Thursday, February 16, 2012

नौकरशाही पर सवाल

उत्तर प्रदेश में रायबरेली की जिलाधिकारी सहित लगभग एक दर्जन अधिकारियों को उनके पद से हटाए जाने की कार्रवाई यह बताती है कि निर्वाचन आयोग की तमाम हिदायतों के बावजूद नौकरशाही में ऐसे लोग हैं जो राजनीतिक दलों के एजेंट के रूप में काम करने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह सामान्य बात नहीं कि निर्वाचन आयोग अब तक दो दर्जन से अधिक ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर चुका है जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव में बाधक बन रहे थे। यह स्वागत योग्य है कि निर्वाचन आयोग ने उन अधिकारियों को चुनाव प्रक्रिया से विरत कर दिया जो राजनीतिक दलों के एजेंट के रूप में काम कर रहे थे, लेकिन आश्चर्य नहीं कि चुनाव के बाद इनमें से अनेक अधिकारी महत्वपूर्ण पदों पर काम करते नजर आएं। बेहतर यह होगा कि ऐसी कोई व्यवस्था की जाए जिससे जो अधिकारी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव में बाधक माने गए हैं उनकी चुनाव के बाद महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति न होने पाए। यह निराशाजनक है कि चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के बाद अधिकारियों के पक्षपातपूर्ण आचरण को भुला दिया जाता है। चुनाव के समय पक्षपातपूर्ण आचरण के लिए पद से हटाए जाने वाले अधिकारियों की संख्या में जिस तरह वृद्धि होती जा रही है उससे इसकी पुष्टि होती है कि उत्तर प्रदेश में नौकरशाही का राजनीतिकरण बढ़ता चला जा रहा है। यह सिलसिला तब तक नहीं रुकने वाला जब तक सभी दल और विशेष रूप से सत्तारूढ़ दल नौकरशाही को अपने मोहरे के रूप में इस्तेमाल करना बंद नहीं करेंगे। चूंकि इसकी उम्मीद कम ही है कि राजनीतिक दल ऐसा कुछ करेंगे इसलिए यह आवश्यक है कि नौकरशाही ऐसी कोई पहल करें जिससे उसका राजनीतिक इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लग सके। यह निराशाजनक है कि उत्तर प्रदेश में ऐसे नौकरशाहों की संख्या बढ़ती जा रही है जो खुशी-खुशी राजनीतिक दलों का मोहरा बनने से संकोच नहीं करते।
साभार :- दैनिक जागरण

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