Friday, December 10, 2010

जवाब की बारी

उच्चतम न्यायालय ने पीजे थॉमस से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने के बावजूद केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पद पर आसीन होने के संदर्भ में स्पष्टीकरण मांगने के साथ केंद्र सरकार को भी जिस तरह नोटिस जारी किया उससे यह साफ है कि उसे यह समझना मुश्किल हो रहा है कि इस महत्वपूर्ण पद पर उनकी नियुक्ति क्यों की गई? हालांकि अटॉर्नी जनरल ने थॉमस को जारी नोटिस लेने से इंकार कर यह संकेत देने की कोशिश की केंद्र सरकार का उनसे कोई लेना-देना नहीं, लेकिन इस सवाल का जवाब अभी भी नदारद है कि उनका चयन क्यों किया गया? न तो कांग्रेस यह बताने को तैयार है और न ही उसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता कि नौकरशाहों की भारी-भरकम जमात में सीवीसी पद के लिए दागदार थॉमस ही उपयुक्त उम्मीदवार क्यों नजर आए? यह ठीक है कि स्पेक्ट्रम घोटाले के कारण संसद ठप पड़ी है और इस कारण थॉमस की नियुक्ति को लेकर वहां भी बहस नहीं हो पा रही है, लेकिन यह साधारण सा स्पष्टीकरण तो कभी भी और कहीं भी दिया जा सकता है कि इतना विवादास्पद नौकरशाह सरकार की प्राथमिकता सूची में क्यों शामिल हुआ? आम जनता को इस सवाल का भी जवाब चाहिए कि थॉमस की नियुक्ति निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन कर क्यों की गई? जब नियम यह है कि सीवीसी की नियुक्ति प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और लोकसभा में नेता विपक्ष की सहमति से होगी तो फिर सुषमा स्वराज की लिखित और मौखिक आपत्ति को दरकिनार क्यों किया गया? आखिर आम जनता क्या समझे? क्या यह कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने किसी के दबाव में थॉमस के नाम पर मुहर लगाई या फिर यह मान ले कि स्पेक्ट्रम घोटाले पर लीपापोती करने के मकसद से ही उन्हें इस संवैधानिक पद पर बैठाया गया? यह कैसा लोकतंत्र है कि आम जनता को उद्वेलित करने वाले सवालों का जवाब देने के लिए कोई भी तैयार नहीं। चूंकि मीडिया के माध्यम से एक स्वर से यही ध्वनित हो रहा है कि थॉमस की नियुक्ति अनुचित और मनमाने तरीके से की गई इसलिए आम जनता तो यही समझेगी कि केंद्रीय सत्ता को लोकतंत्र की परवाह नहीं। विडंबना यह है कि थॉमस की नियुक्ति को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा बार-बार फटकारे जाने के बावजूद केंद्र सरकार यह बताने के लिए तैयार नहीं कि वह उन्हें लेकर अब क्या सोच रही है? यदि केंद्र सरकार थॉमस का बचाव नहीं कर रही है तो फिर वह अपनी भूल स्वीकार करते हुए यह कहने का साहस क्यों नहीं जुटा पा रही है कि उन्हें अपने पद से हट जाना चाहिए? उच्चतम न्यायालय की ओर से नोटिस जारी होने के बाद थॉमस ने जिस तरह इस पर खुशी जाहिर की कि अब उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा उससे तो यही लगता है कि सरकार की तरह उन्होंने भी बेशर्मी ओढ़ ली है। यदि सरकार की ओर से कोई उन्हें अपने पद पर जमे रहने की सलाह नहीं दे रहा है तो इसका अर्थ है कि वह महाभियोग का सामना करने की तैयारी कर रहे हैं। हो सकता है कि थॉमस और केंद्र सरकार के पास इस सवाल का कोई जवाब हो कि पामोलिन आयात घोटाले का अभियुक्त होने के बावजूद उन्हें सीवीसी क्यों बनाया गया, लेकिन इस प्रश्न का तो कोई उत्तर हो ही नहीं सकता कि सुषमा स्वराज की आपत्तियों को क्यों खारिज किया गया? ऐसा लगता है कि केंद्रीय सत्ता या तो अहंकार से ग्रस्त हो चुकी है या उसने यह तय कर लिया है कि वह इस मुद्दे पर जनभावनाओं की उपेक्षा करने के लिए किसी भी हद तक जाएगी।
साभार:-दैनिक जागरण ०७-१२-२०१०

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