Thursday, February 16, 2012

जटिल चुनौती

यह स्वागत योग्य है कि 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उपजीं समस्याओं का समाधान करने के लिए खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कमान संभाल ली है, लेकिन उनके लिए इन समस्याओं का समाधान करना आसान नहीं होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कई पहलू हैं और इस फैसले का प्रभाव अनेक पक्षों पर पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से 2 जी स्पेक्ट्रम के सभी 122 लाइसेंस रद कर दिए उससे देसी और विदेशी कंपनियां तो प्रभावित हुई ही हैं, इन कंपनियों में काम करने वाले तमाम कर्मचारी भी प्रभावित हुए हैं। केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या विदेशी कंपनियों के निवेश को सुरक्षित रखने और अंतरराष्ट्रीय उद्योग-व्यापार जगत को यह भरोसा दिलाने की है कि भारत में उनके लिए अभी भी उपयुक्त परिस्थितियां हैं। निश्चित रूप से विदेशी कंपनियों को ऐसा कुछ भरोसा तभी दिलाया जा सकता है जब केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उपजीं परिस्थितियों का सामना सही तरीके से करेगी। अभी तो केंद्र सरकार के लिए यही तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दे या नहीं? यदि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करती है, जैसे कि प्रारंभ में संकेत दिए गए थे तो उसके सामने समस्या यह होगी कि 2 जी स्पेक्ट्रम की नए सिरे से नीलामी में सभी मोबाइल कंपनियों को आमंत्रित करे या फिर केवल उन्हीं कंपनियों को जिनके लाइसेंस रद किए गए हैं? इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि लाइसेंस गंवाने वाली कंपनियों में भागीदारी करने वाली विदेशी कंपनियों का यह आग्रह है कि नए सिरे से स्पेक्ट्रम का आवंटन कुछ इस तरह से किया जाए जिससे उनका निवेश सुरक्षित रहे। भारत सरकार उनके इस आग्रह को स्वीकार करे या न करे, लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि ए. राजा की मनमानी के कारण जो हालात पैदा हुए उनके लिए विदेशी दूरसंचार कंपनियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। भारत सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह विदेशी कंपनियों के वैध तरीके से किए गए निवेश की रक्षा करे। आखिर यह एक तथ्य है कि विदेशी कंपनियों ने केंद्रीय सत्ता की जानकारी में देसी कंपनियों के साथ भागीदारी की थी। केंद्र सरकार ए. राजा की मनमानी के लिए केवल उन्हें ही दोषी ठहराकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकती है, लेकिन वह ऐसा कुछ कहने की स्थिति में नहीं है कि विदेशी कंपनियों के समक्ष जो समस्याएं आ खड़ी हुई हैं उनके लिए वह जिम्मेदार नहीं। केंद्र सरकार को स्पेक्ट्रम आवंटन के साथ-साथ अन्य अनेक मामलों में भी ऐसी नीतियों का निर्धारण करना होगा जिससे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय उद्योग जगत का भारत पर भरोसा बढ़े। यह इसलिए और अधिक आवश्यक है, क्योंकि केंद्र सरकार की निर्णयहीनता और नीतिगत अस्पष्टता के चलते राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय उद्योग जगत सशंकित है। यदि संशय के इस माहौल को दूर करने के उपाय नहीं किए जाते तो इससे विदेशी पूंजी निवेश का प्रवाह प्रभावित हो सकता है और यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद चुनौतियों को बढ़ाने का ही काम करेगी।
साभार :- दैनिक जागरण

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