Tuesday, December 7, 2010

भ्रष्ट तत्वों की समानांतर सत्ता

भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और उद्यमियों की साठगांठ को संक्रग सरकार से संरक्षण मिलता देख रहे हैं राजीव सचान

प्रधानमंत्री नरसिंह राव के कार्यकाल में राजनीति के अपराधीकरण की गंभीरता का पता लगाने के लिए एनएन वोहरा की मध्यस्थता में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और माफिया सरगनाओं में साठगांठ कायम हो गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार इस गठजोड़ ने अनेक हिस्सों में समानांतर सत्ता सी कायम कर ली है। जब यह रिपोर्ट संसद में पेश की गई तो पक्ष-विपक्ष के नेताओं ने ऐसा आभास कराया जैसे उनकी आंखें खुल गई हैं, लेकिन खुली-खुली सी नजर आने वाली वे आंखें वस्तुत: कभी नहीं खुलीं। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले एनएन वोहरा आज जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हैं और तबके वित्तमंत्री मनमोहन सिंह इस समय प्रधानमंत्री पद पर आसीन हैं। किसी को यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि मनमोहन सिंह राजनीति के अपराधीकरण की गंभीरता समझना चाहेंगे और इसके लिए किसी समिति का गठन करेंगे। वस्तुत: अब ऐसी किसी समिति के गठन की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि हाल के घोटालों ने यह उजागर कर दिया है कि देश में भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और उद्यमियों की जबरदस्त साठगांठ कायम हो गई है। वे केंद्रीय सत्ता की नाक के नीचे अरबों की हेराफेरी करने में कामयाब हो जाते हैं और सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगती। लगती भी है तो वह चेतने से इनकार करती है। कारपोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया के सार्वजनिक हुए टेप बहुत कुछ उजागर करने के साथ यह भी बता रहे हैं कि इस तिकड़ी की चौथी कड़ी के रूप में पत्रकारों की एक जमात भी है। राडिया के टेप यह संकेत भी देते हैं कि सत्ता की असली ताकत तो उनके पास थी। वह बड़े से बड़ा काम कराने में समर्थ थीं। नेताओं को मनचाहा मंत्रालय दिलवाना और उद्यमियों की मुरादें पूरी करना उनके लिए बाएं हाथ का खेल था। अब यह भी स्पष्ट है कि भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों और उद्यमियों का गठजोड़ भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों और माफिया तत्वों की साठगांठ से कहीं घातक है। यह नया गठजोड़ कितना जनविरोधी है, इसकी एक बानगी दिल्ली के कुछ निजी स्कूलों के खातों की जांच करने वाली कैग की वह रिपोर्ट बयान करती है जिसके अनुसार इन नामचीन स्कूलों ने अच्छा-खासा कोष होने के बावजूद छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों का भार बेचारे अभिभावकों पर डाल दिया और बढ़ी फीस से ऐशो-आराम के साधन जुटाए। कुछ स्कूलों ने तो बढ़ी फीस से बीएमडब्लू सरीखी महंगी कारें खरीदने में भी संकोच नहीं किया। कुछ स्कूलों ने फर्जी कर्मचारियों की सूची तक तैयार की ताकि बढ़ी हुई फीस आसानी से हजम की जा सके। इन स्कूलों की ही तरह एक बानगी दिल्ली के उन अस्पतालों ने भी पेश की थी जिन्हें दिल्ली हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया था कि वे अपने वायदे के मुताबिक गरीबों का मुफ्त इलाज करें। इसके जवाब में कुछ अस्पतालों ने बेशर्मी के साथ कहा कि हम ऐसा नहीं करेंगे, सरकार चाहे तो हमें दी गई जमीन की कीमत बाजार दर के हिसाब से ले ले। स्पेक्ट्रम घोटाला निजी क्षेत्र की लूट की एक बड़ी बानगी है। चूंकि इस लूट के समक्ष प्रधानमंत्री भी असहाय नजर आए और उनकी ईमानदारी धरी रह गई इसलिए इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि उदारीकरण के दौर में निजी क्षेत्र में एक ऐसा वर्ग भी उभर आया है जो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों के जरिये देश को लूटने में लगा हुआ है। शर्मनाक यह है कि ऐसा उस दल के शासनकाल में हो रहा है जो कहता है कि हमारा हाथ आम आदमी के साथ है। भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और उद्यमियों की तिकड़ी की ओर से कायम की गई समानांतर सत्ता इतनी ताकतवर है कि उसके हितों की रक्षा के लिए सरकार अपने नीतिगत फैसले तक बदल देती है। आखिर स्पेक्ट्रम घोटाला यही तो बता रहा है कि ए। राजा की मनमानी पर प्रधानमंत्री भी अंकुश नहीं लगा सके। उच्चतम न्यायालय के आकलन से यहां तक स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री की आपत्तियों को राजा ने बेअदबी के साथ दरकिनार कर दिया। इससे भी दयनीय यह है कि जब राजा की मनमानी को लेकर शोर मचा तो खुद प्रधानमंत्री ने उन्हें क्लीनचिट दे दी। इस पर भी गौर करें कि ईमानदार छवि वाले प्रधानमंत्री को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूप में दागदार पीजे थॉमस ही मिले। हालांकि कांग्रेस यह जान रही है कि थॉमस के कारण उसकी रही-सही प्रतिष्ठा जा रही है, लेकिन वह उन्हें पद छोड़ने का निर्देश देने का साहस नहीं जुटा पा रही है। एक अभियुक्त सीवीसी की कुर्सी पर विराजमान है और फिर भी कांग्रेसी एक तरह से संसद की छत पर चढ़कर हल्ला मचा रहे हैं कि हम बाकी दलों से ईमानदार हैं। ऐसा हल्ला और जोर से शोर मचाने के लिए कांग्रेस ने प्रवक्ताओं की संख्या बढ़ा दी है। वे अपने कुतर्को के जरिये यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए जेपीसी गठित करना गुनाह क्यों है? क्या किसी को इसमें संदेह है कि कांग्रेस का अहंकार उसके सिर चढ़कर बोल रहा है? (लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)
साभार:-दैनिक जागरण ०७-१२-२०१०

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