Thursday, February 16, 2012

जीवन की अबूझ गुत्थी

अनुपम खेर के विचारों पर रोशनी डाल रहे हैं खुशवंत सिंह
भारत में अनुपम खेर की पहचान बॉलीवुड के एक सितारे के रूप में है जिन्होंने 450 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। भारत को मालूम नहीं है उनका एक दूसरा पक्ष भी है, वह एक विचारक भी हैं। उन्होंने अपने विचारों को कोई 200 पन्नों की एक किताब में छापा है जिसमें आकर्षक प्राकृतिक दृश्यों के चित्र हैं। उन्होंने अपनी किताब का नाम-द बेस्ट थिंग अबाउट यू इज यू (हे हाउस) रखा है। उनके सामने कुछ प्रश्न थे जैसे हम कहां से आए? हमें क्या करना चाहिए और हमें मृत्यु के बाद कहां जाना है? कोई नहीं जानता कि हम कहां से आए थे सिवाय इसके कि माता-पिता के शारीरिक संबंधों से उत्पन्न हुए। न ही हम जानते हैं कि मृत्यु के बाद हमें कहां जाना है? धर्म उपदेशकों के जवाब आज के विचारकों को स्वीकार्य नहीं हैं। उन्हें ज्यादा चिंता इस बात की है कि हम अपनी जिंदगी से क्या हासिल करें? अनुपम खेर इस बात की व्याख्या करते हैं। उन्होंने यह अपनी थीसिस के आखिरी पैरा में कहा है। इसमें लिखा है उम्मीद केवल चार अक्षरों का शब्द नहीं है। यह शायद, प्रेम सहित, हमारी सबसे अधिक शक्तिशाली भावना है। यदि प्रेम दुनिया को घुमा सकता है तो उम्मीद हमें हमेशा जीवित रख सकती है। बुरे से बुरे समय में उम्मीद ही है जो हमे जिंदा रखती है। उम्मीद हमें बेहतर कल में विश्वास दिलाती है और यह उम्मीद ही है जो सभी विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का हमें साहस देती है। बॉलीवुड तमाशा जैसाकि मुहावरा है हिंदी फिल्मों के बारे में मेरी जानकारी एक डाक टिकट के पीछे लिखी जा सकती है। पिछली फिल्म मैंने फूलन देवी पर देखी थी। मैं इससे बहुत प्रभावित हुआ। इसमें कोई नाच-गाना नहीं था फिर भी यह मुझे अच्छी लगी, क्योंकि यह वास्तविकता पर आधारित थी। उसके बाद से गाने और शारीरिक कसरत जिसे कि डांस का नाम दिया जाता है बॉलीवुड प्रोडक्शन की आम खुराक हो गए हैं। मेरे पास इन तमाशों के लिए वक्त नहीं है। एक घटना मुझे अभी भी याद है। जब मैं इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया के संपादक के रूप में मुंबई में रह रहा था तो मेरे मित्र रफीक जकारिया जोकि तब महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे और उनकी पत्नी फातिमा मुझे एक सिनेमा दिखाने ले गए। मेरे बराबर में एक बहुत ही सुंदर महिला बैठी थी। यह सोचकर कि मैं उसे जानता होउंगा मुझे उससे नहीं मिलवाया गया। इंटरवल में मैंने उस महिला से पूछा आप करती क्या हैं? उसने जवाब देने के बजाय सिगरेट सुलगा ली (उस जमाने में सिनेमाघरों में सिगरेट पी जा सकती थी) शो खत्म होने के बाद मैंने रफीक और फातिमा से उस महिला के अभद्र व्यवहार की शिकायत की और पूछा कि वह कौन थी? रफीक को गुस्सा आ गया और उसने मुझे गधा बताते हुए कहा, वह मीना कुमारी हैं। लाखों दिलों की धड़कन और तुम्हें उसका नाम भी नहीं पता, तुम किस तरह के संपादक हो? मैंने फैसला किया कि हिंदी फिल्में मेरे बस की बात नहीं हैं फिर भी जब भाईचंद पटेल ने मुझे बॉलीवुड सुपर स्टार ऑफ इंडियन सिनेमा (पेंग्विन वाईकिंग) की एक प्रति दी तो मैंने उसे देखने और अपनी प्रतिक्रिया देने पर सहमति दी। सबसे पहले मैंने मीना कुमारी पर पवन वर्मा को पढ़ा और बहुत सी बातों का ज्ञान हुआ जो मुझे उनके बारे में पता नहीं थी। फिर विक्रम संपत को गायक अभिनेता केएल सहगल के बारे में पढ़ा। मैं देवानंद से भी मिला हूं जो कॉलेज में मुझसे दो एक साल जूनियर थे और अमिताभ बच्चन से जिन्होंने मेरे एक उपन्यास के विमोचन की अध्यक्षता की थी। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि वह एक सांसद के रूप में असफल रहे। मैंने उन्हें सांसदों की एक उपसमिति की बैठक में बोलते हुए सुना है, मैं बहुत प्रभावित हुआ। मैं कह सकता हूं कि फिल्मी सितारों के इस संग्रह का लेखन बहुत ही अच्छा है और जो लोग हिंदी फिल्मों में रुचि रखते हैं इसके लिए सिफारिश करता हूं।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
साभार :- दैनिक जागरण

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