Thursday, February 16, 2012

ग्लेशियरों के पिघलने की भविष्यवाणी

ग्लेशियरों के पिघलने की भविष्यवाणी पर मुकुल व्यास के विचार ग्लेशियरों की ¨चता (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
पर्यावरण चिंतकों को इस खबर से जरूर राहत मिली होगी कि दुनिया की सबसे बड़ी हिमाच्छादित चोटियों ने पिछले दस साल से अपनी बर्फ को संभाल कर रखा है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की पिछली रिपोर्टो के बीच नई खबर अविश्वसनीय लगती है। इससे उन वैज्ञानिकों को भी बहुत हैरानी हुई होगी जो यह मान रहे थे कि इन ग्लेशियरों से हर साल 50 अरब टन बर्फ पिघल रही है और नए हिमपात से इसकी पूर्ति नहीं हो रही है। नई रिपोर्ट दुनिया की समस्त बर्फीली चोटियों और ग्लेशियरों के विस्तृत सर्वे पर आधारित है जो उपग्रह से मिले आंकड़ों की वजह से संभव हो पाया है। सर्वे से एक बात साफ हो गई है कि ग्रीनलैंड और अंटाकर्टिका के चोटियों और ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ का योगदान अब तक लगाए जा रहे अनुमानों से बहुत कम है। हिमालय और एशिया की दूसरी चोटियों से बर्फ का नुकसान लगभग नहीं के बराबर है। हिमालय के ग्लेशियरों के बारे में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पैनल की रिपोर्ट से 2009 में एक बहुत बड़ा विवाद खड़ा हो गया था, जिसमें गलती से कह दिया गया था कि हिमालय के ग्लेशियर 2350 के बजाय 2035 तक गायब गायब हो जाएंगे। नए अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों ने साफ कर दिया है कि एशिया की सबसे बड़ी चोटियों की बर्फ सही सलामत रहने के बावजूद दुनिया में ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा खत्म नहीं हुआ है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलेराडो के वैज्ञानिक प्रो. जॉन वार का कहना है कि हमारे निष्कर्षो और दूसरे रिसर्च से साफ है कि बर्फीली चोटियों से हर साल पानी की बहुत बड़ी मात्रा समुद्र में मिल रही है। अत: लोगों को दुनिया की बर्फीली चोटियों के पिघलने के बारे में अपनी चिंता को कम नहीं करना चाहिए। अध्ययन की रिपोर्ट प्रतिष्ठित नेचर पत्रिका में भी प्रकाशित हुई है, जिसके मुताबिक समुद्र का स्तर हर साल करीब 1.5 मिलीमीटर की दर से बढ़ रहा है। इसके अलावा गर्म होते समुद्र के कारण भी प्रति साल इसका जल स्तर 2 मिलीमीटर ऊंचा हो रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो हिमालय में कम ऊंचाई पर स्थित ग्लेशियरों की बर्फ भी पिघल रही है। उपग्रहों से लिए गए चित्रों से भी इसकी पुष्टि हुई है। 2003 से 2010 तक की अवधि के अध्ययन से भी पता चलता है कि बर्फीली चोटियों से खोई बर्फ के बाद नई बर्फ भी जुड़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक हिमालय के ग्लेशियरों से हर साल 4 अरब टन बर्फ गायब हो रही है। प्रो. वार ने चेतावनी दी है कि उनकी टीम की रिसर्च के आधार पर कोई बड़ा निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए। नए अध्ययन से बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी, लेकिन आठ साल का आंकड़ा तुलनात्मक रूप से बहुत कम अवधि का है। आठ साल के रिकॉर्ड को आधार मान लेना या अगले आठ साल की अवधि के लिए कोई भविष्यवाणी करना खतरनाक होगा। एशिया की चोटियों से बर्फ के पिघलने के बारे में देखे गए जबरदस्त अंतर की मुख्य वजह यह है कि पिछले अध्ययनों और ताजे अध्ययन में अलग तरीके अपनाए गए थे। अभी तक हमारे पास दुनिया के दो लाख ग्लेशियरों के बारे में जो आंकड़े उपलब्ध हैं वे कम ऊंचाई पर स्थित कुछ ग्लेशियरों के अध्ययन पर ही आधारित हैं। वैज्ञानिकों के लिए ऐसे ग्लेशियरों तक पहुंचना आसान होता है। यही वजह है कि अध्ययन में इन्हें बार-बार शामिल किया जाता है। हजारों ऐसे ग्लेशियर हैं जो बहुत ऊंचाई पर होने की वजह से पिछले अध्ययनो में शामिल नहीं किए गए थे। नए अध्ययन में ग्रेस नामक उपग्रहों का इस्तेमाल किया गया। ये उपग्रह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को रिकॉर्ड करते हैं। चोटियों और ग्लेशियरों की बर्फ के पिघलने पर गुरुत्वाकर्षण कुछ कम हो जाता है जिसकी जानकारी उपग्रह को मिल जाती है। नया अध्ययन दुनिया के ग्लेशियरों के बारे में अब तक का सबसे ज्यादा विश्वसनीय अनुमान है।
साभार :- दैनिक जागरण

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