Friday, December 10, 2010

अब बदलना होगा यह पांच साल वाला जनतंत्र Source: अरविंद केजरीवाल

हिसार (हरियाणा) का रहने वाला हूं। मेरे पिताजी इंजीनियर थे। मेरा बचपन कई जगह बीता। आठवीं से इंटर तक हरियाणा में ही रहा। आईआईटी, खड़गपुर से इंजीनियरिंग की। कुछ समय तक जमशेदपुर में टाटा स्टील में काम करने के बाद १९९२ में मेरा चयन राजस्व सेवा में हो गया। वर्ष 2000 में सरकार से लंबी छुट्टी लेकर मैं एक्टिविज्म में आ गया। परिवर्तन संस्था की शुरुआत की और भ्रष्टाचार तथा सूचना के अधिकार पर काम शुरू किया। फरवरी, 2006 में मैंने नौकरी छोड़ दी। तब से आज तक मौजूदा व्यवस्था से एक मोर्चा ले रखा है।

‘सूचना का अधिकार’ अधिनियम को लागू करवाने का ज्यादा श्रेय मैं अरुणा राय को देना चाहूंगा। उन्होंने १९९क् से ही राजस्थान में इसके लिए आंदोलन चला रखा था। २क्क्१-क्२ में मैं उनके संपर्क में आया। मैं उन्हें एक तरीके से अपना गुरु मानता हूं। जैसा काम वह राजस्थान में कर रही थीं, वैसा काम हमने दिल्ली में करना शुरू किया। केंद्र में लागू होने से पहले सूचना का अधिकार देश के नौ राज्यों में लागू हो चुका था। इतने अरसे के बाद मैं यह कह सकता हूं कि आरटीआई को ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट ने प्रभावित नहीं किया है। शुरुआत में मेरे घर, परिवार और दोस्तों ने कहा कि यह क्या कर रहा है। इतनी अच्छी नौकरी छोड़ किन कामों को तवज्जो दे रहा है। ये उनकी गलती नहीं थी, हमारा समाज ऐसा ही है। लेकिन जब २क्क्६ में मुझे रेमन मैगसेसे पुरस्कार मिला तो सबने कहा कि यह सार्थक एवं महत्वपूर्ण काम कर रहा है। कह सकते हैं कि इस पुरस्कार के जरिए ही मेरे इस काम को पहचाना गया। मैगसेसे पुरस्कार से मिली राशि को मैंने अपने संगठन ‘परिवर्तन’ को दे दिया जो अन्य संगठनों के साथ मिलकर जमीनी काम करता है। इसके अलावा एक ‘पब्लिक कॉल रिसर्च फाउंडेशन’ शुरू किया, जो प्रशासन और आरटीआई पर शोध का काम करता है।

आज तमाम घोटाले सामने आ रहे हैं, लोगों में गुस्सा और रोष है। हम जब भी कहीं आंदोलन या प्रदर्शन करते हैं तो हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं, लेकिन उसकी खबर कहीं नहीं लगती। खबर छपती है कि ओबामा क्या खाते-पीते हैं, कहां जाते हैं। कमी हमारे मीडिया में भी है। वे बस अब नेताओं और कॉरपोरेट दुनिया में ही अपनी खबर तलाशते हैं। आम आदमी का हित उनके लिए मुद्दा नहीं रहा। अगर हम राडिया टेप कांड को ही देख लें तो यही पता चलता है कि पत्रकार सिर्फ नेताओं के इर्द-गिर्द रहना चाहते हैं। हम रोज ३ रुपए का अखबार ही नहीं खरीदते, एक विश्वास खरीदते हैं, उसके साथ विश्वासघात नहीं होना चाहिए।

आज जरूरत है एक ऐसी स्वतंत्र एजेंसी की, जिसके पास ताकत हो कि वह मामलों की निरपेक्ष जांच-पड़ताल कर सके। सीबीआई है तो वह सरकार के साथ काम करती है और सीवीसी के पास कोई अधिकार ही नहीं है। ऐसे में एक स्वतंत्र एजेंसी की बेहद जरूरत है। अब तो न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार की बात सामने आ रही है। ऐसे में पहले न्यायिक सुधार की आवश्यकता है। हमें यह पांच साल वाला जनतंत्र भी बदलना होगा। ऐसी व्यवस्था चाहिए जहां जनता रोजाना लोगों के काम का आकलन कर सके। इसके अलावा मैकाले की शिक्षा व्यवस्था को भी बदलने की जरूरत है। हम आजाद भारत में जी रहे हैं, फिर शिक्षा उस समय की क्यों। अब हम गुलाम नहीं हैं।

अरविंद केजरीवाल सामाजिक कार्यकर्ता

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