Friday, December 10, 2010

पुलिस सुधारों पर आनाकानी

पुलिस सुधारों पर राज्यों के रवैये पर उच्चतम न्यायालय की तल्ख टिप्पणी यह बताने के लिए पर्याप्त है कि ज्यादातर राज्य सरकारें उसके निर्देशों की अनदेखी कर रही हैं। उच्चतम न्यायालय ने 2006 में पुलिस सुधारों के संदर्भ में कुछ दिशा निर्देश जारी किए थे। उम्मीद की जा रही थी कि राज्य सरकारें इन दिशा निर्देशों के अनुरूप तत्परता से कदम उठाएंगी, लेकिन चार साल बीत जाने के बाद शीर्ष अदालत को जिस तरह यह कहना पड़ा कि उसके निर्देशों को पूरे मनोयोग से लागू किया जाए उससे यह स्वत: स्पष्ट हो जाता है कि राज्यों को पुलिस की कार्यप्रणाली सुधारने की कोई जल्दी नहीं। यह स्थिति तब है जब उच्चतम न्यायालय राज्य सरकारों को सहयोग-सुझाव देने के लिए तैयार है। उच्चतम न्यायालय ने पुलिस सुधारों के सिलसिले में परीक्षण के तौर पर चार राज्यों की पहल के संदर्भ में यह पाया कि इनमें से किसी ने भी सही ढंग से अपना काम नहीं किया है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में से सिर्फ कर्नाटक ने कुछ बेहतर किया है, लेकिन वह भी संतोषजनक नहीं। हालांकि पुलिस सुधारों को लागू करने में आनाकानी कर रही राज्य सरकारों को कई बार उच्चतम न्यायालय की फटकार का सामना करना पड़ा है, लेकिन स्थिति जस की तस है। उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों को लागू करने के संदर्भ में राज्य सरकारें जिस तरह तरह-तरह के बहाने बना रही हैं उससे यही स्पष्ट होता है कि वे स्वेच्छा से सुधारों के लिए तैयार नहीं। इस संदर्भ में यह किसी से छिपा नहीं कि एक समय तो राज्य सरकारों की ओर से यह दलील भी दे दी गई थी कि उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों का अक्षरश: पालन संभव नहीं है। इस संदर्भ में सबसे आश्चर्यजनक यह है कि केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकारों की इस दलील का समर्थन किया था। यह समझना कठिन है कि राज्य सरकारों को थानाध्यक्षों से लेकर पुलिस प्रमुख तक के कार्यकाल को निर्धारित करने और जांच तथा कानून एवं व्यवस्था के काम को अलग करने में क्या कठिनाई है? यह निराशाजनक है कि जब उच्चतम न्यायालय आपराधिक न्याय प्रणाली और पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कमर कसे हुए है तब जिन्हें यह कार्य अपनी ओर से करना चाहिए अर्थात राज्य सरकारें हीलाहवाली का परिचय दे रही हैं। निश्चित रूप से उच्चतम न्यायालय का यह कार्य नहीं कि वह पुलिस सुधारों के लिए परेशान हो। यह काम तो केंद्र और राज्य सरकारों के एजेंडे पर होना चाहिए। पुलिस सुधारों संबंधी दिशा निर्देशों पर अमल करने के मामले में राज्य सरकारें चाहे जैसी दलीलें क्यों न दें, सच यह है कि वे पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का परित्याग नहीं कर पा रही हैं और यही कारण है कि वे आनाकानी का परिचय देने में लगी हुई हैं। राज्य सरकारों की इस हीलाहवाली को देखते हुए कोई भी इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि वे कुल मिलाकर पुलिस सुधारों को अपनाने के लिए तैयार नहीं। उनके इस रवैये को देखते हुए उचित यह होगा कि उच्चतम न्यायालय उन्हें और अधिक रियायत देने से इनकार करे।
साभार:_दैनिक जागरण ०८-१२-२०१०

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