साभार :- दैनिक जागरण
Thursday, February 16, 2012
अशुभ संकेत
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश विवादास्पद बयान के लिए जाने जाते हैं। कई मसलों पर उनकी राय खुद कांग्रेस के नेताओं को भी अखरती है, लेकिन जयराम रमेश की बातों को राजनीतिक गलियारे में गंभीरता से लिया जाता है। मंगलवार को रांची दौरे के क्रम में उन्होंने इशारों-इशारों में ही एक बड़ी बात कह दी। उनका संकेत था कि झारखंड में बढ़ती नक्सलियों की गतिविधि के पीछे माओवादियों से राजनीतिक दलों की साठगांठ एक बड़ा कारण है। यह संकेत झारखंड के लिए अशुभ ही है। पहले भी ऐसी खबरें आती रही हैं कि चंद नेताओं के संपर्क नक्सलियों से हैं और वे चुनाव जीतने के लिए उनका सहयोग लेते हैं। जयराम रमेश बड़े स्पष्ट लहजे में यह भी स्वीकार करते हैं कि आदिवासियों को जो सुविधाएं आज दी जा रही हैं, वे उन्हें 50 साल पहले ही मिलनी चाहिए थी। यानी कहीं न कहीं वे अपनी पार्टी कांग्रेस को भी इसके लिए कटघरे में खड़ी करने से नहीं चूकते। उनका आकलन है कि सुदूर इलाकों में राजनीतिक गतिविधियां ठप हुई हैं, जिसका फायदा माओवादी उठा रहे हैं। उनकी सलाह है कि नए सिरे से राजनीतिक गतिविधियां शुरू कर उन युवकों को जोड़ा जा सकता है, जो विकल्प के अभाव में बंदूक उठा लेते हैं। वैसे नक्सली समस्या सिर्फ झारखंड का ही सिरदर्द नहीं, बल्कि माओवादियों ने देश के दस से ज्यादा राज्यों में अपनी जड़ जमा ली है, लेकिन झारखंड के 24 में से 17 जिले केंद्र सरकार के रिकार्ड में धुर नक्सल प्रभावित जिले हैं। इन जिलों को अलग ग्रांट दिया जाता है, ताकि विकास के काम में तेजी लाई जा सके। वैसे राज्य के 22 जिलों में नक्सलियों का असर है और वे जब चाहें जनजीवन को ठप कर देते हैं। कोई ऐसा माह नहीं गुजरता जब ये हिंसक गतिविधियों को अंजाम न देते हो। सिर्फ बंदूक के बल पर इनसे निपटना संभव नहीं। राजनीतिक सक्रियता और सामाजिक सरोकार से अगर सुदूर इलाकों के लोगों को गंभीरता से जोड़ा जाए तो बात बन सकती है।
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