Wednesday, December 29, 2010

सीजर की पत्नी का एतराज

प्रधानमंत्री पद को पाक-साफ बताने के मामले में सीजर की पत्नी के उदाहरण को अनुपयुक्त मान रहे हैं राजीव सचान
रोमन शासक जूलियस सीजर की पत्नी ने उस समय अपनी कब्र में अवश्य करवट ली होगी जब कांग्रेस महाधिवेशन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक तरह से खुद की तुलना उससे करते हुए कहा कि उसे संदेह से परे होना चाहिए। आम आदमी को यह तुलना भले ही समझ न आई हो, लेकिन इतना स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री यह कहना चाहते थे कि इस पद पर बैठे व्यक्ति को संदेह से परे होना चाहिए। इसी मंच से उन्होंने कहा कि वह स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच करने वाली लोक लेखा समिति (पीएसी) के समक्ष पेश होने को तैयार हैं और इसके लिए इस समिति को पत्र लिखने भी जा रहे हैं। उन्होंने पत्र लिख भी दिया। पता नहीं पीएसी उन्हें बुलाने की आवश्यकता समझेगी या नहीं, लेकिन उनकी इस अप्रत्याशित पहल से इस सवाल का जवाब नहीं मिलता कि पौने दो लाख करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से क्यों नहीं हो सकती? यदि कहीं कुछ छिपाने-दबाने का इरादा नहीं है तो फिर जेपीसी के गठन में क्या परेशानी है? कांग्रेस और केंद्र सरकार की ओर से जेपीसी का गठन न करने को लेकर इतने बहाने बनाए जा चुके हैं कि उनकी गिनती करना मुश्किल है। कभी कहा जाता है कि यह समिति सही तरह जांच करने में सक्षम नहीं और कभी यह कि विपक्ष प्रधानमंत्री को इस समिति के सामने तलब करना चाहता है। यदि प्रधानमंत्री पीएसी के सामने हाजिर होने को तैयार हैं तो फिर जेपीसी के सामने क्यों नहीं? कांग्रेस देश को यह कहकर आतंकित करना चाहती है कि आखिर विपक्ष प्रधानमंत्री पर उंगली कैसे उठा सकता है? नि:संदेह प्रधानमंत्री की निष्ठा और उनकी ईमानदारी पर संदेह नहीं जताया जा सकता, क्योंकि उनका अतीत बेदाग है, लेकिन यदि किसी को इस पर संदेह है कि वह अपने इर्द-गिर्द के भ्रष्ट तत्वों पर लगाम लगाने अथवा उनके खिलाफ कार्रवाई करने में समर्थ नहीं रहे तो उसे सवाल उठाने-पूछने का हक है। लोकतंत्र में कोई भी न तो पवित्र गाय हो सकता है और न ही देवदूत। प्रधानमंत्री विनम्र-विद्वान और नेक इरादों वाले शख्स हैं, लेकिन क्या उनसे भूल-चूक नहीं हो सकती और यदि भूल-चूक नहीं हुई तो उनकी आंखों के सामने इतना बड़ा घोटाला कैसे हो गया? क्या कारण है कि राष्ट्रमंडल खेलों में तैयारियों के नाम पर घोटाला होता रहा और वह उसे देखते रहे? क्या कोई यह दावा कर सकता है कि वह गठबंधन राजनीति की विसंगतियों और घटक दलों की जोर-जबरदस्ती की राजनीति से मुक्त हैं? यदि प्रधानमंत्री घपले-घोटालों पर लगाम लगाने में समर्थ होते तो संसद सत्र के बाधित होने और विपक्ष के सड़कों पर उतरने की नौबत ही क्यों आती? यह देश तो उस परंपरा का वाहक है जहां संत-महात्माओं तो क्या खुद ईश्वरीय अवतार कहे जाने वाले राम को एक अदद प्रजा केसंदेह-सवाल पर सीता की अग्निपरीक्षा लेनी पड़ी थी। जिस देश में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित राम अपनी पत्नी की अग्निपरीक्षा लेने को विवश हुए हों वहां सीजर की पत्नी का उदाहरण देने से बात बनने वाली नहीं है-और फिर ऐसा कोई उदाहरण तो वह दे सकता है जिसके पास घपले-घोटाले करने वाले फटकते तक न हों अथवा जो ऐसे तत्वों को सलाखों के पीछे पहुंचा कर दम लेता हो। दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री ऐसा कुछ भी नहीं कर सके हैं-न पिछले कार्यकाल में और न वर्तमान कार्यकाल में। जब बोफोर्स तोप सौदे के बदनाम दलाल ओट्टावियो क्वात्रोची के लंदन स्थित बैंक खातों पर लगी रोक गुपचुप तरीके से हटा ली गई थी और इसका रहस्योद्घाटन होने पर सरकार सबके निशाने पर थी तो खुद प्रधानमंत्री ने देश को यह आश्वासन दिया था कि वह सच्चाई का पता लगाएंगे, लेकिन यह आज भी एक रहस्य है कि क्वात्रोची पर मेहरबानी किसने दिखाई? इसी तरह का एक रहस्य यह भी है कि मनमोहन सरकार के विश्वास मत के दौरान संसद के भीतर नोटों के बंडल पहुंचाने के पीछे किसका हाथ था? प्रधानमंत्री ने इस मामले की भी सच्चाई का पता लगाने का आश्वासन दिया था, लेकिन एक बार फिर उनका यह आश्वासन खोखला निकला। यदि संस्थाओं की साख नापने-जांचने का कोई पैमाना होता तो वह यही बता रहा होता कि पिछले कुछ वर्षो में सीबीआइ की साख गिरी है। देश अच्छी तरह जानता है कि यह संस्था प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन काम करती है और उसके स्वायत्त एवं स्वतंत्र होने की बातें सफेद झूठ के अलावा और कुछ नहीं। सीबीआइ पर निगरानी रखने वाली संस्था सीवीसी की तब तक थोड़ी-बहुत साख थी जब तक उसके मुखिया पीजे थॉमस नहीं बने थे। थॉमस को सीवीसी किसने बनाया? मनमोहन सिंह और गृहमंत्री चिदंबरम ने और वह भी उच्चतम न्यायालय द्वारा तय प्रक्रिया का उल्लंघन करके। स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मनमोहन सरकार के ऐसे रिकार्ड को देखने वाली सीजर की पत्नी यदि जीवित होती तो वह उस तुलना पर एतराज जताती जो कांग्रेस महाधिवेशन में की गई। संभवत: यह एतराज जोरदार होता, क्योंकि वह इससे अवगत होतीं कि शशी थरूर तब मंत्री पद से हटाए गए थे जब विपक्ष सिर के बल खड़ा हो गया था। वह इससे भी अवगत होती कि राजा को हटाने के पहले खुद प्रधानमंत्री ने ही उन्हें क्लीनचिट दी थी और इससे तो सारा जहां परिचित है कि सरकार थॉमस को हटाने का साहस अब भी नहीं कर पा रही है? यदि सीजर की पत्नी जीवित होती तो वह सीबीआइ के इन दावों पर ठहाके लगाती कि उसे स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल घोटाले में शामिल माने जा रहे लोगों के ठिकानों पर महत्वपूर्ण दस्तावेज हाथ लगे हैं। यदि सीबीआइ सही है तो इसका मतलब है कि जिनके यहां छापे पड़े वे महत्वपूर्ण दस्तावेज अपने पास रखकर इस जांच एजेंसी के अफसरों का इंतजार कर रहे थे। इस तथ्य से परिचित होने के बाद तो शायद सीजर की पत्नी जान ही दे देती कि नीरा राडिया के फोन टैप कराने वाली सरकार उनके लीक होने का इंतजार करती रही।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

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