सट्टे के कारण हुई है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने भी कमोडिटी के चढ़ते दाम के लिए सट्टेबाजी को ही जिम्मेदार माना है। इसीलिए एफएओ ने खाद्य वस्तुओं के वायदा व्यापार में अधिक नियमन की अपील की है। एसोचैम की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अनाज के भरे हुए भंडार के बावजूद कीमतें बेकाबू बनी हुई हैं तो इसका कारण सट्टेबाजी ही है। दरअसल, सटोरियों ने बाजार पर कब्जा कर रखा है और यही वजह है कि कीमतें नीचे नहीं आ रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सरकार खाद्य पदाथरें की कीमतें नीचे लाना चाहती है तो उसे कमोडिटी एक्सचेंजों के वायदा कारोबार में हो रही सट्टेबाजी को रोकना होगा। वायदा सौदों के ऊंचे होने से बाजार में कृत्रिम तेजी का माहौल बन रहा है और वस्तुओं की कीमतें कम नहीं हो रही हैं। उदाहरण के लिए काली मिर्च के दामों में मार्च से जुलाई 2011 के दौरान करीब 33 फीसदी की तेजी दर्ज की गई, जबकि इस अवधि में काली मिर्च की मांग में कोई तेजी नहीं आई। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे कई खाद्य पदार्थ हैं जिनके दामों में बिना मांग के तेजी लाई गई। चने की कीमतों में मार्च से जुलाई के दौरान 16।39 फीसदी, ग्वार में 38।29 फीसदी और धनिया की कीमतों में 36।24 फीसदी का उछाल आया। स्पष्ट है कि खाने-पीने की जरूरी वस्तुओं का वायदा अब एक तरह से निवेश करने और मुनाफा कमाने का जरिया बन गया है। कृषि से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने जुलाई 2008 को अपनी रिपोर्ट संसद के पटल पर रखते हुए कहा था कि देश में कृषि उत्पादों की कीमतों में कृत्रिम बढ़ोतरी के लिए वायदा कारोबार ही जिम्मेदार है। रिपोर्ट में कृषि जिंसों के वायदा सौदों को हतोत्साहित करने की सिफारिश की गई। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में महंगाई पर गठित कोर कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में महंगाई कम करने के लिए आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार को बंद करने की वकालत की है। इसके बावजूद वायदा सौदे और सट्टेबाजी बदस्तूर जारी है। इससे यही प्रमाणित होता है कि सरकार महंगाई की जड़ काटने से कतरा रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
साभार :-दैनिक जागरण
http://in।jagran।yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=49&category=&articleid=111718209272057512






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