Thursday, February 16, 2012

संशय से बचें

भगवान श्रीकृष्ण गीता में मानव मात्र को सावधान करते हुए कहते हैं-संशयात्माविनश्यति अर्थात संशय मनुष्य का नाश करता है। संशय मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा अवरोधक है। संशय का अर्थ है-किसी वस्तु के न होने पर भी उसके होने की आशंका से भयभीत होना। सच पूछें तो संशय का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, क्योंकि यह होता ही नहीं है। दरअसल, यह एक प्रकार की काल्पनिक भावना है, जो हमारी आंखों पर धुएं की तरह छा जाता है। संशय एक प्रकार से मनुष्य के जीवन का विकार है। मनोविज्ञान कहता है कि मनुष्य स्वयं इस कल्पना का निर्माण कर लेता है और फिर उससे भयातुर होकर कांपने लगता है। अब सवाल उठता है कि आखिर संशय से मुक्ति का उपाय क्या है? दरअसल, इसका सबसे सरल उपाय यही है कि मानव मात्र प्रभु की शरण में समर्पित हो जाए। सच्चे मन से उनकी आराधना करें। जो परमात्मा को शरणागत हो जाता है वह काम-क्रोध-भय-संशय आदि सबसे मुक्त हो जाता है। प्रश्न यह भी उठता है कि मनुष्य कितनी आस्था और श्रद्धा से परमात्मा के श्रीचरणों में अपने को प्रणत् करता है। उसकी कृपा होते ही मनुष्य के सारे प्रश्न अथवा प्रतिप्रश्न समाप्त हो जाते हैं। उसकी खोई हुई शक्ति उसे पुन: वापस मिलने लगती है। रामचरितमानस की एक चौपाई है-गई बहोरि गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।। रामजी की कृपा से वह सब कुछ वापस मिलने लगता है, जो किसी कारणवश मनुष्य खो चुका होता है। मनुष्य के समस्त योग-क्षेम का वहन भगवान स्वयं करने लगते हैं। संशय शरीर में निहित प्राणशक्ति को कंपित करता है, जिससे जीवन में निराशा आती है और मनुष्य जीवन में हताश होकर अकर्मण्यता की स्थिति में पहुंच जाता है। संशय संपूर्ण मानव शरीर को निष्कि्रय कर देता है। देखते ही देखते सब कुछ उसके हाथ से चला जाता है। विवेकी पुरुष संशय करने से बचते हैं और जीवन को सार्थक बनाने में लगे रहते हैं।
आचार्य सुदर्शन जी महाराज
साभार :- दैनिक जागरण

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