Thursday, February 16, 2012

सरोकारों का सवाल

उत्तराखंड में गंगा रक्षा का संकल्प लेकर हरिद्वार में अनशन पर बैठे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल) के गिरते स्वास्थ्य को लेकर प्रशासन चिंतित है तो दूसरी ओर उक्रांद-पी के अल्टीमेटम ने उसकी मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं। इतना ही नहीं गंगा को लेकर चल रही सियासी बयानबाजी से स्थिति लगातार विकट होती प्रतीत हो रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गंगा देश की आस्था और अस्मिता से जुड़ा मसला है। यह नदी न केवल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाती है, बल्कि उनके जीविका उपार्जन का साधन भी है। जाहिर है ऐसे में गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक स्थानीय सरोकारों की अवहेलना नहीं की जा सकती। दरअसल, पूरा मामला आस्था के साथ ही रोजगार और विकास से भी जुड़ा है। देश की धमनियों में प्राणवायु का संचार करने वाले उत्तराखंड को पर्यावरण शुद्ध रखने की खासी कीमत चुकानी पड़ रही है। यूं भी यहां दो तिहाई भूभाग पर वन होने के कारण विकास के अवसर पूरी तरह से सीमित हैं। थोड़े-बहुत अवसर ऊर्जा के क्षेत्र में थे तो पर्यावरण के नाम पर केंद्र सरकार ने कई महत्वपूर्ण जल विद्युत परियोजनाएं बंद कर दीं। प्रदेश के दूरस्थ गांवों को सड़कों का लाभ सिर्फ इसलिए नहीं मिल पा रहा है कि दिल्ली में पर्यावरण मंत्रालय इसकी इजाजत नहीं देता। इन हालात में स्थानीय लोगों के पास अपना घर-गांव छोड़ने के अलावा चारा भी क्या है? गंगा का महत्व उत्तराखंड के लिए किसी से कम नहीं, यहां तक कि दूसरों से ज्यादा ही है। वे तो जन्म से लेकर मृत्यु तक गंगा की गोद में ही रहते हैं। गंगा उनकी सुख-दुख की साथी है। दूसरा, यहां यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की मांग वास्तव में केंद्र सरकार से जुड़ी हुई है।
साभार :- दैनिक जागरण

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