Tuesday, December 7, 2010

द्रमुक के दबाव का दुष्परिणाम

प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार के अनेक मसलों से संप्रग सरकार की मुश्किलें और अधिक बढ़ती देख रहे हैं अरुण नेहरू
देश में इस समय राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला ऑक्टोपस की तरह है, जिसकी दर्जनों भुजाएं हैं जो चारों दिशाओं में चल रही हैं। जैसे ही एक भुजा परेशानी खड़ी करती है और उसे काबू में किया जाता है, दूसरी सक्रिय हो कर संप्रग सरकार को मुसीबत में डाल देती है। जैसे-जैसे यह मुद्दा जनता के बीच चर्चा का विषय बनता जा रहा है, कांग्रेस की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में सीबीआइ जांच की कांग्रेस की पेशकश को विपक्ष ने नकार दिया है और वह संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच पर अड़ा है। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है। 2-जी के प्रमुख मुद्दे के अलावा सीवीसी और नीरा राडिया टेप प्रकरण और इस पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने भी कांग्रेस को संकट में डाल रखा है। यह बहुत गंभीर मसला है। टेप के मामले में राहत की बात बस इतनी ही है कि नीरा राडिया की ए राजा और द्रमुक के अन्य नेताओं के अलावा मंत्रिमंडल के किसी सदस्य से बातचीत नहीं हुई है। बातचीत में शामिल लोगों की साख पर बट्टा लगना ही है और मीडिया के एक वर्ग के लॉबिंग के प्रयास का भी नकारात्मक संदेश गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से टेप तलब किया है। मेरे विचार से इस मामले में अटकलें लगाने के बजाय हमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करना चाहिए। जैसे-जैसे स्पेक्ट्रम मामले में सीबीआइ जांच आगे बढ़ेगी, सीवीसी विवाद और गहराता जाएगा। दबाव में कार्रवाई से कांग्रेस को फायदा नहीं होगा। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने समझदारी भरा बयान जारी किया है। मेरे विचार से सुधारवादी कदम उठाने से विपक्ष भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में सीबीआइ जांच के लिए तैयार हो सकता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार की जांच से जुड़े बहुत से मसले खुले हुए हैं। इनमें राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श सोसायटी और 2-जी स्पेक्ट्रम शामिल हैं। इसके अलावा आईपीएल और पर्यावरण हितों की अनदेखी के मामले भी नए-नए पेच खड़े कर रहे हैं। राजनीतिक स्तर पर भारी उथल-पुथल चल रही है और निहित स्वार्थ खुलकर खेल रहे हैं। व्यवस्था में सफाई के प्रयासों में बाधा पहुंचाने के लिए वित्तीय दबाव समूह पुरजोर कोशिश करेगा। अगर ए राजा के खिलाफ कार्रवाई की जाती है तो द्रमुक जबानी मिसाइलें छोड़नी शुरू कर देगी। साथ ही इस मसले में कड़ी कार्रवाई से बचने के लिए दलित कार्ड भी खेला जा रहा है, पर इस मुद्दे पर अब सरकार और झुकने को तैयार नहीं है। ऐसे में क्या द्रमुक सरकार को अस्थिर करने की स्थिति में है? मेरे ख्याल से द्रमुक ऐसे कदम नहीं उठाएगी, क्योंकि तमिलनाडु में यह सत्ता विरोधी रुझान का सामना कर रही है। साथ ही द्रमुक में भीषण परिवार युद्ध भी छिड़ा हुआ है। अन्नाद्रमुक के रूप में वहां समर्थ विपक्ष मौजूद है और पीएमके तथा अन्य छोटे दल किसी भी दिशा में लुढ़क सकते हैं। कांग्रेस के पास भी विकल्पों की कोई कमी नहीं है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार से जुड़ा लवासा का मुद्दा भी सामने आया है, किंतु इसके तार आईपीएल से जुड़े होने के कारण यह मुद्दा और भड़केगा। टेलीकॉम घोटाले और लाइसेंसिंग प्रक्रिया से संबंधित बहुत से मुद्दे, विशेष रूप से स्वान टेलीकॉम ध्यान खींच रहे हैं। सीबीआइ, ईडी और आइटी के अलावा अन्य किसी के पास तथ्य नहीं हैं। इस संबंध में अटकलबाजियां लगाना उचित नहीं होगा, किंतु शरद पवार का यह बयान तो सही है ही कि औद्योगिक हितों को अनुचित तरीके से निशाना नहीं बनाना चाहिए, किंतु जहां तक 2-जी स्पेक्ट्रम का सवाल है इससे उद्योग जगत और राष्ट्रीय संपदा की कीमत पर बहुत छोटे समूह ने लाभ उठाया है। क्योंकि अब लाइसेंस राज अतीत की बात हो चुका है, इसलिए उद्योग जगत इनके खिलाफ उठाए जाने वाले कदमों का स्वागत ही करेगा। लवासा मामले का फैसला तो अदालत में ही संभव है, किंतु आदर्श सोसायटी में पर्यावरण और सुरक्षा की अनेक चिंताओं की अनदेखी के बावजूद परियोजना को अनुमति क्यों दी गई? निर्माता द्वारा भारी धनराशि खपा देने के बाद मामला काफी जटिल हो गया है। राष्ट्रमंडल खेलों में कोई राजनीतिक समूह शामिल नहीं है। जैसे ही सीबीआइ, ईडी और आइटी विभाग की जांच पड़ताल शुरू हुई, कांग्रेस बड़ी खूबसूरती से इससे अलग हो गई। सुरेश कलमाड़ी के सभी महत्वपूर्ण सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनसे पूछताछ जारी है, किंतु हर सूरत में संदेह की उंगली तो आयोजन समिति के अध्यक्ष की तरफ ही उठ रही है। शहरी विकास मंत्री, दिल्ली की मुख्यमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर तथा खेल मंत्री पर दोषारोपण उनकी साख पर नकारात्मक असर डालेगा। वैसे किसी भी वित्तीय मामले में उनकी संलिप्तता का दूर-दूर तक कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। हमारे पास निर्दोष व्यवस्था, निर्दोष सरकार और निर्दोष समाज नहीं है, जहां कानून का शासन चलता है। अगर व्यवस्था में परिवर्तन के बजाय वर्तमान मन:स्थिति के आधार पर फैसला आता है तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। (लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

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