Wednesday, December 29, 2010

लक्ष्य से भटकी कांग्रेस

पूरे देश में भ्रष्टाचार और महंगाई विरोध की आंधी झेल रही कांग्रेस के महाधिवेशन से देश को उम्मीद थी कि कुछ नए और ठोस जवाब के साथ उसका नया नेतृत्व उभर कर सामने आएगा। बिहार की जनता ने राहुल नेतृत्व को पूरी तरह नकार दिया है। उत्तर प्रदेश की जनता तो उन्हें पहले ही अस्वीकार कर चुकी है। फिर भी उन्हीं को थोपने की मंशा से सिद्ध हो जाता है कि कांग्रेस अपनी कमियों को नजरंदाज कर आगे बढ़ने की कोशिश ही नहीं कर रही है। अभी तक आतंकवाद को पंथ और जाति से परे बताने वाली कांग्रेस ने सम्मेलन में इसका वर्गीकरण बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक के रूप में कर दिया। फिर कांग्रेस इतिहास के प्रति जबावदेह भी नहीं है। 80 के दशक में लिट्टे उग्रवादियों को देहरादून में प्रशिक्षण देकर श्रीलंका भेजना और उन्हीं का दमन करने के लिए भारत की शांति सेना को श्रीलंका भेजना किस वर्ग का आतंकवाद था। इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी हिंसा में देश भर में हजारों सिख मारे गए, अरबों की संपत्ति लूटी गई। आज भी कांग्रेसी उन दंगों का इल्जाम झेल रहे हैं। वह किस वर्ग का आतंकवाद था। सम्मेलन के मंच पर खामोश प्रधानमंत्री कांग्रेस अध्यक्ष के अभिनंदन के पात्र थे। उनका भाषण सुनने, उनके विचार सुनने में किसी की रुचि नहीं थी। उन्हें सफाई तो देश को देनी होगी कि पूरे देश को उन्होंने वचन दिया था कि दिसंबर तक महंगाई समाप्त हो जाएगी। प्याज के दाम 80 रुपये किलो पहुंच गए हैं। पेट्रोल व चीनी के दाम पहले ही बढ़ा दिए गए थे। दूध का दाम उसी दिन दो रुपये लीटर बढ़ा था। इस महंगाई का असर न तो गरीबों के हमदर्द राहुल को परेशान कर रहा था न ही प्रधानमंत्री को। हां, गृहमंत्री चिदंबरम को राहुल के दार्शनिक अंदाज में दिए भाषण में राजीव की झलक नजर आ रही थी। वह प्रतिनिधियों से उनके भाषण का अर्थ निकालने की अपील कर रहे थे। शायद इसमें उनकी खुद की सफाई निहित थी क्योंकि राजीव की शहादत के बाद वह तमिल मनीला कांग्रेस बनाकर जी।के. मूपनार के साथ चले गए थे और देवगौड़ा, गुजराल सरकारों के चहेते वित्तमंत्री बन गए थे। सहसा उनकी खुली अर्थव्यस्था की पोथी कम्युनिस्टों की बंद अर्थव्यवस्था की पोषक हो गई थी। इसकी सफाई तो देनी ही थी क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ऐसे लेागों की खूब खबर ली थी और राहुल ने उनकी पीठ थपथपाई थी। चिदंबरम का समय अपनी सफाई में चला गया। आतंकवाद, नक्सलवाद, कानून-व्यवस्था को उन्होंने छुआ ही नहीं। वित्तमंत्री का पूरा भाषण भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संयुक्त समिति बनाने के विरोध में था। देश की आर्थिक दशा को दूर से भी नहीं छुआ गया। सोनिया गांधी व राहुल इमला पढ़ने के अभ्यस्त हैं। नेहरू-इंदिरा के खानदानी होते हुए उनके पास न तो सोच है न ही दृष्टि। फिर देश क्या सुने और क्या जाने। प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार के बिंदु पर पब्लिक एकाउंट्स कमेटी के सामने हाजिरी की गुहार लगा दी, फिर जे.पी.सी. क्यों नहीं। प्रधानमंत्री लगातार राज्यसभा के सदस्य हैं। लोकसभा संकट में थी और वह विदेश यात्रा पर थे। संसद के प्रति इतना आदर है तो संकट में एक बार भी विपक्ष से बात करने का समय निकालते। आखिर उन पर तो भ्रष्टाचार के आरोप लगे नहीं किंतु उनकी जानकारी में देश की मूल्यवान संपत्ति लूटी जा रही थी। उसके लिए क्या किया? पी.ए.सी के सामने केवल अधिकारियों की पेशी होती है। लोकसभा अध्यक्ष की पूर्व अनुमति के बिना किसी मंत्री को पी.ए.सी. के सम्मन की तामील नहीं की जा सकती। प्रधानमंत्री राज्यसभा के सदस्य हैं। उन पर लोकसभा अध्यक्ष का कोई अधिकार नहीं है। आखिर प्रधानमंत्री ने इस बिंदु पर भी फिर से देश को गुमराह कर ही दिया। इससे साफ हो जाता है प्रधानमंत्री खुद राजनीतिक भ्रष्टाचार पर पर्दा डाल रहे हैं। अभी तक सीबीआइ गैर कांग्रेसी नेताओं के यहां छापा डाल चुकी है, कांग्रेसियों के घर क्यों नहीं? विदेशों में लाखों करोड़ का कालाधन वापस लाने के बारे में सरकारी आश्वासनों का क्या हुआ? अधिवेशन ने सिद्ध किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने में कांग्रेस असमर्थ है क्योंकि राजनीति के शीर्ष में व्याप्त भ्रष्टाचार ही कांग्रेस की पूंजी है। कांग्रेस अपने संगठनात्मक ढांचे के बारे में कोई संदेश नहीं दे सकी। 15 हजार प्रतिनिधियों में एक हजार भी निर्वाचित नहीं थे। मनोनयन के रोग से ग्रस्त कांग्रेस कभी संगठनात्मकर चुनाव नहीं करा सकती। इस अधिवेशन से देश की उत्सुक जनता को नई रोशनी नहीं मिली। कांग्रेसजनों को भी कुछ नया नहीं मिला। बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों से प्रतिनिधियों को अपनी बात कहने का मौका ही नहीं मिला। सम्मेलन को संघ परिवार का भूत सताता रहा। कांग्रेस पार्टी की लचर नीतियों से ही देश में सांप्रदायिकता की विषबेल फली-फूली है। कांग्रेस फिर से देश को सांप्रदायिक खेमेबंदी में बांटने की साजिश रच रही है। आंध्र में कांग्रेस पर संकट आया तो नरसिंहा राव का भूत निकल आया। ऐसी दिग्भ्रमित कांग्रेस की अवनति होनी ही है। कांग्रेस में सोच, संकल्प और नेतृत्व तीनों गायब हैं जो किसी दल के आगे बढ़ने के लिए जरूरी हैं। (लेखक सपा के महासचिव हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

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