Thursday, December 9, 2010

अमेरिका का घिनौना चेहरा

विकिलीक्स खुलासों से अमेरिका की छवि, प्रतिष्ठा और रुतबे को ठेस लगती देख रहे हैं डॉ। गौतम सचदेव

विकिलीक्स द्वारा किए जा रहे रहस्योद्घाटनों को देखकर अब इस बारे में किसी को संदेह नहीं रहा कि अमेरिका के दो चेहरे हैं, दो जीभें हैं, दोहरे मानदंड हैं और दोहरी नीतियां हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वह कैसे-कैसे हथियार अपनाता है और कैसे-कैसे पासे फेंकता है, यह विकिलीक्स के रहस्योद्घाटनों से दस्तावेजी सुबूतों के रूप में सामने आ रहा है। विश्व में अपनी अद्वितीय स्थिति का लाभ उठाते हुए अमेरिका यह भूल गया था कि उसके अभेद्य दुर्ग में सेंध भी लग सकती है। विकिलीक्स ने उसके अंतरराष्ट्रीय राजनय और कूटनीतियों के प्लस्तर के नीचे छिपी दरारें और कमजोरियां उजागर कर दी हैं। उसने यह भी दिखा दिया है कि इंटरनेट की शक्ति अमेरिका जैसी महाशक्ति से कहीं बड़ी है। आज अमेरिका और उसके मित्र देश कितने घबराए हुए हैं, यह इसी से समझा जा सकता है कि वे विकिलीक्स के संचालक जूलियन असांजे के बैंक खातों को अपने कब्जे में ले रहे हैं और उन्हें सलाखों के पीछे रखने के लिए उस पर यौन दुष्कर्म और आतंकवाद जैसे तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं। यही नहीं, उनकी वेबसाइट पर प्रतिबंध लगाकर उसकी जबान बंद करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे इस बात से इनकार नहीं कर पा रहे कि उसने जो उगला है, वह सच ही है। वे चाहे जो कर लें, लेकिन अपनी छवि और साख को हुए नुकसान को कभी पूरा नहीं कर सकेंगे। अमेरिका जिस तरह विश्व में अपनी चौधराहट का ढिंढोरा पीटता है, उस पर विकिलीक्स ने करारी चोट की है और एक तरह से उसके कपड़े उतार दिए हैं। विकिलीक्स ने अमेरिका की विदेश नीति के तीनों कोणों-कूटनीति, राजनय और गुप्तचरी को बेनकाब कर दिया है और यह दिखा दिया है कि उसका धुला-पुंछा और आदर्श दिखने वाला चेहरा घिनौना भी है। उसने यह भी दिखा दिया है कि अमेरिका अजेय नहीं है। विश्व स्तर पर आज अमेरिका सार्वभौमिक आतंकवाद से जूझ रहा है, लेकिन कैसी विडंबना है कि वह सऊदी अरब जैसे अत्यंत भरोसेमंद और घनिष्ठ मित्र को आतंकवादियों के लिए धन उपलब्ध कराने से रोकने में असमर्थ है। गत वर्ष दिसंबर में अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने अपने एक गुप्त पत्र में लिखा था कि आतंकवादी संगठनों के धन का सबसे बड़ा श्चोत सऊदी अरब के बड़े-बड़े दानी हैं। वहां हर वर्ष हज यात्रियों के भेस में कितने ही आतंकवादी और तस्कर भी पहुंचते हैं। अमेरिका मध्य पूर्व के तीन देशों कुवैत, कतर और संयुक्त अरब अमीरात पर अंकुश नहीं लगा पाता, जहां से आतंकवादियों को धन जाता है। अगर पाकिस्तान की बात करें, तो अमेरिका चाहे जितनी सैनिक और आर्थिक सहायता देता जाए, वह उसे आतंकवादियों से संबंध तोड़ने और आतंकवादी अड्डों को समाप्त करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। वह यह भी जानता है कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों से कभी संबंध नहीं तोड़ेगा। दरअसल, लश्करे-तैयबा और जमात उद दावा जैसे संगठन पाकिस्तान की दूरगामी सामरिक नीति और भारत से टक्कर लेने वाली शतरंज के शक्तिशाली मोहरे हैं। पाकिस्तान जानता है कि देर-सवेर अमेरिका को अफगानिस्तान से जाना ही है और अगर भारत से उसके संबंध प्रगाढ़ हो जाएंगे, तो तालिबान और ये आतंकवादी संगठन ही उसके काम आएंगे। पाकिस्तान के बारे में अमेरिका की स्थिति सांप-छुछूंदर वाली है। न उससे पाकिस्तान को छोड़ते बनता है, न काबू में करते। अमेरिका इराक और अफगानिस्तान में बुरी तरह उलझ गया है। न तो उसे वहां से निकलने का रास्ता मिल रहा है और न ही दुनिया के सामने वह अपनी विफलता को मानना चाहता है। उसकी अफगान नीति का हाल यह है कि उसे अपने किसी भी घोषित उद्देश्य में सफलता नहीं मिली। न वह ओसामा बिन लादेन को पकड़ या मार सका है, न तालिबान को खत्म कर सका है और न ही उस देश में लोकतंत्र की स्थापना करवा सका है। मजबूरन अब तो वह तालिबान से बातचीत करने को भी तैयार हो गया है। इराक की हालत भी अफगानिस्तान से ज्यादा भिन्न नहीं है। अमेरिका ने वहां जिस तथाकथित लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करवाई है, उससे पहले तो देश में सुरक्षा ही कायम नहीं हो रही है। दूसरे भारी विलंब और सुन्नी धड़े के साथ सौदेबाजी करने के बाद किसी तरह उसने नूरी अल मलिकी की जो संयुक्त सरकार बनवाई है, वह चल पाने की स्थिति में नहीं है। उसे शिया बहुल और अणुशक्ति संपन्न होते जा रहे पड़ोसी देश ईरान से तो खतरा है ही, उससे भी बढ़कर सुन्नी वर्चस्व वाले सऊदी अरब से है, जो वहां की शिया बहुल सरकार को गिरवाने के लिए चरमपंथियों की सहायता करता है। विकिलीक्स द्वारा किए गए रहस्योद्घाटनों पर व्यापक दृष्टि से विचार करने से बहुत-से महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं। पहला यह कि सार्वभौमिक स्तर पर अमेरिका का असली उद्देश्य क्या है? उसे रूस और चीन दोनों पर विश्वास नहीं है, लेकिन क्या वास्तव में उसके लिए सबसे बड़े खतरे ये दोनों देश हैं या मध्य पूर्व में आणविक शक्ति का विस्तार और बढ़ता हुआ आतंकवाद हैं? अगला सवाल है कि उसे अपनी समरनीतियों और कार्यपद्धतियों में कौन-से परिवर्तन करने होंगे, जिनसे वह अपनी खोई हुई साख और विश्वसनीयता को पुन: हासिल कर सके? विकिलीक्स ने अन्य देशों के साथ उसके रिश्तों को ठेस पहुंचाई है और उसके मित्र देशों के मन में उसकी ईमानदारी को लेकर संदेह उत्पन्न किए हैं। वह भविष्य में उन्हें अपनी सच्ची दोस्ती का भरोसा कैसे दिलाएगा और उन्हें यह विश्वास कैसे दिलाएगा कि हम आपके बारे में जो कह रहे हैं, उस पर विश्वास भी करते हैं? एक और सवाल है कि अमेरिका को अपनी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और गुप्तचरी में ऐसे कौन-से परिवर्तन और संशोधन करने होंगे, जिनसे वह आगे भी अकेली महाशक्ति बना रह सके? विकिलीक्स ने अमेरिका की हर गुप्त और अप्रकट नीति, कार्यपद्धति और सोच का जिस तरह से भंडाफोड़ किया है, यह विश्व के अन्य देशों के लिए भी भारी चेतावनी है कि वे अपनी राजनयिक सूचनाओं, मंत्रणाओं और टिप्पणियों को कैसे सुरक्षित रखें। यही नहीं, वे जो प्रकट रूप में कहते हैं, वह सही है या नहीं, उसका विश्वास कैसे दिलाएं। हर देश अपने राजनय, कूटनीति और गुप्तचरी के तौर-तरीकों को गुप्त रखता है और एक सीमा तक उसे रखना भी चाहिए, लेकिन बहुत-सी बातें ऐसी भी होती हैं, जिनके लिए हर सरकार अपनी जनता और विश्व के आगे जवाबदेह होती है। अभी तो विकिलीक्स ने मुख्य रूप से अमेरिका को जवाबदेह बनाया है। आगे शायद और देशों का भी नंबर आए। (लेखक बीबीसी के पूर्व प्रसारक हैं)
साभार:-दैनिक जागरण ०९-१२-२०१०

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