Tuesday, December 7, 2010

सेक्युलर आतंकवाद

कांग्रेस पर राजनीतिक नैतिकता और शुचिता को ताक पर रख देने का आरोप लगा रहे हैं बलबीर पुंज

सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बावजूद 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकार मौन है। घोटाले की संयुक्त संसदीय दल से जांच कराने की मांग सरकार द्वारा ठुकराए जाने से संसद ठप है। वहीं सर्वोच्च न्यायालय की आपत्ति के बावजूद मुख्य सतर्कता आयुक्त पी।जे. थॉमस अपने पद पर बने हुए हैं। दूरसंचार मंत्रालय में सचिव रहे थॉमस घोटाले के सहभागी या मूकदर्शक हैं या नहीं, उससे महत्वपूर्ण बात यह है कि घोटाले की जांच कर रही सीबीआई के निगहबान बने रहने का उन्हें नैतिक अधिकार कतई नहीं है। उस पर तुर्रा यह है कि सरकार शीर्ष स्तर पर पारदर्शिता और शुचिता होने का दावा करती है। कांग्रेस विपक्षी दलों के विरोध को अनावश्यक हड़बोंग बताकर मामले को हलका साबित करना चाहती है। कांग्रेस के प्रवक्ता संपूर्ण विपक्ष को माओवादियों का एजेंट बताते हैं। अभी कुछ समय पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक केएस सुदर्शन की एक अवांछित टिप्पणी को लेकर कांग्रेस सहित सेक्युलर मीडिया ने सार्वजनिक जीवन में संयम और मर्यादा का प्रश्न खड़ा किया था, किंतु आश्चर्य है कि कांग्रेसी प्रवक्ता की इस अमर्यादित टिप्पणी पर वे मौन हैं। क्यों? कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर की गई टिप्पणी संघ परंपरा के खिलाफ थी। इसी कारण संघ और भाजपा ने उससे दूरी बनाने में देर नहीं की, परंतु क्या सार्वजनिक जीवन में संवाद की मर्यादा बनाए रखने की जवाबदेही से कांग्रेस और सेक्युलर परिवार के अन्य सदस्य मुक्त हैं? क्या एकतरफा संयम से सार्वजनिक जीवन में संवाद की गरिमा को सुरक्षित रखा जा सकता है? कांग्रेस के प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने कुछ दिन पूर्व संघ को आइएसआइ संचालित सिमी के समकक्ष बताया। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने संघ की तुलना लश्करे-तैयबा से की। संघ की तुलना सिमी या लश्करे-तैयबा से करने और भाजपा सहित सभी विपक्षी दलों को माओवादियों का एजेंट कहने पर क्या सार्वजनिक जीवन की मर्यादाएं नहीं टूटतीं? यह दोहरापन क्यों? वस्तुत: सत्ता तंत्र के दम पर विपक्ष का दमन करना कांग्रेस का इतिहास रहा है। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल का दौर एक काला अध्याय है। उस दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण सहित जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं को राजद्रोही बताया गया था। जयप्रकाश नारायण सहित विपक्ष के तमाम नेता और संघ के कार्यकर्ता जेल में बंद कर दिए गए थे। इतिहास गवाह है कि जब-जब निरंकुशवादी कांग्रेस को अपनी कुर्सी खतरे में दिखी है, उसने राष्ट्रहित को ताक पर रख अवसरवादी राजनीति का सहारा लिया और राष्ट्रवादी तत्वों को हाशिए पर डालने के लिए उन पर मिथ्या आरोप लगाए। महात्मा गांधी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के लिए आज भी संघ को समय-समय पर कलंकित किया जाता है। उनकी हत्या के बाद गठित न्यायिक आयोगों और न्यायपालिका ने संघ को बेदाग बताया, किंतु उनकी हत्या के 62 साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस के पदाधिकारी संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाते हैं। गुजरात की जनता पिछले तीन विधानसभा चुनावों में बार-बार राज्य की कमान नरेंद्र मोदी को सौंपती आ रही है, किंतु कांग्रेस समेत सेक्युलर दल उन्हें मौत का सौदागर पुकारते हैं। नरेंद्र मोदी का चरित्र हनन करने के लिए स्वयंभू मानवाधिकार संगठनों का वित्त और वृत्ति पोषण सेक्युलरिस्ट करते हैं। क्यों? नरेंद्र मोदी के खिलाफ चलाए गए दुष्प्रचार अभियान की वीभत्सता पिछले कुछ समय से सामने आने लगी है। सेक्युलर कहलाने वाले मानवाधिकारियों और राजनीतिक गिद्धों के दुष्प्रचार के बाद गोधरा नरसंहार की प्रतिक्रिया में भड़के गुजरात दंगों की कथित निष्पक्ष जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआइटी) ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी है। एसआइटी ने गुलबर्ग दंगा मामले में मुख्यमंत्री या उनके कार्यालय के संलिप्त होने से साफ इंकार कर दिया है। दंगे में मारे गए कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने हालांकि अपने बयान में मुख्यमंत्री के शामिल होने की बात नहीं की थी, किंतु दंगा पीडि़तों के नाम पर राजनीतिक दलों के वैरशोधन अभियान में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से न्यायालय में दाखिल शपथनामे में यह आरोप लगाया गया था कि सांसद की पत्नी के लाख अनुनय-विनय के बावजूद मुख्यमंत्री और उनका कार्यालय तटस्थ बना रहा और उनके समर्थन से स्थानीय प्रशासन ने बलवाइयों को खुली छूट दी। जून, 2003 में जब वड़ोदरा की अदालत ने बेस्ट बेकरी कांड के आरोपियों को बरी कर दिया था, तभी से सेक्युलर राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता मुख्य गवाहों को बरगलाकर झूठ के दम पर गुजरात सरकार और नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते आ रहे हैं। तीस्ता सीतलवाड़ के संरक्षण में उक्त फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई गई। सर्वोच्च न्यायालय ने तब मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर करने का आदेश दिया था, किंतु इसके थोड़े ही दिनों बाद स्वयं बेस्ट बेकरी की जाहिरा ने तीस्ता सीतलवाड़ पर अपहरण और मानसिक दबाव डालने का आरोप लगाया था, बावजूद इसके सेक्युलरिस्टों का तीस्ता प्रेम टूटा नहीं। गुजरात दंगों की जांच कर रहे विशेष जांच दल के प्रमुख और सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक ने तीस्ता की कार्यप्रणाली पर गंभीर आपत्ति दर्ज करते हुए अदालत को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वादी द्वारा लगाए गए वीभत्स आरोप (एक गर्भवती मुस्लिम महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद तलवार से उसका पेट चीर डाला गया) झूठे हैं। इन सबके बावजूद नरेंद्र मोदी और भाजपा को कलंकित करने की मुहिम बंद नहीं हुई। सेक्युलरिस्टों के उत्साहव‌र्द्धन में काम कर रहीं तीस्ता सीतलवाड़ को गुजरात दंगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का दोषी पाया गया है, जिस पर अदालत ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है। गवाहों की सुरक्षा के संबंध में विशेष जांच दल को लिखी अपनी चिट्ठी की एक प्रति तीस्ता ने जिनेवा स्थित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन को भी भेजी है। क्या तीस्ता को गुजरात की न्यायपालिका के बाद अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल पर भी भरोसा नहीं रहा? कहीं इसका कारण यह तो नहीं कि उनका झूठा अभियान अब जनता के सामने नंगा होने लगा है? राजनीतिक वैरशोधन के लिए ऐसे संगठनों के दुष्प्रचार और ओछे हथकंडों को पोषित करना कांग्रेस का सेक्युलर आतंकवाद नहीं तो और क्या है? (लेखक भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं)
साभार:-दैनिक जागरण 07-१२-२०१०

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