Wednesday, December 29, 2010

सुमन-नमन

ऊर्जा सुमन-नमन सुमन अर्थात अपना सुंदर मन। जिसमें प्रेम हो वह सुमन है। तो सुमन भगवान को समर्पित करें और फिर नमन करें। नमन करने से व्यक्ति न-मन होता है। भगवान ने मन मांगा है। तो भगवान ने हमको न-मन किया। हम सिर झुकाते हैं प्रभु के चरणों में। यह जो हमारा मन है, वह प्रभु के पास चला जाए। नमन दो प्रकार से होता है- एक स्वार्थवश और दूसरा स्नेहवश। चाहे जैसे नमन करें, नारायण को नमन करें। कारण, वास्तव में हमारे सकल स्वार्थो की पूर्ति नारायण ही करेंगे। जब स्वार्थो की पूर्ति हो जाएगी, तो जिनके द्वारा स्वार्थो की पूर्ति हुई है, उन नारायण में हमारा स्नेह हो जाएगा। भगवान को तीन प्रकार से जानना है- स्वरूप से, स्वभाव से और साम‌र्थ्य से। विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और लय करने की साम‌र्थ्य है भगवान में। भगवान को नमन करने से वह हमारे तीनों प्रकार के तापों-आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक को नष्ट कर देते हैं। स्वरूप के परिचय में तीन बातें हैं-सत, चित्त और आनंद। असत्य का अस्तित्व नहीं है और सत्य का कहीं अभाव नहीं है। एक स्थान तो ऐसा बताओ जहां परमात्मा न हो। सर्वत्र हैं और सर्वदा हैं। वह परम चैतन्य रूप हैं। आनन्द स्वरूप हैं। सत के अंश में कर्म होता है। चित के अंश में ज्ञान होता है और आनंद के अंश में भक्ति होती है। जब हम एक दूसरे से मिलते हैं तो पहले नमन करते हैं। यही हमारे संस्कार हैं। हम केवल हाथ ही नहीं जोड़ते, प्रभु का नाम भी लेते हैं। जब हम किसी से भी मिलते हैं, तो प्रभु को बीच में रखकर मिलते हैं। जब प्रभु को साथ में रखकर मिलेंगे तो हमारे संस्कारों से सामने वाला प्रभावित होगा। कल्याण दोनों का होता है। नमस्कार नारायण से जोड़ने वाला है। प्रभु आपने मुझे मानव जन्म दिया। आपकी कृपा से ही यह जीवन चल रहा है। आपके अनंत उपकार हैं। मैं कृतज्ञ हूं। मैं वंदन करता हूं, कोटिश: नमन करता हूं। दो हाथ दिए हैं भगवान ने, तो प्रणाम करो, वंदन करो, नमस्कार करो। इसी में कल्याण है।
रमेश गुप्ता
साभार :-दैनिक जागरण

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