Wednesday, August 24, 2011

महाभियोग पर मायावी राजनीति

राज्यसभा में पश्चिम बंगाल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ लाया गया महाभियोग प्रस्ताव पास हो गया है| न्यायमूर्ति सेन पर 1990 के दशक में लगभग 33.23 लाख रुपये के गबन का आरोप है|


उस वक़्त वे वकील थे और कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उन्हें एक विवाद सुलझाने के लिए रिसीवर नियुक्त किया था| यह विवाद स्टील कार्पोरेशन आफ इंडिया और शिपिंग कार्पोरेशन के बीच था| सेन पर आरोप है कि उन्होंने 33.23 लाख रुपये की रकम कोर्ट को सौंपने की बजाय निजी खाते में जमा कर ली थी|


2003 में हाईकोर्ट में न्यायाधीश बनने के बाद भी उन्होंने अदालत को इसकी जानकारी नहीं दी| हालांकि 2006 में उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश के बाद पूरी रकम ब्याज समेत अदालत को लौटा दी थी|


बुधवार से जारी बहस की समाप्ति के बाद गुरूवार हो हुई वोटिंग में बहुजन समाज पार्टी को छोड़ सभी दल सेन के खिलाफ खड़े नजर आये| गौरतलब है कि राज्यसभा में हुई वोटिंग में महाभियोग के पक्ष में 189 ओर विरोध में 17 मत पड़े| एक सांसद वोटिंग के वक़्त मौजूद नहीं था|


कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे न्यायाधीश हैं जिन पर महाभियोग की कार्रवाई की गई है| इससे पहले 1993 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी.रामास्वामी के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग लाया गया था| मगर राजनीतिक कारणों से वह प्रस्ताव राजनीति की भेंट चढ़ गया था|


उस वक़्त कांग्रेस ने महाभियोग के लिए प्रस्तावित मतदान में भाग ही नहीं लिया था| इसके पीछे कांग्रेस के सियासी हित आड़े आ रहे थे| वरिष्ठ अधिवक्ता और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने उस समय लोकसभा में वी. रामास्वामी का जमकर बचाव किया था|


दरअसल, वी. रामास्वामी दक्षिण भारतीय थे और कांग्रेस को लगा कि यदि उनके खिलाफ महाभियोग पारित हो गया तो इससे पार्टी का दक्षिण भारत में जनाधार घट सकता है| अतः कांग्रेस ने ही इस महाभियोग की हवा निकाल दी थी|


राज्यसभा में सेन के खिलाफ पेश महाभियोग में उनके पक्ष में मतदान करने बाबत बहुजन समाज पार्टी का मत है कि सेन के खिलाफ लगे हुए आर्थिक अनियमितताओं के आरोप साबित नहीं होते हैं| ऐसा लगता है बहुजन समाज पार्टी किसी दूरगामी परिणाम के तहत सेन का बचाव कर रही है|


हाल ही में कई मामलों में न्यायपालिका ने "माया" सरकार को जबर्दस्त झटके दिए हैं; शायद यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर महाभियोग का सामना कर रहे न्यायाधीश सौमित्र सेन के पक्ष में मतदान कर अलग सन्देश देने की कोशिश की है|


राज्यसभा में सौमित्र सेन पर महाभियोग की चर्चा के दौरान बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीश मिश्र ने महाभियोग के औचित्य पर ही सवालिया निशान लगा दिए हैं| मंतव्य साफ़ है कि पार्टी न्यायपालिका से अपने बिगड़े रिश्ते सुधारना चाहती है|


हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार जिस तरह देश के लिए नासूर बना है, न्यायपालिका भी उससे अझूती नहीं रही है| हो सकता है बहुजन समाज पार्टी के रुख से कई भ्रष्ट न्यायाधीश और वकील खुलकर "माया" सरकार के पक्ष में खड़े नज़र आये| देश के लिए ऐसी स्थिति बड़ी ही चिंताजनक है|


खैर सौमित्र सेन ने भी अपने बचाव में तर्क दिया है कि यह मामला उस वक़्त का है जब वे वकील थे और इस आधार पर उन पर महाभियोग नहीं चलाया जा सकता| दो घंटे तक सदन में जिरह करने के पश्चात भी सदन ने उनके खिलाफ महाभियोग पारित कर ही दिया|


वरिष्ठ कानूनविद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने भी सेन के बचाव के तर्कों को तथ्यों के आधार पर ही ख़ारिज कर दिया| अब सौमित्र सेन का मामला लोकसभा में पेश होगा और यदि वहां भी यह बहुमत से पारित होता है तो सेन को हटाने के लिए राष्ट्रपति के पास अनुमोदन हेतु भेजा जाएगा|


इस प्रकार सौमित्र सेन देश के पहले ऐसे न्यायाधीश होंगे जिन्हें महाभियोग के तहत हटाया जाएगा| हालांकि यह इतना आसान भी नहीं दिखता मगर जिस तरह भ्रष्टाचार पर जनता सरकार समेत नेताओं की नाक में दम किए हैं, लगता नहीं कि कोई भी दल जनता की भावनाओं के खिलाफ जाना चाहेगा|


सौमित्र सेन के खिलाफ चलाये जा रहे महाभियोग से निश्चित ही न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी| राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार से आम आदमी त्रस्त है और यदि समाज के अंग न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार घर कर गया तो जनता का जीना मुश्किल हो जाएगा|


उम्मीद है सौमित्र सेन पर चलाये जा रहे महाभियोग से न्यायपालिका के अन्य सदस्य भी सबक लेंगे|

Source: सिद्धार्थशंकर गौतम | Last Updated 04:50(21/08/11)
साभार:-दैनिक भास्कर
http://www.bhaskar.com/article/ABH-impeachment-on-the-elusive-politics-2367619.html


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