Wednesday, August 24, 2011

लौट जाती है उधर को भी नजर

पाकिस्तान की युवा व ग्लैमरस विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार का भारत दौरा गलत वजहों से सुर्खियां बना गया। तीन बच्चों की मां हिना सुंदर और युवा होने के साथ पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान से अपने करीबी रिश्तों और अपनी संपन्न पारिवारिक हैसियत के लिए जानी जाती हैं। पाकिस्तान के अमीर खानदानों की परंपरानुसार उन्होंने विदेश से होटल मैनेजमेंट की तालीम हासिल की है, उनकेपति बड़े व्यवसायी हैं और खुद वे पाकिस्तान के एक जाने-माने होटल और पोलो के कई घोड़ों समेत बड़ी संपत्ति की मालकिन हैं।

कूटनीतिक शिष्टता की दृष्टि से उनसे हुर्रियत के अलगाववादी नेताओं से रस्मी भेंट के अलावा कोई बड़ी भूल-चूक हुई हो, ऐसा भी नहीं। उल्टे दौरे की शुरुआत में जब उन्होंने कहा था कि पार्टिशन के साठ साल बाद आज के युवा भारत-पाक नेतृत्व के लिए इतिहास के इस मुकाम पर आकर अपने विगत इतिहास को भुलाना ही बेहतर होगा, तो उन्होंने मीडिया से सराहना भी हासिल की थी। फिर भी उनके दौरे को भारत से लेकर अमेरिकी मीडिया तक में गंभीरता से न लिए जाने की वजह क्या हो सकती है?

एक वजह तो हिना ने स्वदेश वापसी पर इस बाबत पाक मीडिया को दिए अपने चिड़चिड़े जवाब में गिनाई कि महिला होने के नाते भारत के मीडिया की नजर में उनका राजनयिक महत्व हल्का था, उनकी फैशनपरस्त कीमती पोशाक और धूप के इटालियन चश्मे या डिजायनर हैंडबैगों पर विस्तृत टिप्पणियां शरारतन उनका राजनयिक कद कम करने की दृष्टि से की गईं। अगर उनकी जगह कोई पुरुष होता तो उसके सूट या टाई के रस ले-लेकर इतने चर्चे थोड़े ही किए जाते। पर यह आंशिक वजह हो सकती है।

असल वजहें दूसरी हैं और वे छह दशक पुराने भारत-पाक टकराव ही नहीं, 9/11 और फिर 26/11 की संगीन आतंकी वारदातों और फिर पाकिस्तान में आतंकी सरगना ओसामा की मौत से मिले अलकायदा, तालिबान और पाक सेना प्रतिष्ठान के करीबी रिश्तों के अकाट्य प्रमाणों तक फैली हैं। अपनी आर्थिक क्षमता और लोकतांत्रिक तेवरों से भारत ने आज विश्व बिरादरी में जहां ऊंचा स्थान हासिल कर लिया है, वहीं पाकिस्तान में चंद भ्रष्ट परिवारों की जागीर बने लोकतंत्र के ढांचे का आईएसआई और तालिबान के बढ़ते दोहरे दबावों तले बुरा हाल है।

अंतरराष्ट्रीय नजरों में पाक परमाणु बटन पर अलकायदा और कट्टरपंथियों के बढ़ते साये भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए खतरा हैं। ऐसे में भला आसिफ अली जरदारी की सरकार ने क्या सचमुच बेहद कमउम्र और तीन सालों से भी कम का राजनयिक अनुभव वाली हिना रब्बानी खार को विदेश मंत्री बनाकर इस दौरे के मार्फत भारत-पाक राजनय में क्रांतिकारी सुधार लाने की कोई गंभीर उम्मीद की होगी? कहने को कहा जा सकता है कि हिना बुद्धिमती, पढ़ी-लिखी महिला हैं और पाक सत्ता में फातिमा जिन्ना और शेरी रहमान से लेकर बेनजीर तक कई समझदार और राजनीतिक रूप से परिपक्व युवा महिलाएं रही हैं।

पर सच तो यह है कि पाक राजनीति के शीर्ष पर महिलाओं की मौजूदगी और पाक संसद में उनकी (40 प्रतिशत) तादाद सुनने में प्रभावशाली भले लगे, लेकिन अनुभव बताता है कि पाक कूटनीति के कंप्यूटरों में जब भी सक्षम महिलाएं घुसीं, तो प्रोग्राम को मानो वायरस लग गया। पाक सत्ता में महिलाएं अपने दम-खम पर नहीं, पारिवारिक रिश्तों के बूते ही सेना और सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा चुनी जाती रही हैं और सत्ता के असल संचालक उनको गूंगी गुड़िया के ही रूप में कैद रखने के इच्छुक होते हैं।

तनिक भी आजादखयाली और दिलेरी दिखाते ही सेना ने हर महिला को सत्ता से दरबदर कर दिया। अयूब खां की आलोचना के बाद फातिमा जिन्ना के आखिरी दिन अकेलेपन में गुजरे, बेनजीर ने मुशर्रफ को हटाकर लोकतंत्र बहाली की जिद ठानी तो जान की कीमत चुकाई और शेरी रहमान ने जब से उदारवादी गवर्नर सलमान तासीर की हत्या के बाद कट्टरपंथिता का विरोध किया, वे राजनीति से बेदखल हो भूमिगत रहने को बाध्य हैं।

आर्मी के ऐन पड़ोस में अमेरिकी कमांडो हमले में ओसामा की मौत के बाद से सभी समझदार लोग पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) नीत सरकार के संभावित पतन के डर से उससे कन्नी काट रहे हैं। इस नाजुक समय में विदेश मंत्रालय को अपने कब्जे में रखने की इच्छुक सेना को अपने पुराने खैरख्वाह और पंजाब के (मूलत: अपनी जमीनी मिल्कियत और सात शादियों के लिए मशहूर) पूर्व गवर्नर गुलाम मुस्तफा खार की भतीजी को विदेश मंत्री बनाना रास आया और जरदारी को भी।

इस कमसिन और स्वघोषित तौर से फैशनपरस्त खानदानी महिला से उसके आका स्वामिभक्ति और पाक विदेश नीति की पिटी-पिटाई लीक पर चलने की उम्मीद कर रहे हैं। हिना की दामी वार्डरोब व गरीबी भरे देश में उसकी जीवन शैली को लेकर भारत का मीडिया चाहे उन्हें हल्केपन से ले, उनकी यही छवि उसके सरपरस्तों को आश्वस्त करती है कि पोलो खेलने और लंदन में शॉपिंग करने वाली यह सोशलाइट लड़की खतरनाक जनवादी-समाजवादी विचारों को नहीं पोसेगी और भरसक उनकी बताई लकीर पर ही चलेगी। बात कड़वी हो, मगर सच है।

लौट जाती है उधर को भी नजर क्या कीजै/अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजै?

2011 में भारत के साथ सीमा रेखा पर गंभीर मोल-तोल करने या भरोसाबहाली की कवायद करने को पाक प्रतिष्ठान के पास ठोस मुद्दे नहीं बचे हैं। न तो वह 26/11 के प्रमाण स्वीकार सकता है और न ही चिह्न्ति आतंकियों के प्रत्यर्पण या उनके सेना में पैठे हैंडलर्स पर कार्रवाई करने की उसकी कोई मंशा है। सीमा पर खर्चीली साझा परियोजनाओं या दीर्घकालिक व्यापारिक समझौतों को साकार करने में भी उसकी सच्ची रुचि नहीं।

अलबत्ता अभी भी रो-झींककर या ब्लैकमेलिंग द्वारा वह अपने घर का राशन-पानी अमेरिका से धरवा रहा है। अत: अमेरिकी दबाव उसे नेकनीयती का नाटक करने को मजबूर कर रहा है। भारत के साथ पाक का सम्मानजनक वार्तालाप संभव है और दोस्ती भी, लेकिन उसके लिए दोनों तरफ अनुभवी, परिपक्व और खुदमुख्तार राजनयिक जरूरी हैं। पल्लू और अलकावलि संभालती रब्बानी सरीखी मंत्री की छवि इस मायने में बहुत सकारात्मक कैनवास नहीं रचती।
Source: मृणाल पाण्डे | Last Updated 00:06(03/08/11)
साभार:-दैनिक भास्कर
http://www.bhaskar.com/article/ABH-he-seems-to-have-returned-2319111.html


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