Wednesday, December 29, 2010

घोटालों का गणतंत्र

घरेलू राजनीतिक और आर्थिक तंत्र में भ्रष्टाचार को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता रहे हैं ब्रह्मा चेलानी

घोटालों का गणतंत्र भारत राष्ट्रीय सुरक्षा की अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। किंतु इनमें से केवल एक- राजनीतिक भ्रष्टाचार ने भारतीय राष्ट्र के सामने अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। आज राष्ट्र वास्तव में बड़े घोटालों के गणतंत्र में तब्दील हो चुका है। व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी पदों के दुरुपयोग का घुन राष्ट्र की शक्ति को खोखला कर रहा है। जब हथियारों की खरीद से लेकर नीतिगत बदलाव जैसे महत्वपूर्ण फैसले अकसर भ्रष्ट निहितार्थो से प्रभावित होते हैं, तब राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता होने की आशंका बढ़ जाती है। अगर आज भारत को एक शिथिल राष्ट्र के तौर पर देखा जा रहा है, तो इसके लिए प्रमुख रूप से दोषी भ्रष्टाचार है। भारत की इस ढिलाई से उन लोगों की बांछें खिल गई हैं जो इसकी सुरक्षा पर निशाना साधना चाहते हैं। एक पुरानी कहावत, सड़ी मछली का सिर नीचा से भारत की हालत जाहिर हो जाती है। यानी सिर उसी का झुकता है जिसका शरीर स्वस्थ नहीं होता। वास्तव में सरकार के तमाम अंगों में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार का पहिया खुद--खुद घूमता रहता है। यह भारत की आंतरिक सुरक्षा की कमजोर कड़ी बन गया है। जैसा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने पिछले साल कहा था कि मुंबई धमाकों को अधिक घातक बनाने के लिए जो प्लास्टिक के विस्फोटक इस्तेमाल किए गए थे, देश में उनकी तस्करी स्थानीय भ्रष्ट प्रशासन के कारण संभव हो सकी थी। किंतु जो तत्व भारतीय गणतंत्र को जर्जर बना रहा है वह है उच्च पदों पर संस्थागत भ्रष्टानीति भ्रष्टाचार से गंभीर रूप से संक्रमित हो तो विदेश नीति दमदार हो ही नहीं सकती। विडंबना है कि आर्थिक उदारीकरण ने व्यक्तिगत लोभ को बढ़ाया है और इसकी वजह से समाज में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला है। यहां तक कि विभिन्न परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मंजूरी प्रदान करने से पुराने जमाने के लाइसेंस राज की याद ताजा हो जाती है। अब भारत में भ्रष्टाचार राष्ट्रीय लूट में बदल चुका है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत संस्थागत रूप से दुर्बल होता जा रहा है। यहां इतने घोटाले होने लगे हैं कि लोगों का गुस्सा कुछ ही समय में ठंडा पड़ जाता है। वास्तव में, किसी बड़े घोटाले के खुलासे के बाद लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए इसके बाद के छोटे घोटाले को उछाला जाता है। भ्रष्टाचार के घोटाले अब तो जैसे टीवी धारावाहिक बन गए हैं। उतने ही दिलचस्प और नाटकीय। जनता का ध्यान हटाने के लिए सरकार घोटाले की जांच प्रक्रिया की बात आगे बढ़ा देती है। इसमें सुनिश्चित किया जाता है कि घोटाले से लाभ उठाने वाले बच निकलें और लूट की रकम भी वसूल हो पाए। किसी भुलावे में रहें। मॉरिशस जैसे सुरक्षित आश्रयों से अंतरराष्ट्रीय वित्त का देश में प्रवाह साफ-साफ आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आना चाहिए। जब आर्थिक अनुबंधों पर हस्ताक्षर होते हैं या फिर नीतिगत फैसले लिए जाते हैं तो घूसखोरी के कारण राष्ट्रीय हितों पर कुठाराघात से परहेज नहीं किया जाता। भारत उन देशों में शीर्ष पर है जिनकी राष्ट्रीय संपदा चुराकर स्विस बैंकों में जमा की जा रही है। फिर भी, किसी भी भारतीय राजनेता को देश के खिलाफ जंग छेड़ने के आरोप में फांसी पर नहीं लटकाया गया है। भारत दो प्रकार के आतंक का हमला झेल रहा है। ये हैं जिहादी और इसके खुद के राजनेता द्वारा की जा रही राष्ट्रीय धन के साथ लूट-खसोट। भ्रष्टाचार की संस्कृति का घातक प्रभाव राष्ट्रीय क्षमताओं में Oास से परिलक्षित होता है। भारत की आर्थिक गतिशीलता की जड़ें निजी क्षेत्र के नेतृत्व में होने वाले विकास में हैं। किंतु चीन के विपरीत, भारत में जिस भी क्षेत्र में सरकार भागीदार है, वहां प्रदर्शन बहुत खराब है। राष्ट्र की अधोगति भारत को अपने हित सुरक्षित रखने में सबसे बड़ी बाधा है। इसी कारण राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा नेपथ्य में चला जाता है। आज, आत्मप्रशंसित अतुल्य भारत की कोई सुनियोजित राष्ट्रीय सुरक्षा नीति या सुपरिभाषित रक्षा नीति, या फिर घोषित आतंक विरोधी सिद्धांत नहीं है। भारत विश्व की एकमात्र ऐसी बड़ी शक्ति है, जो मूलभूत रक्षा जरूरतों के लिए अन्य शक्तियों पर निर्भर है। उच्च श्रेणी के सामरिक पहुंच वाले हथियारों अन्य सुविधाओं का निर्माण करने के बजाए भारत ने हथियार जुटाने के लिए पैसे लुटाने का रास्ता अपनाया हुआ है। परिणामस्वरूप, पिछले दशक में भारत विश्व का सबसे बड़ा हथियारों का आयातक देश बन गया है, जबकि युद्ध में निर्णायक जीत हासिल करने की इसकी क्षमता धीरे-धीरे खत्म हो रही है। क्या कोई अन्य देश भारत से अधिक अतुल्य हो सकता है! भारत की सुरक्षा अनंत घोटालों में तब्दील हो गई है। यहां तक कि नियंत्रक और महालेखापरीक्षक द्वारा हथियारों की खरीद के तरीके पर उंगली उठाए जाने के बाद भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं आया है। इस प्रकार के आयात अकसर खुली निविदा और पारदर्शिता के बिना ही होते हैं। यह राजनीतिक भ्रष्टाचार का प्रमुख श्चोत है। भारत ने सिद्ध कर दिया है कि जितना भ्रष्ट तंत्र होगा, उतने ही शक्तिशाली भ्रष्टाचार करने वाले तत्व होंगे। एक भ्रष्ट व्यवस्था इसमें शामिल होने वालों को तेजी से भ्रष्ट बना देती है। इस प्रकार के भ्रष्टाचार से सरकारी या राजनीतिक दलों के स्तर से नहीं निपटा जा सकता। आखिरकार, भ्रष्टाचार का बड़ा हिस्सा राजनेताओं की जेबों में ही पहुंचता है और उनके लोभ को और भड़का देता है। अन्य राष्ट्रीय चुनौतियों की तरह भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण कुशल नेतृत्व और सुशासन का लोप है। ईमानदार नेतृत्व को प्रोत्साहन, शासन में सुधार, राजकोषीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उपाय, रिश्वतखोरी के खिलाफ तंत्र की मजबूती, सरकार की जवाबदेही और जनता के सक्रिय योगदान से ही भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सकती है। राजनीति और व्यापार में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए स्वतंत्र जांच एजेंसियों का गठन अनिवार्य शर्त है। भारत में ये एजेंसियां ऐसे लोगों द्वारा नियंत्रित हैं, जिनमें से अधिकांश खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद आज महामारी का रूप ले चुके हैं। ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति के बाद भी भारत में साम्राज्यवादी सिद्धांतों पर आधारित घरेलू राजनीतिक वर्ग विकसित हुआ है, जो अब भी साम्राज्यवादी तौर-तरीकों से संचालित हो रहा है। शोषण और लूट-खसोट से मुक्ति पाने के लिए भारत को स्वतंत्रता के दूसरे संघर्ष से गुजरना होगा। (लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

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