Tuesday, December 14, 2010

वर्तमान में जिएं

हमें वर्तमान में जीना चाहिए। हमें न तो भूत की चिंता करनी चाहिए और न भविष्य के विषय में सोचना चाहिए। सब कुछ वर्तमान ही है। भूत कल का वर्तमान था और भविष्य कल का वर्तमान होगा। समय चक्र कभी रुकता नहीं। जो अपने को बड़ा बलशाली बनता था वह भी दुनिया से चला गया। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता तो फिर कल क्यों? जो करना है आज ही कर लें, पता नहीं कल रहेंगे कि नहीं। अवसर हाथ से निकलने पर पश्चाताप ही होता है। संत कबीर ने ठीक ही कहा है- काल करे सो आज कर, आज करें सो अब। पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगा कब। आज मनुष्य का जीवन कितना पेचीदा और तनावग्रस्त है, यह हम सभी अनुभव करते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है कि हम इसे सुखमय बनाएं। इसके लिए हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए- हे प्रभु, हमें ऐसी बुद्धि दीजिए कि न तो हम दुखी रहें और न किसी को दुखी बनाएं। खुद जियो और जीने दो, यही जीवन दर्शन है। आज यदि खुशी के दो पल मिले हैं तो उसे जी भर कर जी लें। सबके साथ प्रेम सहयोग और सहानुभूति का भाव रखें, ईश्वर को समर्पित जीवन जिएं। कल बीत गया और आने वाले कल का पता नहीं। केवल वर्तमान ही हमारा है, इसे सन्मार्ग पर चलते हुए प्रसन्नता के साथ जिएं। यही शांति का पथ है। हम दूसरों से तो तमाम अपेक्षाएं करते हैं, किंतु उनकी अपेक्षाओं पर कितने खरे उतरते हैं यह बात महत्वपूर्ण है। सामाजिक विकृतियों का जन्म स्वार्थपरता से होता है। अगर हम अपने लिए ईमानदार हैं तो दूसरों के लिए भी ईमानदार होना पड़ेगा। सुख और शांति कहींऔर नहीं हमारे ही अंत:करण में मौजूद हैं, जिसे हमें अपने आचरण से बाहर लाना होगा। ताकि उसका लाभ अपने साथ-साथ अपने से संबंधित लोग भी उठा सकें। इसके लिए अपने को परिष्कृत व परिमार्जित करने की आवश्यकता है। समाज को हमसे बहुत अपेक्षाएं हैं, क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज से अलग नहींरह सकता। 6अलखनिरंजनलाल पथिक
साभार :-दैनिक जागरण १४-१२-२०१०

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