किसी घोटाले का पर्दाफाश करना तो आसान है, पर दोषी शख्स को सजा दिलाना मुश्किल है। खास तौर से लोकतांत्रिक भारत में। घोटाले के लिए जिम्मेदार कौन है, यह समझना बेहद जरूरी है।
चूंकि हम इस मूल मुद्दे को भूल गए हैं, इससे दोषी शख्स आसानी से बच रहे हैं। गौरतलब है कि सूचनाओं की भरमार से मूल मुद्दा लुप्त होता जा रहा है। बहस मूल मुद्दे से भटक रही है। जरूरी है कि स्थितियों को सरल बनाते हुए हम मूल विषय पर ही ध्यान केंद्रित करें। घोटाला यह है कि नीतियों को बदल कर कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया। इसके बदले में मंत्री और नौकरशाह भी लाभान्वित हुए हैं।
2जी स्पेक्ट्रम मामले में टेलीकॉम मंत्री ए.राजा ने कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया ही पूरी तरह से बदल दी। ऐसा नौकरशाहों की मिलीभगत से ही संभव हो सकता है। यह घोटाला सिर्फ लॉबिंग करने वालों और पत्रकारों की बातचीत या रतन टाटा की निजता की समस्या भर नहीं है। ये तो इस घोटाले से जुड़ी साइड स्टोरी हैं, प्रमुख दोषी तो अब भी आजाद घूम रहे हैं। इसे देखते हुए यदि विपक्ष दोषियों को सजा दिलाना चाहता है, तो उसे कार्रवाई की मांग करनी चाहिए।
बजाय इसके विपक्ष संयुक्त संसदीय जांच समिति (जेपीसी) की मांग पर ही अड़ा हुआ है। इसकी वजह है कि जेपीसी विपक्ष को न सिर्फ प्रधानमंत्री, बल्कि सोनिया गांधी को भी घेरने का अधिकार दे देगी। जेपीसी किसी को भी अपने समक्ष पेश होने का आदेश दे सकती है। अब भला इससे विपक्ष का क्या फायदा होने वाला है? प्रधानमंत्री के अधिकारों पर उंगली उठा कर या गांधी परिवार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर विपक्ष कांग्रेस के सत्ता में आने के औचित्य पर ही निशाना साधेगा। विपक्ष ए.राजा, डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि और सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल प्रत्येक धड़े को कठघरे में खड़ा करना चाहता है। इससे और कुछ हो न हो, यूपीए गठबंधन जरूर बिखर जाएगा।
जेपीसी का नेतृत्व सत्तारूढ़ पार्टी के ही किसी सदस्य के हाथों होता है। ऐसे में जेपीसी अध्यक्ष द्वारा किसी को समिति के समक्ष पेश होने से इनकार करने पर विपक्ष को एक बार संसदीय कार्यवाही ठप करने का मौका भी मिलेगा। जेपीसी के पास घोटाले में शामिल कंपनियों को समन जारी करने का भी अधिकार रहता है। सरल शब्दों में कहें तो इस तरह संसद में प्रत्येक पार्टी को प्रश्न दागने का अधिकार होगा, मानो सभी सरकार में हों। जेपीसी का हर सवाल और उसका जवाब अखबारों की सुर्खियों में रहेगा। इस तरह घोटाले का राजफाश तो नहीं होगा, बल्कि इस पर बहस और विचार-विमर्श ही चलता रहेगा। लोग इससे आजिज आ जाएंगे और उन्हें लगने लगेगा कि सरकार सिर्फ चोर-उचक्कों, धोखेबाजों का जमावड़ा भर है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि घोटाले के लिए जिम्मेदार या दोषियों के खिलाफ कुछ किया जाएगा।
जेपीसी सभी पार्टियों के बीच लेन-देन के रास्ते भी खोल देगा। यहां तक कि सबसे छोटे दल को भी घोटाले के जिम्मेदार लोगों से अपना हिस्सा मिलेगा। इस तरह यह नौटंकी जब तक संभव है तब तक जारी रखी जा सकती है। फिलहाल विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़े रहकर यूपीए सरकार की छवि को ही ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की मंशा रखता है। उसे लगता है कि इससे उनके राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हो जाएगी। विपक्ष मान रहा है कि इस तरह वह सत्ता में वापसी कर सकता है। यही वह बिंदु है जहां वे आम आदमी की अपेक्षाओं और जरूरतों को समझ नहीं पा रहे हैं। इन घोटालों से देश के विकास की रफ्तार धीमी नहीं पड़ने वाली। विपक्ष अड़ियल रवैया अख्तियार कर संसद की कार्यवाही तो ठप कर सकता है, लेकिन देश के विकास को नहीं। व्यापार-वाणिज्य अपनी रफ्तार से चल रहा है, लोग नए अवसरों को खोजने में व्यस्त हैं। माहौल महत्वाकांक्षाओं से ओत-प्रोत है। हर भारतीय कहीं न कहीं पहुंचने की जल्दी में है। अगर यह बात हमारे सांसद नहीं समझ पा रहे हैं तो वे हकीकत से पूरी तरह नावाकिफ हैं या यूं कहें कि वास्तविकता से आंखें चुराने का काम कर रहे हैं।
आम आदमी सिर्फ कार्रवाई में यकीन रखता है। अगर विपक्ष सरकार में अपनी वापसी चाहता है, तो उसे त्वरित कार्रवाई पर जोर देना होगा। क्या विपक्ष सरकार से 100 दिनों के भीतर घोटाले के दोषियों पर कार्रवाई की मांग नहीं कर सकता? क्या वह कार्रवाई की प्रक्रिया और उस पर अमलीजामा पहनाने पर ही ध्यान केंद्रित कर सकता है? हम सभी चाहते हैं कि भ्रष्ट ताकतें या लोग सलाखों के पीछे हों। आम आदमी चाहता है कि विभिन्न कंपनियों ने जनता की गाढ़ी कमाई का जितना गैर-वाजिब लाभ कमाया है, वह जनता को वापस मिले। आम आदमी चाहता है कि टेलीकॉम स्पेक्ट्रम से जुड़ी भविष्य की प्रक्रिया निश्चित नियम-कायदों के अनुरूप हो। क्या विपक्ष जनता के पास अगली बार वोट मांगने जाते वक्त ऊपर बताए गए रास्तों से हासिल परिणामरूपी उपलब्धियों को नहीं गिना सकता है?
निष्क्रियता के लिए कोई पुरस्कार नहीं मिलता। आम आदमी के पास अब इतना धैर्य नहीं है कि वह राजनीतिक नौटंकी देखे। वह ऐसे राजनेताओं से आजिज आ चुका है, जो सिर्फ शिकायत या आलोचना करते हैं, किसी समस्या के समाधान के प्रति कदम नहीं उठाते। आज के दौर में ऐसे लोग आम आदमी को फूटी आंख नहीं सुहाते जो सरकार को तोड़ना जानते हैं, सरकार चलाना और बनाना नहीं जानते। वे जमाने लद गए जब सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन की आलोचना के बल पर चुनाव जीत जाते थे। आज चुनाव उपलब्धियों के आधार पर जीते जाते हैं। विपक्ष इसी मसले पर कमजोर पड़ता दिख रहा है। उसके पास उपलब्धियों के नाम पर दिखाने को कुछ नहीं है। सिवाय संसदीय कार्यवाही ठप करने के। क्या विपक्ष टेलीकॉम घोटाले को एक ऐसे अवसर के तौर पर लेगा, जिसमें वह अपने होने और कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कटिबद्ध कर सके?
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